बैकुण्ठपुर@पहले प्रत्याशी ढूंढने में हुई मशक्कत,अब प्रचार में पिछड़े,बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन?

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  • आखिर क्यों कांग्रेस ने उन्हें बनाया प्रभारी जो खुद बिना पार्टी समर्थन के लड़ चुके हैं जिला पंचायत सदस्य का चुनाव?
  • क्या उपचुनाव को लेकर भी कांग्रेस के अंदरखाने में एक दूसरे को निपटाने की चल रही साजिश?
  • विधायक उपचुनाव छोड़ विधानसभा सत्र में हैं मौजूद,ऐसे में कैसे जीतेगी कांग्रेस उपचुनाव?
  • सत्ताधारी दल कांग्रेस ने जिपं उप चुनाव में उसे बनाया चुनाव प्रभारी जो खुद लड़ चुके हैं बिना समर्थन चुनाव
  • जिला पंचायत उपाध्यक्ष कोरिया को जिला पंचायत सदस्य क्षेत्र क्रमांक 6 के उप चुनाव हेतु बनाया गया प्रभारी
  • क्या वेदांती व योगेश दोनों भाजपा प्रत्याशी को हराने में सफल हो पाएंगे?
  • भाजपा प्रत्याशी काफी मजबूत है क्या इसलिए बिल्ली के गले में घंटी बांधने की जिम्मेदारी वेदांती व योगेश को दी गई?

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 03 जनवरी 2023 (घटती-घटना)। कोरिया जिले का जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 6 का उपचुनाव ठीक उसी कहावत की तरह हो गया है जैसे कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? यह सवाल तब उठ रहा है जब कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए प्रभारी नियुक्त कर दिया है और प्रभारी भी उसे बनाया गया है जो स्वयं जिला पंचायत सदस्य का चुनाव बिना कांग्रेस पार्टी के समर्थन के लड़े थे और जिन्होंने कांग्रेस के ही समर्थित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव लड़कर उसे पराजय का मुंह देखने मजबूर किया था, बात यह भी सामने आ रही है की प्रत्याशी चयन के समय भी किसी की सहमति नहीं ली गई थी और ना ही प्रभारी बनाने के लिए किसी की सहमति ली गई है, ऐसा लग रहा है कि सब कुछ तानाशाह रवैया में जिला अध्यक्ष कर रहे हैं। जिलाध्यक्ष के द्वारा चुनाव प्रभारी के नाम की घोषणा करते ही सवालों की बौछार लग गई है और लगे भी तो क्यों ना क्योंकि यह चुनाव ठीक उसी कहावत की तरह है कि आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा? कांग्रेस ने दो दिग्गजों को भाजपा प्रत्याशी के सामने खड़ा कर दिया है अब सवाल यह है कि कांग्रेस ने वेदांती तिवारी व योगेश शुक्ला को चुनाव प्रभारी बनाकर जिम्मेदारी तो दे दी क्या इस जिम्मेदारी के पीछे भी कोई षड्यंत्र तो नहीं? क्या यह दोनों मिलकर बीजेपी प्रत्याशी को हरा पाने में सफल होंगे? प्रत्याशी इतना मजबूत है कि इस पर यह कहावत एकदम सटीक है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे गा? अब क्या यह दोनों मिलकर प्रभारी बिल्ली के गले में घंटी बांध पाएंगे?
ज्ञात होकी बैकुंठपुर विधानसभा अंतर्गत जिला पंचायत बैकुंठपुर क्षेत्र क्रमांक 6 के उपचुनाव हेतु मतदान के लिए महज चंद रोज बाकी हैं। एक तरह से इस चुनाव को विधानसभा चुनाव 2023 के पूर्व बैकुंठपुर विधानसभा के लिए सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। चर्चाएं भी जोरों पर हैं कि इस चुनाव से आगामी विधानसभा चुनाव की दशा और दिशा तय होगी। पूर्व कैबिनेट मंत्री भईयालाल राजवाड़े जी के पुत्र स्वर्गीय विजय राजवाड़े के असायमिक निधन उपरांत रिक्त हुई इस सीट पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी श्रीमती वंदना विजय राजवाड़े मैदान में हैं। पूरा क्षेत्र एक तरह से छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व कैबिनेट मंत्री भइयालाल राजवाड़े जी का गढ़ माना जाता है क्षेत्र में राजवाड़े समाज के वोटों की बाहुल्यता और भइयालाल राजवाड़े जी का गृह क्षेत्र होने के कारण मतदाताओं में उनका प्रभाव भी व्यापक है। विगत चुनाव में इसी प्रभाव का असर रहा कि स्वर्गीय विजय राजवाड़े ने सत्तासीन कांग्रेस समर्थित कद्दावर प्रत्याशी गणेश राजवाड़े को लगभग 4000 वोटों से मात दी थी। इस उपचुनाव में पूर्व मंत्री पुत्र के निधन से उपजी संवेदना भी भाजपा समर्थित प्रत्याशी के पक्ष में है। यही कारण है कि कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने उपचुनाव लड़ने से सीधे तौर पर इंकार कर दिया। काफी मान मनौव्वल उपरांत कांग्रेस को सामान्य सीट पर जनजातीय समुदाय से उम्मीदवार संजय टोप्पो, जो पूर्व में जनपद सदस्य बैकुंठपुर रह चुके हैं एवं भूतपूर्व जनपद उपाध्यक्ष के करीबी माने जाते हैं के रूप में उम्मीदवार मिला। नामांकन लेते और जमा करते समय भाजपा संगठन और नेताओं की जो एकजुटता दिखाई दी, उससे यह संदेश साफ झलकता दिखाई दिया कि पार्टी उपचुनाव को लेकर कितनी गंभीर है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी द्वारा दो-तीन लोगों की उपस्थिति में ही जब नामांकन फॉर्म लिया गया तो तरह-तरह की चर्चाएं होने लगीं। यहां तक कहा गया कि इस उपचुनाव में कांग्रेस? ने समर्पण कर दिया है। परंतु कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार के नामांकन जमा करने की रैली में वर्तमान विधायक समेत कोरिया कांग्रेसियों का जो हुजूम दिखाई दिया और गाजे-बाजे लाव लश्कर के साथ जिस प्रकार शक्ति प्रदर्शन दिखाया गया, क्षेत्र के लोगों की धारणा बदल गई और यह लगने लगा कि सत्ताधारी कांग्रेस भी इस चुनाव को लेकर गंभीर है।
घटती घटना ने जताया था अंदेशा, अब सच साबित हो रहा
राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह बता पाना मुश्किल है। 15 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद भाजपा का सत्ता से बाहर होना और बैकुंठपुर विधानसभा में कद्दावर मंत्री का चुनाव हारना कई भाजपाई नेताओं के लिए एक अलग द्वार खुलने जैसा रहा। तो वही प्रचंड बहुमत के बाद सत्ता में काबिज कांग्रेस से वर्तमान विधायिका का क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेसियों से तालमेल का अभाव भी अनेक क्षेत्रीय कांग्रेसियों के लिए ताल ठोकने का सुनहरा अवसर लेकर आया। स्वर्गीय विजय राजवाड़े के निधन से रिक्त हुई सीट पर होने वाले चुनाव को तत्कालीन समय से ही सत्ता का सेमीफाइनल माना जाने लगा था। आगामी विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों के दावेदारों लिए यह चुनाव टिकट के सीढ़ी के रूप में सामने आने लगा। आम चर्चाएं थी कि यदि भाजपा यह सीट गंवाती है तो पूर्व मंत्री भैया लाल राजवाड़े का कद कम होगा, वहीं कांग्रेस यह सीट गंवाती है तो वर्तमान विधायिका का? कद आलाकमान के समक्ष गिरेगा, जिससे दावेदारों को अपनी दावेदारी का मौका मिलेगा। घटती घटना द्वारा इस बात का अंदेशा जताया गया था कि टिकट के दावेदार अपनी पार्टी की बखिया उधेड़ने का कार्य करेंगे, जिससे आने वाले समय में उन्हें मौका मिल सके। परंतु जहां पर माना जाता है कि भाजपा एक अनुशासित पार्टी है और यही इस उपचुनाव में परिलक्षित भी हो रहा है।
भाजपा के नेता समर्थित प्रत्याशी के प्रति इमानदारी पूर्वक क्षेत्र में मतदाताओं को रिझाने में जुटे
जहां भाजपा संगठन एवं भाजपा के नेता समर्थित प्रत्याशी के प्रति इमानदारी पूर्वक क्षेत्र में मतदाताओं को रिझाने का कार्य कर रहे हैं। उपचुनाव जीतने के लिए अपनी एड़ी चोटी का जोर लगाकर मतदाताओं के घर-घर दस्तक दे रहे हैं। सोशल मीडिया एवं अन्य माध्यमों से अपनी पहुंच बना रहे हैं। और अभी तक किसी भाजपा नेता के अंदरूनी या बाहरी बगावत की कोई खबरें नहीं आई। परंतु सत्तासीन कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रत्याशी चयन में हुई देरी और नामांकन प्रक्रिया के समय अलग-थलग बिखरा पड़ा सत्ता और संगठन का धड़ा कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। मतदान में कुछ दिवस बाकी हैं, और अभी तक कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी के पक्ष में सत्तापक्ष के नेता और संगठन के लोग वह सक्रियता नहीं दिखा रहे, जितना नामांकन फॉर्म जमा करते समय लाव लश्कर और गाजे-बाजे के रूप में शक्ति प्रदर्शन किया गया था। आलम तो यह है कि चुनावी क्षेत्र में न जाकर कांग्रेसी नेता अलग-अलग क्षेत्रों में भ्रमण कर रहे हैं, और अपने निजी कार्य में व्यस्त हैं। यहां तक की कांग्रेस कमेटी कोरिया द्वारा उपचुनाव के लिए क्षेत्रवार प्रभारियों की नियुक्ति भी की गई है। परंतु अभी तक किसी की सक्रियता दिखाई दे, ऐसा महसूस नहीं हो रहा। सोशल मीडिया में भी चुनाव प्रचार में कांग्रेसी पार्टी पिछड़ती दिख रही है। घटती घटना ने जो अंदेशा जताया था वह भाजपा पर तो लागू नहीं हुआ, परंतु काफी हद तक कांग्रेस पर लागू होता दिखाई दे रहा है। लोग दबी जुबान में जिक्र कर रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव के दावेदार कांग्रेसी हार का ठीकरा वर्तमान विधायक का के माथे मढ़ने को तैयार हैं। ताकि आगामी विधानसभा में उनकी दावेदारी को चुनौती दी जा सके। यही कारण रहा कि कांग्रेस के ऊंचे कद के लोगों ने इस उपचुनाव में उम्मीदवारी से हाथ खींच लिया। शायद उन्हें इस खींचतान का अंदेशा पहले से था।
भाजपा समर्थित प्रत्याशी के प्रचार में पूरी पार्टी और संगठन एकजुट, कांग्रेस प्रत्याशी पड़े अकेले
क्षेत्र क्रमांक 6 के उप चुनाव में एक तरफ जहां भाजपा की साख दांव पर लगी है पूर्व मंत्री एवम पूर्व भाजपा विधायक की साख दांव पर लगी है जहां पूर्व मंत्री एवम पूर्व भाजपा विधायक की पुत्रवधु भाजपा की तरफ से उम्मीदवार हैं और जिसे लेकर भाजपा पूरी संजीदगी दिखा रही है पूरी एकजुटता के साथ प्रचार में जुटी है और अपने प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित करने पूरी भाजपा पार्टी व एक एक पदाधिकारी कार्यकर्ता मेहनत करते देखा जा रहा है वहीं सत्ताधारी दल के प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में कोई भी जोर नहीं देखा जा रहा है। सत्ताधारी दल के नेता या कार्यकर्ता प्रत्याशी को जैसे अकेले छोड़ दिये हैं और बड़ी देर से सत्ताधारी दल ने चुनाव प्रभारी भी नियुक्त किया है जिसको देखकर लगता है कि कांग्रेस ने इस चुनाव में जरा भी गंभीरता नहीं दिखाई है। प्रत्याशी किसी तरह प्रचार कर तो रहें हैं लेकिन उनके अंदर वह उत्साह नहीं नजर आ रहा है जो सत्ताधारी दल के प्रत्याशी में नजर आना चाहिए।
कांग्रेस क्षेत्रीय चुनाव प्रभारियों की सूची हुई थी जारी, प्रभारी क्षेत्रों से अब तक नदारद
सत्ताधारी दल ने चुनाव में क्षेत्रीय चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति की थी लेकिन वह भी तक क्षेत्र में प्रचार करते नजर नहीं आ रहें हैं और प्रत्याशी ज्यादातर अकेले ही नजर आ रहें हैं या सीमित लोगों के साथ अपने बलबूते प्रचार करते नजर आ रहें हैं। क्षेत्रीय प्रभारियों ने भी प्रत्याशी का साथ छोड़ रखा है और उम्मीद है कि अब चुनाव प्रभारी की नियुक्ति के बाद वह शायद सामने आये और कमान प्रचार की सम्हालें।
सत्ता पक्ष के लिए यह उपचुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न, तालमेल के अभाव में नाक बचाए कौन?
वैसे ऐन विधानसभा चुनाव के पहले होने जा रहा यह उप चुनाव जो जिला पंचायत सदस्य के लिए हो रहा है एक तरह से सत्ताधारी दल के लिए प्रतिष्ठा का चुनाव है। सत्ताधारी दल यदि इस चुनाव में पराजय का मुंह देखता है तो यह तय हो जाएगा कि सत्ता की लहर कमजोर पड़ गई है और विधानसभा चुनावों में भी इसका असर पड़ेगा।वहीं सत्ताधारी दल के नेता और कार्यकर्ता आपसी तालमेल के बिना इस चुनाव में जुटे हुए हैं और इसका भी नुकसान सत्ताधारी दल को हो सकता है। कुलमिलाकर सत्ताधारी दल के लिए यह चुनाव अहम है लेकिन उतना गंभीर दल के लोग नजर नहीं आ रहें हैं जितना उन्हें होना चाहिए।
आगामी विधानसभा चुनाव की दशा और दिशा निर्धारित कर सकता है यह उपचुनाव
यदि पिछले सालों में उप चुनावों के नतीजों खासकर जिला पंचायत उप चुनाव के नतीजों पर नजर डाली जाए तो यह बात समझी जा सकती है कि किस तरह यह उप चुनाव भी आगामी विधानसभा चुनाव का दिशा और दशा निर्धारित करेगी। पिछली सरकार जो भाजपा सरकार थी और भाजपा से ही बैकुंठपुर विधानसभा के विधायक भी थे और कैबिनेट मंत्री भी जो थे के कार्यकाल के दौरान बैकुंठपुर विधानसभा अंतर्गत एक जिला पंचायत क्षेत्र में उप चुनाव हुए था और जिसमें भाजपा प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा था और उसके तत्काल पश्चात हुए विधानसभा चुनाव में भी भाजपा चुनाव हार गई थी और जबकि वह सत्ता में थी। पुराने उदाहरण को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस चुनाव में विजेता दल विधानसभा चुनाव में आत्मविश्वास के साथ चुनावी मैदान में उतरेगा और इस लिहाज से दोनों ही दलों के लिए यह महत्वपूर्ण चुनाव है। वहीं सत्ताधारी दल के लिए यह बेहद अहम चुनाव है क्योंकि सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा यहां के विधायक को मिला हुआ है और बावजूद इसके हार कहीं न कहीं उनके लिए गलत होगी और उनके भविष्य के लिए भी राजनीतिक खतरनाक होगी।
जिम्मेदार और ओहदेदार खुद में मस्त, उम्मीदवार पस्त
क्षेत्र क्रमांक 6 जिला पंचायत सदस्य उप चुनाव में सत्ताधारी दल के जिम्मेदार पदाधिकारी अपने अपने मे मस्त हैं। किसी भी जिम्मेदार को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि वह जरा भी गंभीर है उप चुनाव को लेकर। प्रत्याशी किसी तरह चुनाव में अपनी उपस्थिति बनाये हुए हैं लेकिन उनके सहयोग में खुलकर समय देने सत्ताधारी दल से कोई जिम्मेदार उपस्थित नहीं हो रहा है जिसकी चर्चा भी क्षेत्र में जारी है।
स्थानीय विधायक अभी तक नहीं पहुंच सकीं आमसभा तक
बैकुंठपुर विधानसभा अंतर्गत होने वाले जिला पंचायत सदस्य उप चुनाव में सत्ताधारी दल की विधायक एवम छत्तीसगढ़ शासन में संसदीय सचिव अभी तक किसी हाट बाजार में आमसभा में नजर नहीं आईं हैं जो उस क्षेत्र का हाट बाजार है जहां उप चुनाव हो रहा है। वर्तमान में विधायक विधानसभा सत्र में अपनी उपस्थिति देने राजधानी गई हुईं हैं वहीं अब मतदान को भी कुल 5 दिन ही शेष बचे हैं। अब पांच दिनों में कितने दिनों विधायक का क्षेत्र में दौरा होता है कितना वह प्रचार कर पाती हैं सरकार की योजनाओं को कितना समझा पाती हैं यह तो देखने वाली बात होगी लेकिन यह तय है कि अब बहोत कुछ समय प्रचार के लिए बचा नहीं है।


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