- भू-माफिया व अतिक्रमणकारियों की नजर होगी चामट पहाड़ पर कब्जा करने की
- सड़क वन प्राणियों के लिए भी बना खतरा, सड़क बनाने के लिए क्या एनजीटी से ली गई क्लेरेंस?
–रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर,02 मार्च 2023 (घटती-घटना)। वन परिक्षेत्र में कोई भी निर्माण बड़ी सोच समझ के साथ किया जाता है कि उसके निर्माण से वन प्राणी व वन को कोई नुकसान ना पहुंचे लेकिन केवल लाभ के लिए किया गया कार्य जब वन संरक्षण के लिए घातक हो जाए तो कार्यवाही व जांच भी जरूरी हो जाती है, कुछ यही हाल कोरिया वन मंडल के पटना क्षेत्र का है जहां जंगल के बीच चामट पहाड़ पर एक बहुत लंबी सड़क का निर्माण धर्म की आड़ में करा दिया गया पर इससे होने वाले नुकसान के लिए बिल्कुल भी नहीं सोचा, क्या इतनी लंबी सड़क बना दी गई इस सड़क पर आवागमन होने से कहीं न कहीं वन्य प्राणी व जंगल को नुकसान ही पहुंचा है इस सड़क के बनने से अतिक्रमण का खतरा भी बढ़ चुका है वैसे भी वन परिक्षेत्र में अतिक्रमण होने के कारण ही वन्य प्राणी शहर व गांवों का रुख करने लगे हैं जिसकी खबरें भी कई बार देखने और सुनने को मिली है चामट पहाड़ एक घनघोर जंगल वाला क्षेत्र है यहां पर सड़क बनाकर वन्य प्राणियों के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी गई है सूत्रों की माने तो इतनी लंबी सड़क के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से अनुमति या क्लीयरेंस ली गई यह भी एक बड़ा सवाल है। चामट पहाड़ सड़क मामले में सबसे विचारणीय बात यह है की 9 करोड़ की लागत इस सड़क के निर्माण के लिए तय की गई है और खुद विभाग ही निर्माण एजेंसी है वहीं सड़क निर्माण में विभाग अपने ही वन अधिनियम को ताक पर रखकर काम कर रहा है। निर्माण कार्य में आधे से भी कम राशि में निर्माण किया जा रहा है वहीं गिट्टी मुरूम और मिट्टी पहाड़ से ही निकाली जा रही है और उसका परिवहन कर लाया बताकर शासकीय राशि का बंदरबांट किया जा रहा है।
जानकारों की माने तो राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण अधिनियम, 2010 द्वारा भारत में एक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की स्थापना की गई है। यह एक विशेष पर्यावरण अदालत है जो पर्यावरण संरक्षण और वनों का संरक्षण से संबंधित मामलों कि सुनवाई करती है नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एनजीटी- एनजीटी की स्थापना 18 अक्टूबर, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी। इसकी स्थापना पर्यावरण से संबंधित किसी भी कानूनी अधिकार के प्रवर्तन के अलावा वनों के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिए की गई थी। राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 यह संसद का एक अधिनियम है जो पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित मामलों के शीघ्र निपटान के लिए एक विशेष न्यायाधिकरण के निर्माण की ओर ले जाता है। यह अनुच्छेद 21 के संवैधानिक प्रावधान से प्रेरित था पर क्या कोरिया में इसका पालन हो रहा है या विभाग भऊसा खाता बना दिया है।
ट्रिब्यूनल का कार्य
इस ट्रिब्यूनल का पर्यावरणीय मामलों में एक समर्पित क्षेत्राधिकार है। इस प्रकार, यह त्वरित पर्यावरणीय न्याय प्रदान करता है और उच्च न्यायालयों के बोझ को कम करने में मदद करता है। इसे 6 महीने के भीतर आवेदनों या अपीलों के निपटान के लिए प्रयास करना अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला भी था
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास स्व-प्रेरणा शक्तियां हैं और यह पर्यावरण के मुद्दों को अपनी इच्छा पर सुन सकता है। मुख्य आदेश तब आया जब केंद्र सरकार ने कहा कि एनजीटी के पास पर्यावरणीय मामलों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि, किसी भी अन्य व्याख्या को धारण करना जनता की भलाई के खिलाफ होगा और पर्यावरण निगरानी को अप्रभावी और दंतहीन बना देगा। यह निर्णय राष्ट्र और लोगों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। यह भविष्य के बच्चों और उसके बाद की पीढि़यों के लिए एक बेहतर पर्यावरणीय विरासत को पीछे छोड़ने के लिए पर्यावरणीय क्षति और परिणामी जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी मुद्दों को संबोधित करने के लिए लचीला तंत्र लाएगा।
पर्यावरण से संबंधित सात कानून
एनजीटी अधिनियम की अनुसूची में सूचीबद्ध पर्यावरण से संबंधित सात कानूनों के तहत दीवानी मामलों से संबंधित है, ये सात कानून निम्नलिखित हैं जिसमे जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974, जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977,वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986,सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम, 1991 और जैविक विविधता अधिनियम 2002 उपरोक्त किसी भी कानून या इन अधिनियमों के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले किसी भी अधिनियम में सरकार द्वारा किए गए निर्णय को राष्ट्रीय हरित अधिकरण में चुनौती दी जा सकती है।
क्या वन विभाग के अधिकारी ही वन्य प्राणी व जंगल के लिए बन गए हैं हानिकारक?
जिस तरह बिना वजह पहाड़ पर सड़क बनाई जा रही है धर्म की आड़ में जिस तरह शासकीय राशि का बंदरबांट किया जा रहा है उससे साबित है की वन विभाग की मंशा वन्य प्राणियों सहित वन के लिए बेहतर नहीं है। अधिकारी केवल अपनी जेब भरना चाहते हैं और उन्हे केवल उसी से मतलब है। केवल इसी सड़क में करोड़ों का वारा न्यारा होगा ऐसी आशंका है।
मनुष्य जब जंगल
का रुख करेंगे तो वन्य प्राणी किधर का रुख करेंगे
वैसे सवाल यह भी है की वन विभाग खुद जब जंगलों को खोखला कर सड़क बनाकर अपनी जेब भरने में लगा हुआ है और वन सहित वन्य प्राणियों के लिए उसके पास सोच ही नहीं है तो वन्य प्राणी किधर का रुख करेंगे। निश्चित ही वह गांव की ओर शहरों की ओर जायेंगे और आम जनों को नुकसान पहुंचाएंगे।
अब चामट पहाड़ पर कब्जा करने वालो की होंगी निगाहें
वन भूमि पर कब्जा आम बात नहीं है और पहाड़ों पर भी लोग कब्जा करने से बाज नहीं आ रहें हैं वहीं अब जब चामट पहाड़ पर सड़क बन जा रही है तो इसपर भी कब्जा होगा इस आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है।
वन विभाग बन चुका है निर्माण विभाग
बैकुंठपुर का वन विभाग केवल निर्माण विभाग बनकर रह गया है। विभाग में वन संरक्षण,वन्य प्राणी संरंक्षण को लेकर कोई काम होता नहीं दिखता दिखता है तो केवल निर्माण कार्य और अपनी अपनी जेबें भरने का काम। वन विभाग के कई अधिकारी अरबपति बनकर विभाग को और खोखला कर रहें हैं जिसकी सतर्कता विभाग और आयकर विभाग से यदि जांच हो तो खुल सकता है बड़ा राज।