बैकुण्ठपुर@किसके आदेश पर साइबर सेल कर रहा क्राइम ब्रांच जैसी कार्यवाही?

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  • क्या साइबर सेल को है छापामारी का अधिकार? साइबर सेल का काम सूचना देना है या फिर कार्यवाही करना ?
  • एक विवादित प्रधान आरक्षक को बना रखे हैं साइबर सेल प्रभारी,आखिर किस की है मेहरबानी?
  • क्राइम ब्रांच की तरह काम कर रहा है साइबर सेल हो रही है पुलिस विभाग के आलोचना
  • कोरिया जिले के पुलिस विभाग का है मामला,विवादित प्रधान आरक्षक बना हुआ है साइबर सेल प्रभारी
  • कुछ पुलिसकर्मियों पर 2016 में मामला पंजीबद्ध करने के लिए न्यायालय ने दिया था आदेश जिसमे प्रधान आरक्षक का नाम भी शामिल
  • मामला पंजीकृत होने के बावजूद बिना जमानत हुआ बिना विभागीय जांच के पुलिसकर्मी आज भी डटे है नौकरी
  • जहां एफआईआर दर्ज होते हैं नौकरी से पृथक होना था पर प्रभाव में आज भी काट रहे नौकरी
  • आमजनों पर मामला पंजीबद्ध करना पुलिस के लिए आसान पर पुलिस पर मामला पंजीबद्ध कौन करें?

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 16 मार्च 2023 (घटती-घटना)। किसी भी अधिकारी के लिए उनके सारे कर्मचारी एक समान होते हैं पर किसी एक कर्मचारी को विशेष महत्व देना कहीं ना कहीं संदेह उत्पन्न करता है कुछ ऐसा ही मामला कोरिया जिले के पुलिस विभाग का है जहां पर एक प्रधान आरक्षक पर अधिकारियों का आशीर्वाद बरसता रहता है अब इसकी वजह चाहे जो भी हो, कोरिया के एक प्रधान आरक्षक हमेशा विवादों में घिरे रहते हैं इनके खिलाफ शिकायतों का अंबार है पर जो भी अधिकारी आता है वह इस प्रधान आरक्षक का मुरीद हो जाता है ना जाने ऐसा कौन सा गुण है इनमें की जो यह बोल दे वही अधिकारियों को अच्छा लगता है और सही भी चाहे तरीका गलत क्यों ना हो, जबकि इस प्रधान आरक्षक को कोई भी ईमानदार अधिकारी पसंद नहीं करता या फिर यह कहा जाए तो उसके विभाग के लोग भी इसे पसंद नहीं करते फिर भी अधिकारियों की चमचागिरी व पावलगी कर अधिकारियों के हितेषी बने रहते है सूत्रों की मामने तो इस समय प्रधान आरक्षक को साइबर सेल का प्रभारी बनाया गया, लेकिन साइबर सेल का काम इस समय क्राइम ब्रांच की तरह चल रहा है, जबकि क्राइम ब्रांच को पुलिस महानिदेशक द्वारा भंग कर दिया गया है पर इस समय साइबर सेल का प्रभारी जिसे बनाया गया है वह सूचना देने व जुटाने के बजाय होटल ढाबा व थाना क्षेत्र में पकड़म पकड़ाई खेल रहे हैं जिसे लेकर चौतरफा पुलिस विभाग की आलोचना हो रही है लोगों का यह भी कहना है कि कार्यवाही के नाम पर उगाही की जा रही है। सूत्रों का यह भी कहना है यदि इनकी कमियों को यदि कोई पत्रकार दिखाता है तो पत्रकार के साथ यह पत्रकार को जानकारी देने वाला कौन है इसके लिए यह साइबर में बैठकर अपने पुलिसकर्मियों से लेकर पत्रकार को जानकारी देने वाले तक कनेक्शन खोजने लगते हैं वह भी नियम विरुद्ध तरीके से, जिस वजह से पुलिस की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं।
मामला पंजीकृत होने के बावजूद बिना जमानत हुआ बिना विभागीय जांच के पुलिसकर्मी आज भी डटे है नौकरी में
पुलिस पत्रकार पर या अन्य निर्दोषों पर बिना जांच के मामला पंजीबद्ध तो कर लेती है पर जब खुद इनके ऊपर मामला पंजीबद्ध होने की बारी आती है तो घबरा जाते हैं फिर बचाव के लिए पूरे पैतरे अजमाने लगते है एक तो इन की शिकायत हो भी जाए तो इन्ही के अधिकारी इन्हें बचाने लगते है जब की वह भी जानते है की उनका कर्मचारी गलत व दोषी है पुलिस के खिलाफ कितनी भी शिकायत हो जाए यही वजह है कि जांच तो उसी विभाग के अधिकारी को करना है जिस वजह से उन्हें हर बार बच निकलने में सहूलियत होती है, इनके ऊपर तो कार्यवाही तब होती है जब कोई इनके पीछे पड़ जाए उच्च स्तर पर या फिर न्यायालय की शरण ले तब जाकर उसे जीत हासिल हो पाती है पर जीत के आने के बाद ही फिर उसी विभाग के कार्यालय के चक्कर लगाकर अपने चप्पल घिसने पढ़ते हैं फिर भी राहत नहीं मिलती कुछ ऐसा ही मामला है कुछ सालों पहले कि जहां पर एक व्यक्ति के प्रभाव में पुलिस वाले एक महिला का घर तोड़ने व कब्जा दिलाने के लिए चले जाते हैं उस महिला की शिकायत पर अपराध पंजीबद्ध नहीं होता तब महिला को उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है तब वहां पर उच्च न्यायालय संज्ञान लेते हुए अपराध पंजीबद्ध करने तो कहता है जिसके बाद 10 दिन के बाद उस मामले में अपराध पंजीबद्ध होता है पर उस पंजीबद्ध एफआईआर में पुलिस कर्मियों का नाम नहीं होता, वर्ष 2016 में एक महिला की शिकायत पर पुलिसकर्मियों ने मामला पंजीबद्ध नहीं किया तब उसने उच्च न्यायालय शरण लिया लिया था जिसमें उच्च न्यायालय ने 29 नवम्बर 2016 को अपराध पंजीबद्ध करने का आदेश दिया था, जिसमें नामजद अपराध पंजीबद्ध होना था पर पुलिस वाले ही जब अपराध पंजीबद्ध करते हैं तो अपने ही पुलिस वालों का नाम कैसे लिख सकते हैं बिना नाम के ही उन्होंने 9 दिसंबर 2016 को अपराध पंजीबद्ध किया, जिसमें उन्होंने पुलिसकर्मियों के नाम की जगह अज्ञात लिख दिया पर सवाल यह है कि हाईकोर्ट के आदेश में सभी के नाम दिए गए थे पर इसके बावजूद पुलिस ने नामजद अपराध दर्ज नहीं किया ना आज तक उन पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी हुई और ना ही वह पुलिसकर्मी ने जमानत लिया और ना ही विभागीय जांच ही सही से हो पाई, अब समझा जा सकता है कि पुलिसकर्मी यदि करें तो सब सही बाकी ऊपर पुलिस टूट पड़ती है जबकि संविधान में साफ है कि पुलिसकर्मी भी यदि दोषी हैं तो उन पर भी अपराध पंजीबद्ध होना चाहिए पर अक्सर खाकी खाकी की मदद ही करता है और बचने का पूरा प्रयास करता है।
आखिर किसके सहारे पर साइबर सेल क्राइम ब्रांच की तरह कर रहा कार्रवाई
साइबर सेल का गठन साइबर अपराधों को पता लगाने और साइबर संबंधी सूचना इकट्ठा करने के लिए किया जाता है। साइबर अपराधों के मामले में ही उक्त सेल जवाबदेह होता है। अब कोरिया जिले में साइबर सेल किसके इशारों पर पकड़म पकड़ाई का खेल खेल रहा है यह सवाल जरूर खड़ा होता है। एक प्रधान आरक्षक साइबर सेल प्रभारी बनकर उगाही के लिए इधर उधर छापा मार रहें हैं जो देखने को मिल रहा है।
आखिर प्रधान आरक्षक पर कब तक बरसती रहेगी कृपा
जिस प्रधान आरक्षक को साइबर सेल का प्रभारी बनाया गया है वह जिले के सबसे चर्चित प्रधान आरक्षक है और उसको लेकर कई बार शिकायतें भी हो चुकी हैं। सत्ता किसी की भी अधिकारी कोई भी हो उक्त प्रधान आरक्षक को जहां भी अपनी पदस्थापना लेनी होती है वह लेकर रहता है। विभागीय अधिकारी भी उक्त प्रधान आरक्षक के सामने नतमस्तक हैं और उसके पीछे किसका हांथ है जो अधिकारी भी उसके सामने झुके हुए हैं बड़ा सवाल है।
बैकुंठपुर थाने में अपराध दर्ज फिर भी पदोन्नति का सपना
जिले के जिस प्रधान आरक्षक को साइबर सेल प्रभारी बनाया गया उसके ऊपर बैकुंठपुर कोतवाली में ही अपराध दर्ज है। अपराध की जांच लगातार चल रही है क्योंकि पुलिस की जांच पुलिस कर रही है। मामले में प्रधान आरक्षक को बचाने में विभागीय अधिकारी भी उसकी मदद कर रहें हैं। बताया यह भी जा रहा है की खुद के ऊपर अपराध दर्ज होने के बावजूद उक्त प्रधान आरक्षक को अपनी पदोन्नति का इंतजार है जबकि अपराध दर्ज होने की स्थिति में पदोन्नति बाधित की जानी चाहिए।
उच्च अधिकारियों तक शिकायत फिर भी आज तक कार्यवाही का इंतजार
साइबर सेल में प्रभारी बनकर अपनी धौंस जमा रहे प्रधान आरक्षक की कई बार शिकायत भी हो चुकी है। शिकायत के बावजूद कार्यवाही आज तक लंबित है। जिले में आने वाले हर अधिकारी को प्रधान आरक्षक अपनी गिरफ्त में ले लेता है और कार्यवाही से बच निकलता है। अब देखना यह है की जिले में कब कोई पुलिस अधिकारी उक्त प्रधान आरक्षक के संबंध में हुई शिकायत की जांच करता है और निष्पक्ष कार्यवाही करता है।
10 दिन पहले एक थाने में जप्त की गई रकम जमा की गई
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिले के एक थाने में प्रधान आरक्षक के कार्यकाल के दौरान जप्त की गई रकम खर्च की गई थी और उसे थाने के रिकॉर्ड रूम में जमा नहीं किया गया था, एसपी साहब के निरीक्षण के दौरान स्टेनो के कहने पर उस रकम को जमा किया गया,अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है प्रधान आरक्षक की कितनी पकड़ और पहुंच है।
जिले के तीन थाना क्षेत्रों में प्रधान आरक्षक को किसने दी छापामारी करने की स्वतंत्रता?
सूत्रों से मिलीजानकारी के अनुसार कोरिया जिले में कुल 4 पुलिस थाने हैं और प्रधान आरक्षक 3 पुलिस थानों के क्षेत्र में छापामारी कर चुके हैं और कर रहें हैं ऐसी खबरें सामने आ रहीं हैं वहीं एक पुलिस थाना ऐसा भी है जहां यह नहीं जाते क्योंकि वह उनके करीबी निरीक्षक का थाना है। प्रधान आरक्षक को किसने स्वतंत्रता दी है और कब स्वतंत्रता दी है यह बड़ा सवाल है।


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