अंबिकापुर,@‘तू मुझे आशीष दे मां,मैं तेरा वंदन करूं,प्राण देकर रक्त से मैं,मस्तक तेरा चंदन करूं’

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वसंत पंचमी व मां सरस्वती के प्रकटोत्सव पर समाजसेविका वंदना दाा के संयोजन में आयोजित हुआ काव्यगोष्ठी

अंबिकापुर,28 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। वसंत पंचमी पर समाजसेविका वंदना दाा के संयोजन में उनके ही विद्या मंदिर में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन शायर-ए-शहर यादव विकास की अध्यक्षता में किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री मीना वर्मा और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ गीतकार व संगीतकार अंजनी कुमार सिन्हा थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मीना वर्मा व वंदना दाा ने महाकवि निराला द्वारा विरचित मां सरस्वती के सुप्रसिद्ध वंदना गीत- वर दे वीणा वादिनी वर दे- की सस्वर प्रस्तुति से किया। कवयित्री पूर्णिमा पटेल ने अपने मधुरिम स्वर में स्वरचित गीत- नित नयन जल से पखारूं पांव तेरे शारदे, हाथ मेरे सर पे रख दे कर दया मां शारदे- सुनाकर वातावरण को भक्तिभाव से सराबोर कर दिया। शदकार माधुरी जायसवाल ने मां शारदा के विषय में सही कहा कि- शद-शद में बसनेवाली झोली भर देती मां। प्रकाशपुंज दिखाकर, जीवन जगमग कर देती मां। कवयित्री राजलक्ष्मी पाण्डेय ने भी मां भारती के प्रति अपनी सहज कृतज्ञता ज्ञापित की- तुमसे महका मेरा जीवन, जीवनदायिनी हो मां। मेरा हौसला हो तुम, मधुर मुस्कान तुम हो मां। ऐसा शद नहीं कोई जिसमें तुमको लिख दूं मां। अनिता मंदिलवार ने मां वीणापाणि से छंदों का ज्ञान देने की प्रार्थना कर डाली- मुझे ज्ञान दो शिल्प का, छंद का मां, सवैया लिखूं जो मिले भावधारा। निखारो सदा आप गीतों की माला। नग़मानिगार व मलिका-ए-तरन्नुम पूनम दुबे ने मां हंसवाहिनी से श्रेष्ठ काव्यसृजन का वरदान देने का आग्रह किया- करती मां तुझको वंदन, ज्ञान-ज्योति मुझमें भर दो, भाव की सुंदर छटा हो नित्य शारदे ये वर दो।
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती वसंत पंचमी के दिन ही मनाने की परंपरा है। वरिष्ठ गीतकार अंजनी कुमार सिन्हा ने महाप्राण निराला जी को मां वीणावती का सबसे प्यारा पुत्र बताते हुए उनके स्वभाव का सटीक चित्रण किया- वीणापाणि के नयनों का सबसे प्यारा तारा था, कभी-कभी हिम-सा शीतल और कभी अंगारा था। आंधी के संग दौडऩेवाला तूफ़ानों का पाला था। तन चंदन-जैसा था उसका, मन तो एक शिवाला था। वरिष्ठ कवयित्री गीता दुबे ने शानदार वासंती रचना की प्रस्तुति दी- वासंती का सार प्रेम है, जीवन का आधार प्रेम है। प्यार का मौसम है वसंत। प्यार नहीं तो है रिश्तों का अंत!
कवि प्रकाश कश्यप को वसंत के मौसम में अचानक अपना गांव याद आ गया, बचपन की यादें ताज़ा हो उठीं। उनके दिल में गांव छोडऩे की जो टीस है, कसक है, वह उनके इस गीत में छलक पड़ी- आ गया हूं शहर छोड़ प्यारा-सा घर। कट रही है यहां कैद में अब उमर। कौन जादू न जाने यहां कर गया, भीड़ तो है मगर आदमी मर गया! वसंत पंचमी के दिन गणतंत्र दिवस होना कवियों के लिए सोने में सुहागा-जैसा रहा। गोष्ठी में देशभक्तिपूर्ण रचनाओं का जो दौर शुरू हुआ, वह महफि़ल उठते तक बदस्तूर जारी रहा। फिल्म एक्टर, डॉयरेक्टर व कवि आनंद सिंह यादव ने भारतीय गणतंत्र को देश के लाखों वीरों की शहादत से प्राप्त आज़ादी का सुफल बताया- गणतंत्र हुआ जब देश हमारा, वीरों की शहादत रंग लाई। आज़ादी का नया रंग तब देश को समझ में आया। कवि अजय श्रीवास्तव ने अपने दिल का दर्द अपनी कविता में उड़ेला- अब कहीं सौहार्द्र की बातें भी होती नहीं, अब तिरंगे के लिए कोई क¸सम खाता नहीं। मातृभूमि की वंदना पूर्णिमा पटेल ने अपने काव्य में जहां बखूबी की- सूरज-चांद-सितारों-सा चमके तेरा नाम, मेरे देश की धरती तुझे सलाम, वहीं शायर-ए-शहर यादव विकास ने भारत की ख्याति पूरे विश्व में व्याप्त होने की बात कही- हम नहीं तो जहां नहीं होता, हमारा नाम कहां नहीं होता? वहां नहीं है प्यार की खुशबू- जहां पर हिन्दुस्तान नहीं होता। प्रख्यात कवयित्री आशा पाण्डेय ने अपने दोहों में देश का जयघोष करते हुए वीर सैनिकों के अप्रतिम शौर्य व पराक्रम का जीवंत चित्रण किया- मां के वीर सपूत तो होते हैं जांबाज़। उनपर पूरा देश तो, करें सदा ही नाज़। करते हैं नाकाम वो, दुश्मन के हर राज़। करते रणभेरी भरा, जहां युद्ध आगाज़। गीतकार राजेन्द्र राज ने ऐसी सरगुजिहा कविता पढ़ दी कि श्रोता अपनी हंसी पर क¸ाबू न पा सके- तुमन तिरंगा झिन खावा, खाय-खाय के तुमन झिन मोटावा। गीतकार संतोष सरल ने अपनी कालजयी उत्कृष्ट गीत रचना से काव्यगोष्ठी को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं- तू मुझे आशीष दे मां, मैं तेरा वंदन करूं, प्राण देकर रक्त से मैं, मस्तक तेरा चंदन करूं। जाने-माने दोहाकार व शायर मुकुंदलाल साहू ने अपने दोहों में देश की विविधता में एकता की बात करते हुए गणतंत्र दिवस को सार्थक बनाने का आव्हान किया- रंग, जाति, आकार सब, भाषा, भेद अनेक। पंथ अलग, मज़हब अलग, राष्ट्र हमारा एक। गूंजे भारतवर्ष में, सदा प्रेम का मंत्र। जन-जन के सहयोग से, महक उठे गणतंत्र। अंत में, डॉ0 योगेन्द्र सिंह गहरवार की प्रेरणादायी, मार्मिक व विचारोोजक कविता से काव्यगोष्ठी का यादगार समापन हुआ- दीन-हीन अति निर्बल से जब भी कोई छल होगा, सत्य, अहिंसा का ही केवल उसके पास तब बल होगा। जब उसकी भयकंपित बोली सत्याग्रह बन जाएगी- तब-तब हमको गांधी बाबा याद तुम्हारी आएगी। गोष्ठी में अभिनव चतुर्वेदी और ममता चैहान ने भी अपनी श्रेष्ठ रचनाओं की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का काव्यमय संचालन संतोष सरल और आभार वंदना दाा ने जताया। इस असवर पर डॉ0 अपेक्षा सिंह, लीला यादव, तनुश्री मिश्रा, अनिमा मजुमदार, नेहा वर्मा, साधना कश्यप, जयंती सहित अन्य काव्यप्रेमी भी उपस्थित रहे।


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