बैकुण्ठपुर@नशा मुक्ति केंद्र में कर्मचारियों का मरीजों को टॉर्चर करना पड़ा भारी,लामबंद हुए मरीज कर्मचारियों की कर दी पिटाई

Share

  • नशा मुक्ति केंद्र पटना के कर्मचारियों से प्रताडि़त थे मरीज,मरीज एकजुट होकर कर्मचारियों को पीटा और बाहर से नशा मुक्ति केंद्र में ताला लगा कर भाग गए…
  • नशा मुक्ति केंद्र में न गाइडलाइन, न निगरानी,नतीजा नशा मुक्ति केंद्र में हुई मारपीट सभी नशेड़ी फरार
  • दैनिक घटती-घटना ने पहले ही इस बात की अंदेशा जाहिर करते हुए खबर प्रकाशित किया था…आखिरकार वही हुआ
  • टॉर्चर को लेकर हुई थी शिकायत कोरिया कलेक्टर तक जांच फाइलों में, नतीजा पहुंचा मारपीट तक
  • कोरिया जिले के पटना में संचालित है केंद्र की आ रही थी शिकायत
  • न गाइडलाइन,न निगरानी, नतीजा नशा मुक्ति केंद्र बने यातना केंद्र:सूत्र
  • नशा मुक्ति केंद्र के नाम पर वसूले जा रहे पैसे और किया जा रहा है टॉर्चर
  • पटना का नक्शा मुक्ति केंद्र इस समय टॉर्चर को लेकर सुर्खियों में, शिकायत कोरिया कलेक्टर से पर्व में भी हुई थी
  • नवजीवन फाउंडेशन नशा मुक्ति केन्द्र पटना में अव्यवस्था और मानसिक प्रताड़ना की शिकायत

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 14 अप्रैल 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के पटना नेशनल हाईवे के किनारे संचालित नवजीवन नशा मुक्ति केंद्र चिरगुडा में अनियमितताओं की शिकायत पहले से ही आ रही थी, पर किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया, दैनिक घटती-घटना ने भी खबर प्रकाशित करके प्रशासन का ध्यान इधर आकर्षित कराने का प्रयास किया था पर इसके बावजूद प्रशासन ने से हल्के में लिया और नतीजा यह है की प्रताड़ना झेल रहे मरीज लामबंद होकर प्रताडि़त कर रहे कर्मचारियों को ही जमकर पीटा जिसमें कर्मचारियों को गंभीर चोट आई और कर्मचारियों को ही उन्हीं के सेवा मुक्ति केंद्र में बंद करके फरार हो गए जिसकी शिकायत कर्मचारियों ने पटना थाना में दर्ज कराई है।
नशा मुक्ति केंद्र, सुनने पर लगता है कि यहां पहुंचने पर नशे से मुक्ति मिल जाएगी। नशा करने वाले व्यक्ति के परेशान स्वजन भरोसा करके यहां पहुंचते हैं। रुपये भी खर्च करते हैं। मगर, एनजीओ के माध्यम से संचालित ये नशा मुक्ति केंद्र कमाई का जरिया बने हुए हैं। कई बार यहां मारपीट के मामले सामने आ चुके हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों का इस ओर कोई ध्यान नहीं था। नवजीवन फाउंडेशन नशा मुक्ति केन्द्र ग्राम पटना में एक वर्ष पहले खुला था यहां नशा से मुक्ति के लिए भर्ती कराए जाने वाले लोगों के स्वजन से 10 हजार रुपये प्रतिमाह लिए जाते थे दावा नशे से सौ फीसद मुक्ति दिलाने का किया जाता था, लेकिन हकीकत इससे इतर थी। यहां भर्ती कराए जाने वाले लोगों को सुधारने के नाम पर उनका उत्पीड़न किया जाता था। शौचालय साफ कराने से लेकर उनसे मारपीट तक की जाती थी। मामला कलेक्टर कोरिया तक पहुंच गया था। एनजीओ बनाकर किराए की बिल्डिग में यह धंधा चल रहा है। इनमें पांच से दस हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। इसके बाद भी यहां जिम्मेदार विभाग के अधिकारी निरीक्षण तो किया पर कर्यवाही नहीं हुई इसका नतीजा यह है की एक और घटना हो गई। समाजसेवा के बहाने खोले गए नशा मुक्ति एवं पुनर्वास केंद्र वास्तव में यातना केंद्र में तब्दील हो गए हैं। कारण यह है कि इन केंद्रों के संचालन के लिए समाज कल्याण विभाग की न तो कोई गाइडलाइन है और न ही इनकी निगरानी की कोई व्यवस्था। लिहाजा नौसिखिए संचालक नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती मरीजों से अनैतिक व्यवहार कर रहे हैं। मारपीट तो आम बात है, इन मरीजों पर थर्ड डिग्री तक इस्तेमाल किए जाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। जिसका ही परिणाम है कि कोरिया जिले के चिरगुड़ा ग्राम में बिना पंचायत की अनुमति से खोले गए नशा केंद्र से संस्था के कर्मचारियों के गलत व्यवहार व मारपीट से गुरुवार की रात्रि में 11 बजे ईलाज के लिए भर्ती सभी नशेड़ी फरार हो गए। जहा कर्मचारियों के द्वारा नशे में किसी बात को लेकर भर्ती पीडि़त से विवाद होने के कारण पहले बहस व बाद में मारपीट व तोड़फोड़ की भी बात सामने आ रही हैं वही पदस्थ कर्मचारियों के द्वारा सुबह तक थाने में घटना की सूचना न देने के कारण अब संस्था के कार्यकलाप व शिकायत को लेकर सवाल उठना लाजमी हैं।
दर असल नशा मुक्ति केंद्र, सुनने पर लगता है कि यहां पहुंचने पर नशे से मुक्ति मिल जाएगी। नशा करने वाले व्यक्ति के परेशान स्वजन भरोसा करके यहां पहुंचते हैं। रुपये भी खर्च करते हैं। मगर, एनजीओ के माध्यम से संचालित ये नशा मुक्ति केंद्र कमाई का जरिया बने हुए हैं। कई बार यहां मारपीट के मामले सामने आ चुके हैं। इसके बाद भी जिम्मेदारों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। नवजीवन फाऊन्डस नशा मुक्ति केन्द्र पटना में एक वर्ष पहले खुला था। यहां नशा से मुक्ति को भर्ती कराए जाने वाले लोगों के स्वजन से सुरुवात में 20 से 30 हजार रुपये यहाँ तक लाने व बाद में 10 हजार रुपये प्रतिमाह लिए जाते थे। दावा नशे से सौ फीसद मुक्ति दिलाने का किया जाता था, लेकिन हकीकत इससे विपरीत थी। यहां भर्ती कराए जाने वाले लोगों को सुधारने के नाम पर उनका उत्पीड़न किया जाता था। शौचालय साफ कराने से लेकर उनसे मारपीट तक की जाती थी। मामला फरवरी में कलेक्टर कोरिया तक पहुंच गया। एनजीओ बनाकर किराए की बिल्डिग में यह धंधा चल रहा है। इनमें पांच से दस हजार रुपये तक वसूले जा रहे हैं। इसके बाद भी यहां जिम्मेदार विभाग के अधिकारी निरीक्षण नहीं करते शिकायत पर जिम्मेदार जाच किये किंतु क्या जाच हुई यह आज भी बंद लाल फाइलों ने कैद है। यदि जांच कर समय पर सही रिपोर्ट मिल जाता तो सायद आज यहाँ भर्ती लगभग 25 नशेड़ी फरार नही होते जहा अब इन नशेडि़यों के घर नही पहुचने व किसी प्रकार की घटना घटित होने पर अब जिम्मेदार कौन होगा जिसे लेकर अब जिले में यह सुर्खियों का विषय बना हुआ है वही संचालन कर्ता कोई भी जवाब देने को तैयार नही।
क्या नशेड़ी कर्मचारियों को ही दिया गया था नशा छोड़वाने का जिम्मा?
नशा मुक्ति केंद्र पटना में कई अनियमितताएं कि शिकायत है यहां पर ना तो कोई डॉक्टर है और ना ही कोई काउंसलिंग के लिए आता है जो नशा मुक्ति केंद्र में आए मरीजों को बता सके और काउंसलिंग के जरीए उन्हें नशा के दलदल से बाहर निकाल सके, सूत्रों की माने तो नशेड़ी किस्म के कर्मचारियों को ही यह जिम्मा दे दिया गया है कि नशा छुड़वाने आने वाले मरीज को वह मारपीट कर उसका नशा छुड़ाएं, जिस वजह से विवाद की स्थिति उत्पन्न हो रही है और यही वजह है कि एक बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया है प्रताडि़त हो रहे मरीज ही कर्मचारियों को जमकर पीटा है मरीजों का आरोप है कि कर्मचारी ही नशा मुक्ति केंद्र में नशा करते हैं और हमें नशा छोड़ने का पाठ पढ़ाते हैं विरोध करने पर समय पीटा जाता है जबकि हम एग्रीमेंट के तहत जो शर्त है उसका पालन किए करते हैं।
क्या होता है नशा मुक्ति केंद्रों में
तीन से छह माह तक के लिए लोगों को यहां रोका जाता है। प्रतिमाह दस हजार रुपये खर्च के लिए लिए जाते हैं। नशे के आदी लोग जब नशा नहीं करते हैं तो उन्हें घबराहट, बेचैनी व अन्य समस्या होती हैं। ऐसे में यहां के संचालक खुद ही डाक्टर बनकर दवा देते हैं। सुधार के नाम पर लोगों का उत्पीड़न किया जाता है। मारपीट तक की जाती है। यह नही होना चाहिए, समाज सेवा के रूप में इन केंद्रों को खोला जाता है। ऐसे में दस हजार रुपये वसूल करना उचित नहीं। नशा मुक्ति केंद्र में भर्ती रहने वाले लोगों को सलाह या दवा देने को डाक्टर होना चाहिए जो की इस केंद्र में नही है । नशे के आदी लोगों को व्यायाम और अन्य एक्टिविटी में व्यस्त रखा जाना चाहिए। इसके लिए विशेषज्ञ होने चाहिए जो नही है । जिम्मेदार विभागों को समय-समय पर इनका निरीक्षण करना चाहिए।ताकि इनकी मनमानी न हो किन्तु जब नशा करने वाले ही इस तरह के केंद्रों का संचालन करेंगे तो इन केंद्रों में सुधार व्यवस्था को लेकर सवाल उठना लाजमी है।


Share

Check Also

कोरबा@ युवती पर प्राणघातक हमला

Share चाकू मारकर बदमाश फरारकोरबा,24 नवम्बर 2024 (ए)। छत्तीसगढ़ के कोरबा शहर में पूजा करने …

Leave a Reply