अंबिकापुर@प्रतापपुर का राज महल शास्त्र विधान के अनुरूप बनाया गया था : अजय चतुर्वेदी

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अंबिकापुर,07 मार्च 2023 (घटती-घटना)। रायपुर में 3 से 5 मार्च तक आयोजित राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी में जिला पुरातत्व संघ सूरजपुर के सदस्य अजय चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा रियासत में अनेक क्षेत्रीय राजवंशो का इतिहास मिलता है। जिसमें गोंडवाना राजवंश, रक्सेल राजवंश, चौहान राजवंश और राजा बालेन्दु के राज्य का इतिहास मिलता है। राज कवि कवीन्द्र अम्बिका प्रसाद भट्ट अम्बिकेश की पुस्तक अर्कसेल-वंशावली (सरगुजा राज्य का इतिहास) में पहली पीढ़ी से 114 वीं पीढ़ी तक के राजाओं के कार्यकाल उल्लेख वर्षानुसार मिलता है। इस पुस्तक में पहली पीढ़ी के महराजा विष्णु प्रताप सिंह (सन् 195 – 230) से 114 वीं पीढ़ी के महाराजा रामानुज शरण सिंह (सन 1918 – 1947) तक अर्कसेल वंश के विभिन्न प्रतापी राजाओं के कार्यकाल का उल्लेख है। इसी क्रम में 115 वीं पीढ़ी में महाराजा अंबिकेश्वर शरण सिंह, 116 वीं पीढ़ी में महाराजा एमएस सिह देव और 117 वीं पीढ़ी के वर्तमान महाराजा छाीसगढ़ शासन के कैबिनेट मंत्री टीएस सिंह देव हैं। सरगुजा रियासत में विंधेश्वेरी प्रसाद सिंह सरगुजा राज के सरवशकार महाराज इन्द्रजीत सिंह (1852 से 1879) के समकालीन थे। उन्होंने प्रतापपुर को राजा की राजधानी बनायी। 113 वीं पीढी के महाराजा रघुनाथ शरण सिंह (सन् 1879-1917) के शासन काल में राजधनी अंबिकापुर लाई गयी। इसके बाद से सरगुजा राज्य की मुख्य राजधानी अम्बिकापुर बनी। उस समय अम्बिकापुर को विश्रामपुर कहा जाता था। सरगुजा संभाग मुख्यालय अुबिकापुर में सरगुजा रियासत की शान रघुनाथ पैलेस है। सरगुजा रियासत के इतिहास को गौरवशाली बनाता रघुनाथ पैलेस के निर्माण में ईंट, सुर्खी- चुना और बेल गुदा का उपसोग किया गया है। सरगुजा का यह ऐतिहासिक धरोहरा रियासत की कई गाथाओं को अपने अंदर समेटा हुआ है। रघुनाथ पैलेस का निर्माण काफी पहले हुआ था। लेकिन सन् 1895 में उार मुख करते हुए इसे सम्पूर्ण आकार दिया गया। सरगुज़ा के तत्कालीन महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव के नाम पर इस पैलेस का नाम रघुनाथ पैलेस रखा गया। सरगुजा जिला अंतर्गत विकासखण्ड लुण्ड्रा (धौरपुर) रियासत का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। धौरपुर सरगुजा रियासत का महत्वपूर्ण हिस्सा था। स्व. लाल धर्मपाल सिंह को सन् 1886 में धौरपुर उप जमीदारी के रूप में प्राप्त हुई थी। धौरपुर का धर्मपाल पैलेस रियासत के सुनहरे कालखंड को देखा है। जिसकी गवाही इसके दर और दिवारें देते हैं। इसके निर्माण में सीमेंट का प्रयोग नहीं किया गया है। इसे ईंट, सुर्खी – चुना और बेल गुदा से निर्मित किया गया है। इस महल का निर्माण सन् 1910 में स्व. धर्मपाल सिंह के कार्यकाल में सुरू हुआ, जो सन् 1934 में स्व. चंदेश्वर प्रसाद सिंह के कार्यकाल में पूर्ण हुआ। 6 एकड़ जमीन में फैले गार्डन से युक्त तीन मंजिला पैलेस को देखने पर एक अदभुत विरासत को महसूस किया जा सकता है। महल के पूर्वी दरवाजे के प्रथम बैठक कक्ष में कई जंगली जानवरों के खाल में भुसा भर सज्जा के लिये लगाया गया है जिसे आज भी देखा जा सकता है। पहली मंजिल में दरबार कक्ष एवं उसी तल में अन्दर के तरफ सयन कक्ष तथा निजी बैठक है। महल के उारी दिशा में महज 100 मीटर की दुरी पर रानी तालाब है। महल के पूर्व दिशा में मंदिर स्थापित है। वर्तमान में इस महल के मालिक स्व. लाल बहादुर साधु शरण सिंह के पुत्र सोमेश्वर प्रताप सिंह है। सरगुजा रियासत के धौरपुर का धर्मपाल पैलेस आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है।


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