मुम्बई,17 फ रवरी 2023(ए)। चुनाव आयोग शिवसेना पर अहम फैसले के कारण सुर्खियों में है। उद्धव ठाकरे पर सीएम एकनाथ शिंदे भारी पड़े। चुनाव आयोग ने कहा, शिवसेना का तीर-कमान का निशान शिंदे गुट का है। बता दें कि शिंदे ने शिवसेना से बगावत के बाद बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। इस मामले में उद्धव ठाकरे गुट का दावा था कि पार्टी का चुनाव चिह्न उनके पास होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्टतक हुई लड़ाई
शुक्रवार को भारत के चुनाव आयोग ने कहा, पार्टी का नाम शिवसेना और प्रतीक धनुष और तीर एकनाथ शिंदे गुट के पास रहेगा। बता दें कि इस दिलचस्प सियासी रार की शुरुआत उद्धव ठाकरे की सरकार गिरने के बाद हुई थी। शिवसेना दो फाड़ (एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे गुट) होने के बाद पार्टी के चुनाव चिह्न धनुष और तीर के निशान की लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गई।
शिवसेना का संविधान अलोकतांत्रिक!
अंतिम फैसला चुनाव आयोग को करना था। आयोग ने पाया कि शिवसेना पार्टी का वर्तमान संविधान अलोकतांत्रिक है। बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करने के लिए इसे विकृत कर दिया गया है। इस तरह की पार्टी संरचना विश्वास को प्रेरित करने में विफल रहती है।
अपनी वेबसाइट पर जानकारी दें राजनीतिक दल
राजनीतिक दलों और उनके आचरण पर दूरगामी प्रभाव वाले इस ऐतिहासिक निर्णय में, ईसीआई ने सभी राजनीतिक दलों को सलाह दी कि वे लोकतांत्रिक लोकाचार और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुसार काम करें। नियमित रूप से अपनी संबंधित वेबसाइटों पर पार्टी के आंतरिक कामकाज के पहलुओं का खुलासा करें। इसमें संगठनात्मक विवरण, चुनाव कराना, पार्टी के संविधान की प्रति और पदाधिकारियों की सूची जैसे विवरण शामिल हों।
पार्टी के संविधान संशोधन पर क्या बोला ईसीआई
चुनाव आयोग ने कहा, “राजनीतिक दलों के संविधान में पदाधिकारियों के पदों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव और आंतरिक विवादों के समाधान के लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया होनी चाहिए। इन प्रक्रियाओं में संशोधन करना मुश्किल होना चाहिए। संशोधन संगठनात्मक सदस्यों के बड़े समर्थन के बाद ही सुनिश्चित होना चाहिए।”
24 साल पुरानी बात,ईसीआई ने शिवसेना को आईना दिखाया
ईसीआई ने कहा, 2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान चुनाव आयोग को नहीं दिया गया। संशोधन के बाद 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के कार्य को पूर्ववत कर दिया था। आयोग के आग्रह पर स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे ने शिवसेना के संविधान में संशोधन किए थे।” शिवसेना के मूल संविधान के अलोकतांत्रिक मानदंडों को रेखांकित करते हुए चुनाव आयोग ने सख्त लहजे में कहा, 1999 में आयोग ने इसे स्वीकार नहीं किया था। इसे गुप्त तरीके से वापस लाया गया है, जिससे पार्टी एक जागीर के समान हो गई है।
राजनीतिक पार्टियों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर ईसीआई
चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी पर भी टिप्पणी की। ईसीआई ने कहा, राष्ट्रीय कार्यकारिणी एक ऐसा निकाय है जिसका ‘निर्वाचिन’ आम तौर पर ‘नियुक्त’ की गई प्रतिनिधि सभा के माध्यम से होता है। आयोग ने वर्ष 1999 में बाला साहेब को आजीवन सेना का नेता बनाए जाने पर मसौदा संशोधनों का जिक्र कर शिवसेना से कहा, संक्षेप में कहें तो, पार्टी संविधान में अध्यक्ष द्वारा निर्वाचक मंडल को नामांकित करने की परिकल्पना की गई है, उन्हें ही पार्टी अध्यक्ष चुनना है। इसलिए, वर्तमान विवाद के मामले को निर्धारित करने के लिए पार्टी संविधान की परीक्षा पर कोई भी भरोसा अलोकतांत्रिक होगा और पार्टियों में इस तरह की प्रथाओं को फैलाने में भी मददगार साबित होगा।
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