रायपुर,@रायपुर में बाड़ों का अनोखा इतिहास

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कई बाड़े ले लिए व्यापारिक प्रतिष्ठानों के रूप
-दुलारे अंसारी-
रायपुर, 26 फ रवरी 2023 (घटती-घटना)। अंग्रेजों ने पूरे छत्तीसगढ़ का राजस्व वसूली के उद्देश्य से रायपुर को मुख्यालय बनाया था। गांव की वसूली गौटिया करते थे। उससे ऊपर जमीदार और उससे ऊपर राजा होता था। राजा को अंग्रेजों को हिसाब देना होता था। राजस्व तथा अन्य कार्यों के लिए उन्हें रायपुर आना होता था। उनके साथ लाव-लश्कर भी आता था। यहां उन्हें कई बार पखवाड़े भर तक भी रुकना पड़ जाता था। कोई अपने रिश्तेदार के घर कितने दिन रुक सकता है। यह दिक्कत उन्हें आने लगी। इनमें बहुत से ऐसे भी लोग थे जिनके कोई भी नातेदार रायपुर में नहीं रहते थे। इसलिए उन्होंने यहां स्थाई ठौर बनाना शुरू किया।
इसकी शुरुआत बाड़ा बनाने से हुई। इनका निर्माण उस समय राजाओं और बड़े जमींदारों ने करवाया था। बस्तर बाड़ा, राजनांदगांव बाड़ा, छुईखदान बाड़ा, आरंग बाड़ा, फिंगेश्वर बाड़ा, कोमाखान बाड़ा, रायगढ़ बाड़ा, कौçड़या बाड़ा ये कुछ ऐसे नाम हैं जिन्होंने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के समय अपनी भव्यता को लेकर सुर्खियां बंटोरी बल्कि आज भी इनका नाम शहर में बड़े अदब से लिया जाता है।
इधर आम जनता भी राजस्व, शिक्षा तथा खरीदी के उद्देश्य से रायपुर आ रही थी। गांवों में रहने वाले बड़े किसान अपने बच्चों को रायपुर में पढ़ाना चाहते थे। इन्हीं वजहों से यहां कारा बाड़ा, अमेरी बाड़ा, जमराव बाड़ा, गेंदी बाड़ा, शुक्ल बाड़ा, शेष बाड़ा, झाबक बाड़ा, पुरोहित बाड़ा, गुप्ता बाड़ा, हर्रा बाड़ा, दानी बाड़ा, बुलामल बाड़ा बनाए गए। कुछ बाड़े किराए देने के उद्देश्य से भी बनाए गए। इनमें रिश्तेदार और किराएदार सभी अलग-अलग उद्देश्यों से रहते थे। कोई यहां पढ़ाई करने आता था तो रोजगार के लिए आश्रय पाता था। बहुत सारे लोग दूर गांवों से बैलगाçड़यों और घोड़ागाçड़यों में रायपुर पहुंचते। इन्हीं बाड़ों में ठहर कर खरीदी करते और गांव लौट जाते थे।
रायपुर के महानगर बन जाने की नींव इन्हीं बाड़ों में रखी जाने लगी। पांच – छह पीढि़यां इन बाड़ों में आई। कोई अपना काम करके वापस लौट गया तो कोई रायपुर में ही अपना घर बनाकर रहने लगा। इन्हीं बाड़ों के साथ ही मोहल्ले भी बसते चले गए।


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