बैकुण्ठपुर@पटना क्षेत्र के तीनों सहकारी समितियों में बड़े मामले हुए दर्ज,गिरफ्तारी कब?

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  • क्या कांग्रेसी के नेतृत्व में पैलेस जाकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी इसलिए नहीं हो रही गिरफ्तारी?
  • क्षेत्र के तीनों सहकारी समितियों और कार्यरत कर्मचारियों की विवादित कार्यशैली सुर्खç¸यों में
  • करोड़ों के गबन,एट्रोसिटी एक्ट और धारा 420 के तहत दर्ज हुए मामलों में गिरफ्तारी के लिए विभाग निष्कि्रय क्यों?

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 07 फरवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले में सहकारी समिति पटना एवं इस समिति से अलग होकर विगत वर्ष नवनिर्मित दो समितियां क्रमशः गिरजापुर एवं तरगांवा सुर्खियों में हैं। विगत कुछ दिनों में उपरोक्त तीनों समितियों में तीन अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं। जोकि गंभीर धाराओं के अंतर्गत आते हैं। सहकारी समिति पटना के समिति प्रबंधक अनूप कुशवाहा एवं धान खरीदी प्रभारी राजेश साहू के ऊपर एक किसान ने धान बिक्री के दौरान गाली गलौज, धमकी एवं अपशब्दों के प्रयोग का आरोप लगाया है। क्योंकि किसान अनुसूचित जनजाति वर्ग का है, अतः समिति प्रबंधक अनूप कुशवाहा एवं धान खरीदी प्रभारी राजेश साहू के ऊपर एट्रोसिटी के तहत पटना थाना में मामला दर्ज है। जिन धाराओं में मामला पंजीबद्ध हुआ है, वह गैर जमानती हैं। बावजूद इसके संरक्षण के कारण उक्त आरोपियों की गिरफ्तारी अभी तक नहीं हो पाई है। वहीं पटना से अलग होकर बनी नवनिर्मित समिति गिरजापुर के समिति प्रबंधक सुरेंद्र राजवाड़े एवं फड़ प्रभारी के ऊपर धारा 420 के तहत मामला दर्ज है। प्रकरण कुछ ऐसा था कि शासन को चूना लगाने के मकसद से फर्जी धान खरीदी की गई एवं कागजों में की गई खरीदी को सही दर्शाने के लिए मिलरों को नगद राशि का भुगतान किया गया। और बारदाना की संख्या मेंटेनेंस करने के लिए समिति से बारदाना को समिति कर्मचारियों के घर रखवाया गया था। मामला भी छोटा-मोटा नहीं अपितु करोड़ों के लेनदेन से जुड़ा हुआ है। परंतु मामला पंजीबद्ध हो जाने के बाद भी अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हो पाई है।
तीसरा मामला तरगांवा समिति से संबंधित है, जहां समिति में पंजीकृत अमहर निवासी किसान अजय कुशवाहा एवं उनके भाई अरविंद कुशवाहा के ऊपर धारा 420 के तहत मामला दर्ज है। यह प्रकरण भी कुछ अजीबोगरीब था। जहां मिलीभगत के माध्यम से तहसीलदार की आईडी से रकबा बढ़ाने एवं लाभ लेने उपरांत रकबा को घटाने का खेल चल रहा था। इस मामले में भी शासन के प्रति फर्जीवाड़ा किया गया था और शासन को लाखों का चूना लगाया गया था। गंभीर धाराओं में दर्ज इस मामले पर भी अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। जोकि संदेहास्पद है। क्योंकि उपरोक्त तीनों मामले एक ही क्षेत्र के सहकारी समितियों से जुड़े हैं, जिनमें एक लॉबी हावी होकर सिंडिकेट की तरह समितियों में कार्यरत है। साथ ही आरोपियों को तथाकथित रूप से सत्ता का संरक्षण प्राप्त है।
बड़ी धाराओं के बावजूद अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं
उपरोक्त समितियों से जुड़े तीनों मामले भारतीय दंड संहिता के गंभीर धाराओं के अंतर्गत पंजीकृत हैं, जो की जमानत योग्य नहीं है। बड़ी धाराओं के बावजूद उपरोक्त तीनों मामलों में इतना समय बीत जाने के बाद भी एक भी गिरफ्तारी का ना होना पुलिस विभाग की अकर्मण्यता एवं लापरवाही को प्रदर्शित करता है। जबकि आम व्यक्ति के ऊपर साधारण धाराओं में भी मामला दर्ज होने पर पुलिस विभाग तत्कालीन कार्यवाही करने से नहीं चूकता। सूत्रों की माने तो तीनों मामलों में आरोपित व्यक्तियों को राजनीतिक रसूखदारों का संरक्षण प्राप्त है। जिन के निर्देश पर जमानत की सुनवाई होने तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं करने को कहा गया है। सवाल यह उठता है कि 2 मामलों में जहां शासन को लाखों और करोड़ों का चुना लगाया गया उसी सत्ता के नुमाइंदों द्वारा इस प्रकार आरोपियों के बचाव का प्रयास कहां तक उचित है। वहीं तीसरे मामले में एक पीडि़त किसान की व्यथा को सुनने की बजाय एवं उसे न्याय दिलाने की पैरोकार करने की जगह तथाकथित किसान हितैषी पक्ष और विपक्ष के नेता आरोपितों के संरक्षण में लगे हों, तो किसानों के समृद्धि का सपना देखना पूरी तरह हास्यास्पद लगता है।
किसके शह पर गैर जमानती धाराओं के बावजूद आरोपी खुलेआम घूम रहे?
पुलिस विभाग स्वत: में इतना सक्षम होता है कि आरोपी आकाश में छुपा हो या पाताल में उसे ढूंढ ही निकलती है। विभाग के पास अनेक जरिए होते हैं, उनके मुखबिर होते हैं और जब विभाग ठान ले तो कुछ भी असंभव नहीं है। परंतु गंभीर प्रवृçा के गैर जमानती धाराओं मैं अपराध पंजीबद्ध होने के बाद भी काफी समय बीतने पर भी पुलिस विभाग के हाथ खाली हैं। और एक भी गिरफ्तारी अभी तक नहीं हो पाई, जो कि संशय पैदा करता है। सूत्रों के अनुसार विभाग पर भी अग्रिम जमानत की सुनवाई होने तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही ना करने का दबाव है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो भ्रष्टाचारियों और धोखाधड़ी के आरोपियों के हौसले तो बुलंद होंगे ही, साथ ही समाज में भी एक गलत संदेश प्रसारित होगा कि आप चाहे कितना भी गलत कर लो, यदि धनबल और राजनीतिक प्रभाव है, तो आप पर किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं हो सकती।
आरोपियों का सत्ता परिवर्तन के साथ अवसरवादी रहना,क्या उन्हें मामले में गिरफ्तारी से बचा रहा?
पूरे मामलों में गौर करने वाली बात यह भी है कि उक्त समितियों के प्रबंधक अनूप कुशवाहा, सुरेंद्र राजवाड़े, राजेश साहू इन सब का संबंध भाजपा के शासनकाल में 15 वर्ष तक भाजपा के साथ था। जैसे ही सत्ता परिवर्तन हुआ, इन्होंने कांग्रेस के गमछे को अपने गले की शोभा बनाई। कहने का लब्बोलुआब आब यह है कि सत्ता परिवर्तन के साथ ही अवसरवादी यह लोग पक्ष विपक्ष दोनों के शासनकाल में मलाई खा रहे हैं। उक्त समिति प्रबंधकों जिनमें से एक पूर्व मंत्री भैया लाल राजवाड़े के रिश्तेदार हैं, ने सत्ता परिवर्तन के बाद ही स्थानीय कांग्रेसी के नेतृत्व में पैलेस जाकर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की। जिस पर काफी हो हल्ला भी हुआ था। पर समिति के माध्यम से होने वाली कमाई ने अवसरवादीता को जन्म दिया। कुल मिलाकर बात यह है कि सत्ता का संरक्षण प्राप्त होने के कारण ही इतने बड़े पैमाने पर घोटाले को अंजाम देने एवं पूरा मामला सामने आने पर भी अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हो पाई। जबकि कुछ ऐसे ही मामलों में अन्य जिलों के समिति कर्मचारियों पर मामला पंजीबद्ध होने के तत्काल बाद ही गिरफ्तारी की खबरें आ रही है। क्या कारण है कि कोरिया जिले में गंभीर धाराओं में पंजीबद्ध आरोपियों की गिरफ्तारी में अड़चनें आ रहि हैं?
एट्रोसिटी मामले में पीडि़त पर बनाया जा रहा दबाव एवं मामला वापस लेने की दी जा रही धमकी
सूत्रों के अनुसार पटना समिति में धान बेचने गए जिस किसान ने समिति प्रबंधक एवं धान खरीदी प्रभारी के ऊपर गाली गलौज एवं अपशब्दों के प्रयोग का आरोप लगाया है, उस पर विभिन्न तरीकों से मामले को वापस लेने के लिए दबाव बनाया जा रहा है। एवं धमकी दी जा रही है। मामला चुंकी एट्रोसिटी एक्ट से जुड़ा है, जो कि गैर जमानती है, अतः आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी होनी थी। परंतु इतना दिन बीत जाने के बाद गिरफ्तारी न होने के कारण आरोपियों के हौसले बुलंद हैं और वे उक्त किसान पर मामला वापस लेने के लिए एन केन प्रकारेण दबाव बना रहे हैं। उक्त बातें किसान से बातचीत के दौरान प्रकाश में आई।
जिले की विकेंद्रित सत्ता सीनों के नुमाइंदे और धन के प्रभाव के कारण गिरफ्तारी की तलवार से परे आरोपी
उपरोक्त तीनों प्रकरणों में सूत्रों के हवाले से एक और बात गौरतलब है, की कोरिया जिले में सत्ता पक्ष के विकेंद्रीकरण ने मामलों को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया है। क्योंकि जिले में सत्ता पक्ष के कई गुट क्रियाशील हैं, जो अपने अधीनस्थों की संख्या बढ़ाने एवं समर्थक बनाने के प्रयास में पंजीबद्ध आरोपियों को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। कहीं ना कहीं पूरे मामलों में धनबल का भी जोर एवं प्रभाव है, जिस के उपयोग के कारण कई लोगों के हाथ बंधे हुए हैं। जिससे आरोपियों को आगे की मनमर्जी कार्यवाही के लिए पूरा समय मिल रहा है। वहीं सोचनीय बात यह भी है कि ऐसे मामले यदि आम जनता पर पंजीकृत होते तो अभी तक जेल दर्शन हो चुका होता। परंतु शायद इसे ही राजनीतिक प्रभाव का पैमाना माना जाता है, कि आपकी गलती का आकार कुछ भी हो कार्यवाही सिफर होगी। बहरहाल गेंद पुलिस के पाले में है,और देखना यह है कि इतने गंभीर धाराओं के अपराध को पुलिस कितनी गंभीरता से लेती है।


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