बैकुण्ठपुर@जिन पर है वनों के संरक्षण का दारोमदार,वही बन रहे विनाश के जिम्मेदार

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  • औचित्यहीन सड़क निर्माण के लिए हजारों की तादाद में काटे जा रहे वृक्ष
  • कोरिया जिले के वन विभाग को वन बचाने में दिलचस्पी कम निर्माण में दिलचस्पी ज्यादा
  • निर्माण में रेंजर सहित अधिकारियों को लाभ कमाने की ऐसी चाह की प्राकृतिक को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं आते बाज
  • कोरिया जिले में यदि कहीं सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है तो वह है वन विभाग में

-रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर,12 फरवरी 2023 (घटती-घटना)। आरंभ से यही माना जाता रहा कि वृक्ष और वन सुरक्षित रहे तो ही जनजीवन सुरक्षित रह पाएगा। क्योंकि वायु,जल, मृदा संरक्षण, तापमान नियंत्रण जैसी महती चीजें वनों के अस्तित्व पर ही निर्भर करती हैं। पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण कारक है वृक्ष और वन संपदा। वैसे तो इनके सुरक्षा की जवाबदारी पूरे मानव समुदाय की है। परंतु एहतियात की दृष्टि से सरकारों द्वारा वन विभाग अलग ही गठित किया गया है, जिनका मुख्य कार्य वनों का संरक्षण, वन्य जीवों का संरक्षण एवं वन संपदा में उत्तरोत्तर विधि करने का है। परंतु जब रक्षक ही भक्षक का कार्य करने लगें तो विनाश होना तय है। जब तक मानव जाति की पहुंच वनों के भीतर तक नहीं थी, वन संरक्षित और सुरक्षित थे। तथाकथित आधुनिक विकास की बुनियाद ने अभिन्न के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। वनों के भीतर अवैधानिक निर्माण कार्यों ने निरंतर क्षति पहुंचाई है। तथाकथित विकास क्रम के कारण हजारों लाखों वृक्ष बेवजह काटे जा रहे हैं।
ताजा मामला ग्राम पंचायत बरदिया के आगे गोबरी जलाशय के ऊपर सर्व पूजनीय चामट पहाड़ का है। जहां वन विभाग द्वारा औचित्यहीन सड़क निर्माण कार्य कराया जा रहा है। जिसे पहाड़ के ऊपर ले जाकर छोड़ा जा रहा है। इस निर्माण कार्य की वजह से हजारों पेड़ों की कटाई कर दी गई है। एक ओर जहां पर्यावरण विभाग का स्पष्ट निर्देश है कि विषम परिस्थिति को छोड़ वनों के अतिरिक्त कहीं भी हरे भरे वृक्षों को काटना मना है। वहीं वन विभाग द्वारा सड़क निर्माण के लिए हजारों वृक्षों की बलि देना कहां तक जायज है। जबकि इस अंत हीन सड़क से किसी विशेष सुविधा की प्राप्ति नहीं होने वाली। सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे निर्माण कार्यों की स्वीकृति कैसे और क्यों मिल जाती है?? जबकि जिम्मेदार उच्चाधिकारियों को भी यह बात पता होती है कि ऐसे निर्माण कार्यों के फल स्वरुप वनों का विनाश होना तय है। आंकड़ों में चाहे लाख दावे किए जाएं, परंतु हर वर्ष होने वाले इस प्रकार के निर्माण कार्यों से वनों का क्षेत्रफल लगातार कम होता जा रहा। जबकि यह ऐसे संरक्षित क्षेत्र हैं जहां पर वन विभाग के अतिरिक्त अन्य किसी का हस्तक्षेप भी नहीं चलता। अन्य विभाग के किसी भी प्रकार के कार्य के लिए वन विभाग का अनापçा लेना आवश्यक होता है। परंतु जब विभाग स्वयं ऐसे कृत्यों के लिए जिम्मेदार हो तो सवाल उठना लाजमी है।
कटे वृक्षों की गणना ना हो पाए, इसके लिए ठुंठों को नेस्तनाबूद किया जा रहा
सड़क निर्माण कार्य के लिए हजारों की तादाद में जो वृक्ष काटे गए हैं, उनके गिनती को छुपाने के लिए वन विभाग के अधिकारियों द्वारा विशेष सतर्कता बरती जा रही एवं जेसीबी तथा अन्य बड़ी मशीनों के माध्यम से काटे गए वृक्षों के ठुठों को या तो खोद कर उसके ऊपर मिट्टी डाली जा रही या किसी भी प्रकार से? इनको गायब किया जा रहा। ताकि कटे हुए हरे भरे वृक्षों की गणना न की जा सके। यदि सड़क निर्माण के लिए काटे जाने वाले वृक्षों की स्वीकृति जायज है, तो फिर कटे वृक्षों की गिनती छुपाने के लिए ऐसा प्रयास क्यों किया जा रहा? यह बड़ा सवाल है या फिर सड़क निर्माण की स्वीकृति के लिए गलत आंकड़े पेश कर स्वीकृति हासिल की गई होगी, जिसमें यह दर्शाया गया होगा कि अधिक वृक्षों को काटने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सवाल यह उठता है कि निर्माण कार्य में संलिप्त अधिकारियों को जमीनी स्तर पर जब वास्तविक जानकारी होगी ही तो वनों को विकसित करने के बजाए विनाश की मंशा क्यों?
वन विभाग के अनाप-शनाप निर्माण कार्यों से वनों का अस्तित्व खतरे में
निर्माण कार्यों से अर्जित लाभ की मंशा ने वनों के भीतर तक विभिन्न प्रकार के तथाकथित विकास यथा सड़क, तालाब, पुल पुलिया, शेल्टर हाउस जैसे निर्माण ने आम इंसान की पहुंच वनों के भीतर तक पहुंचा दी। जिससे न तो वन सुरक्षित रह पाए ना ही वन्यजीव। आलम यह है कि जंगल तो शनै शनै समाप्ति की ओर बढ़ रहे हैं और जंगली जानवर शहर की ओर। जिनकी बानगी यदा-कदा देखने को मिल जाती है। वनों के भीतर अधिकांश होने वाले निर्माण कार्यों में भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें भी लगातार मिलती रहती हैं। परंतु विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। आलम ऐसा ही रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि ना तो वन बचेंगे और ना ही वन विभाग।
कोरिया के पटना स्थित देवगढ़ धाम का मामला करोड़ो रूपये के निर्माण के लिए पेड़ों की बलि
पटना स्थित ग्राम पंचायत करहीयाखाड़ के नानभान देवगढ़ धाम में वन विभाग के द्वारा करोड़ो रुपये की लागत से देवगढ़ धाम चामट पहाड़ के बिचो बिच त्रिलोकी धाम तक मशीनों से सड़क का निर्माण कार्य कराई जा रही है। जबकि साल में एक बार ही श्रद्धालुओं का आना जाना होता है वह भी वह पहाड़ के रास्तों से धाम तक पहुंचकर पूजा-अर्चना बड़ी आसानी से कर लेते हैं, एक समय के लिए आवागमन को लेकर करोड़ों रुपए खर्च कर पहाड़ को तोड़ कर पेड़ों को काटकर कच्ची सड़क निर्माण का कार्य किया जा रहा है जो पहली बरसात में ही धारा सही हो जाएगी इस बात का भी अंदेशा आज से ही लगाया जा रहा है। वहीं दुसरी तरफ सड़क निर्माण कार्य के दौरान पहाड़ के हरे भरे वृक्षो को विभाग के द्वारा बड़ी बेरहमी से कटाई कराई जा रही है। सूत्रो के अनुसार वन विभाग ने पेड़ो को काटने का कोई आदेश संबंधित ठेकेदार को नहीं दिया गया है। वही देवगढ़ धाम के प्रांगण मे भी निर्माण कार्य में ठेकेदार के द्वारा जमकर अनियमितता को जा रही है।
निर्माण कार्य में गड़बड़ी,छुपाने के लिए ठेकेदार के दलाल पत्रकारो को निर्माण स्थल आने से रोकते है
देवगढ़ धाम मे वन विभाग को सड़क निर्माण कार्य के लिए करोड़ो रूपये की प्रशासनिक स्वीकृति राशी के बावजूद संबंधित अधिकारी व ठेकेदार के द्वारा आपसी सांठ गांठ कर निर्माण कार्यो में खुलेआम स्तरहीन निर्माण सामाग्रियों का उपयोग कर रहे है। मामले की जानकारी मिलने के बाद स्थानीय पत्रकारों ने इसकी जानकारी लेने देवगढ़ धाम पहुंचे तो निर्माण स्थल पर पहले उपस्थित ठेकेदार के नामी दलाल पत्रकारो को निर्माण स्थल का फोटो विडियो बनाने पर आपति करते हैं। दलालो का कहना है की हमें अधिकारियों ने कह रखा है की जबतक निर्माण कार्य चलेगा तब तक किसी भी पत्रकार को निर्माण स्थल का फोटो विडियो ना बनाने देना।
आखिर निर्माण स्थल पर क्यों नहीं लगा है सुचना पटल?
वन विभाग के द्वारा देवगढ़ धम मे करोड़ो रूपये की लागत से सड़क का निर्माण कार्य कराया जा रहा। लेकिन संबंधित अधिकारी निर्माण स्थल पर सुचना पटल लगाना भुल चुके है। जिससे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वन विभाग के अधिकारी निर्माण कार्य को लेकर कितने गंभीर है। विभागीय निर्माण कार्यों मे कार्य शुरू करने से पहले निर्माण स्थल पर एक सुचन पटल बनाकर उसमें योजना लागत राशि सहित निर्माण कार्य की पुरी जानकारी अंकित करनी होती है। स्थानीय ग्रामीणो का कहना है की वन विभाग का अधिकांश निर्माण कार्य में बिदित बोर्ड नहीं लगाया जाता है। लेकिन जैसे ही निर्माण कार्य पूर्ण होता है विभाग के द्वारा जैसे तैसे बोर्ड लगाकर प्रशासनिक राशि का बंदरबांट कर ली जाती है।


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