नई दिल्ली , 06 जनवरी 2023 (ए)। भारत आगामी 12 और 13 जनवरी को विश्व भर के 120 से अधिक दक्षिणी देशों के पहले सम्मेलन का वर्चुअल माध्यम से आयोजन करने जा रहा है जिसमें ऊर्जा एवं मानव केन्दि्रत आर्थिक विकास को लेकर इन विकासशील देशों की चिंताओं, चुनौतियों, हितों एवं प्राथमिकताओं के बारे में विचार मंथन होगा जिसके निष्कर्ष का जी-20 के एजेंडे पर भी प्रभाव पड़ने की संभावना है।
विदेश सचिव विनय मोहन मत्रा ने आज यहां एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी जानकारी देते हुए कहा कि दक्षिणी देशों की आवाज़ का यह वैश्विक सम्मेलन या वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट भारत की एक अनूठी पहल है तथा इसका आयोजन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास एवं सबका प्रयास के विज़न तथा वसुधैव कुटुम्बकम के मंत्र के आधार पर किया जा रहा है। मत्रा ने बताया कि इस सम्मेलन में विश्व के दक्षिणी छोर पर स्थित 120 से अधिक देशों को आमंत्रित किया गया है जो अधिकांशत: विकासशील देश हैं और उनकी आवाज़ वैश्विक मंचों पर या तो दबी या अनसुनी रह जाती है। इस सम्मेलन में किसी भी अंतरराष्ट्रीय संस्था या संगठन को आमंत्रित नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि दो दिन के इस सम्मेलन में कुल दस सत्र होंगे जिनमें दो सत्र शिखर नेताओं के तथा आठ सत्र मंत्रिस्तरीय होंगे।
प्रत्येक सत्र में दस से लेकर बीस देश तक शिरकत करेंगे। दोनों दिन तीन-तीन सत्र समानांतर चलेंगे। पहले दिन वित्त मंत्री, पर्यावरण मंत्री और विदेश मंत्री का सत्र होगा। दूसरे दिन ऊर्जा मंत्री, स्वास्थ्य मंत्री, शिक्षा मंत्री और वाणिज्य मंत्री सत्र आयोजित किये जाएंगे।
उन्होंने कहा कि वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में आर्थिक चुनौतियों, विकास के लिए वित्तपोषण के उपायों, वित्तीय सहायता, वित्तीय समावेशन, तकनीकी एवं डिजीटल पहल के उपयोग के साथ साथ विदेशी ऋण के कुचक्र से बचाव के बारे में भी चर्चा होगी। पर्यावरण मंत्रियों के सत्र में संतुलित विकास एवं पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली पर चर्चा होगी जबकि विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में दक्षिणी छोर के देशों की प्राथमिकताओं पर बात होगी।
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