बैकुण्ठपुर@गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान को इको टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का प्रयास:डायरेक्टर आर रामाकृष्णा वाय

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  • गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान कोरिया में बना भारत का पहला ट्रैकिंग टैक
  • इस साल 13 वीं ट्रैकिंग टीम पहुंच चुकी है जिनमें से कई परिवार के साथ पहुंचे हैं जिनमें कुछ डॉक्टर हैं तो कुछ आईटी प्रोफेशनल्स
  • कैंप साइट में ट्रैकिंग करने पहुंचे देशभर से आए ट्रैकर जिसमें बच्चे भी शामिल हैं

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर,28 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान को भारत का पहले इको टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में डेवलप करने कदम बढ़ाया गया है। वहीं इकलौता नेशनल पार्क में पहला ट्रैकिंग ट्रैक बन गया है। हिमालय की पहाड़ी पर ट्रैकिंग कराने वाली नामी कंपनी इंडिया हाइक से अनुबंध होने के बाद इस साल अक्टूबर से जनवरी तक ट्रैकिंग टीम पहुंच चुकी है। देश भर में सिर्फ गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के जंगलों में ट्रेकिंग की जा रही है, पूरे देश भर के अलग अलग हिस्सों से ट्रैकर यहां पहुंचें है, इनमें कुछ तो सपरिवार है, इन ट्रैकर में आईटी सेक्टर से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर, वकिल के साथ सरकारी अधिकारी भी है जो जंगल के बीच टेंट में रहकर यहां के रोमांच का आंनद उठा रहे है। इस संबंध में गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान के संचालक वायआरएस रामाकृृष्णन ने बताया कि इस वर्ष इंडिया हाईट्स के द्वारा पार्क में टैकिंग का आयोजन किया गया है, इकोफेंडली टैकिंग के तहत देशभर से टैऊकर यहां आए हुए है अभी तक 13 बैच में ट्रैकर आ चुके है, एक बैंच और आएगा, 15 अक्टूबर से 15 फरवरी तक ट्रैकिंग का आयोजन किया जाता है।
जानकारी के अनुसार कोरिया जिले में स्थित गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में देश के कोने कोने से दो दर्जन ट्रेकर आए हुए है, पार्क के घने जंगलों के बीच छोटे छोटे टैंट लगाकर रात और दिन वहीं रूक कर ट्रैकिंग का आन्नद ले रहे, इसमें दिल्ली, बैगलोर, हैदराबाद, पुणे सहित विदेशी ट्रैकर भी पहुंचें हुए है। इंडिया हाईट्स देश भी में ट्रेकिंग को प्रमोट करती है, गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में ट्रैकिंग की पूरी व्यवस्था उसी की है। ट्रैकर सुबह उठ कर पहले थोड़ा करसत करते है, इसमें महिलाएं और छोटे छोटे बच्चे भी शामिल है उसके बाद प्रतिदिन पहाड़ो से होकर लगभग 10 किमी की दूरी तय कर दूसरे छोर पहुंचते है, जहां रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन के लिए वे तैयार होते है।
कचरा प्रबंधन खुद करते है ट्रैकर
पार्क में ट्रैकिंग के लिए आए ट्रैकर कचरा प्रबंधन खुद करते है, हर ट्रैकर अपने साथ एक थैली साथ रखता है, दूसरे लोगों को फेंका कचरा भी यह उठाते ही है, साथ खुद के द्वारा किए कचरे को इकट्ठा कर डिस्पोज करते है। जहां रूकते है वहां से जाते वक्त उसको उसी हाल में ठीक करके जाते है।
इकोफेंड्रली है व्यवस्था
इंडिया हाईट्स के अधिकारी श्री नितेश बताते है कि ट्रेकर जहां रूकते है, उनके लिए इको फेंडली बायोटायलेटस लगाए जाते है, प्लास्टिक को दूर रखा जाता है। खुले में शौच करना हानिकारक होता है, बायो टायलेटस में गड्ढा खोद कर मल पर नारियल का बुरादा डाला और टायलेट पेपर को उसी गड्ढे में डाल देते जिसके बाद इसे बंद कर देते है, जिसके बाद ये खाद बनकर तैयार हो जाता है और ये पर्यावरण के लिए काफी बढिया है और इसे लगाना भी बेहद आसान है।
बढ़ सकती है ट्राइबल लाइफ स्टाइल नेचर के प्रति लोगो की रुचि
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान अफसरों ने बताया कि ट्रैकिंग का मुख्य उद्देश्य है, जीवन में प्रकृति, वन्यजीव और आदिवासी संस्कृति से परिचय कराना। ट्रैकर अपनी फैमिली के साथ बच्चों को लेकर भी पहुंच रहे हैं और प्रकृति को करीब से देख व समझ रहे हैं। जिससे बच्चे बड़े होकर प्रकृति को बचाने, संरक्षित करने को लेकर बेहतर काम कर पाएंगे।
गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान को इको टूरिज्म डेस्टिनेशन के रूप में विकसित करने का प्रयास है। यह भारत का पहला ट्रैकिंग टैक है, जो किसी राष्ट्रीय उद्यान में बना हुआ है। इस साल 13वां बैच पहुंचा है। जिसमें करीब 300 ट्रैकर शामिल हैं।
आर रामाकृष्णा वाय,
डायरेक्टर गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान, कोरिया


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