- किसान अधिकारी को घेरे खड़े थे, अधिकारी किसानों की समस्या पूछने के बजाय “भीड़ क्यों लगाए हो, हटो” कहकर भगाते दिखे
- किसान बेचारे अपनी समस्या मुंह पर रखे खड़े रहे, समस्या मुंह से बाहर निकलती उससे पहले ही भगा दिए गए
- अधिकारी क्यों भूल जाते हैं कि वह आम लोगों के लिए ही नौकरी कर रहे हैं?
- अधिकारी कमरे में समिति के प्रबंधक से की लंबी चर्चा, क्या समस्या पर हुई बात?
- निगरानी समिति के सदस्य अधिकारियों से चाय और नाश्ता पूछते रह गए पर किसानों की समस्या के बारे में कुछ पूछा
- अधिकारी ने किसानों को बुलाया पर किसानों से समस्या पूछने के बजाय “भीड़ क्यों लगा रहे हो” कहकर हटा भी दिया
–रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 30 दिसम्बर 2022(घटती-घटना)। इस समय छत्तीसगढ़ के सभी जिलों में धान खरीदी हो रही है। धान खरीदी को लेकर किसानों को कोई समस्या ना हो इसे लेकर अधिकारियों का दौरा भी लगातार हो रहा है, पर समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा। समितियों में किसानों से अतिरिक्त पैसे भी वसूले जा रहे हैं और दूसरे के खाते में धान भी खपाया जा रहा है। ऐसी ही एक शिकायत आदिम जाति सेवा सहकारी समिति पटना में भी सामने आई थी, जिसमें यह कहा गया था कि एक किसान के खाते में 350 मि्ंटल धान समिति के कर्मचारी द्वारा खपाया जा रहा है। जिस पर एसडीएम, फूड इंस्पेक्टर व तहसीलदार समिति में पहुंचे, जहां पर घंटों बैठे रहे, इस शिकायत पर क्या हुआ इस बात पर ना तो उन्होंने कोई चर्चा की और ना ही इस पर कुछ ज्यादा बोलने को उनके पास कुछ भी रहा। जिस शिकायत पर जांच करने पहुंचे थे, उस पर अधिकारी ने चुप रहना ही उचित समझा। अब इसकी वजह क्या थी यह तो अधिकारी व समिति प्रबंधक ही जाने। आरआई, पटवारियों को बुलाने के बाद पंचनामा बनाकर सिर्फ उपस्थिति ही अधिकारियों ने दर्ज कराई। बैठकर काफी लंबा समय भी बिताया, सिंघाड़ा भी खाया और किसानों को बुलाने के बाद यह कहा कि भीड़ क्यों लगाए हो? उनकी समस्या जानने के बजाय उस भीड़ को दूर कर गप्पे मारते रह गए।
अधिकारी समिति पहुंचते हैं तो किसानों की समस्या क्यों नहीं पूछते?
धान खरीदी को लगभग 2 महीने बीतने को है आधे से ज्यादा किसानों ने धान विभिन्न समस्याओं के बीच बेचकर छुटकारा भी पा लिया है। छुटकारा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि किसान धान उगाता तो अपनी मर्जी से है, पर बेचता समस्याओं में है। क्योंकि धान खरीदी केंद्र में धान बेचना इस समय कोई आसान काम नहीं रहा, पत्रकारों के पास तो किसान खुलकर अपनी समस्या रख लेते हैं, पर अधिकारियों के पास ना जाने उन्हें क्या हो जाता है कि अपनी समस्या वह रख नहीं पाते? यह बात बहुत दिन से जेहन में उठ रही थी पर अचानक एक वाक्या ने आंख खोल दिया और यह बता दिया कि किसान आखिर अधिकारियों के पास अपनी समस्या क्यों नहीं रख पाते। जो वाक्या पटना समिति में देखने को मिला शायद उस को देखकर यदि कोई मंत्री विधायक या फिर कलेक्टर खुद होते तो शायद अधिकारी को डांट लगा भी देते। वाक्या पर यदि नजर डालें तो कुछ ऐसा था की अधिकारी जब पटना समिति में जांच के लिए आए उसके बाद किसान को बुलाया जब किसान अधिकारी को घेर कर खड़े हो गए कि अधिकारी बुलाए है उनकी समस्या जरूर सुनेंगे, अपनी समस्या मुंह में दबाए खड़े हो गए। बस थोड़ी ही देर में उसी बुलाये हुए अधिकारी ने कहा कि क्यों भीड़ लगाए हो समिति के अधिकारी कर्मचारियों को कहा कि इन्हें हटाओ यहां से। अब क्या था किसान मुंह में? लिये अपनी समस्या लेकर अधिकारियों के सामने से हट गए पर आप सोच सकते हैं यह वाक्यां कितना शर्मनाक था।
धान खरीदी प्रभारियों का खेल, मापने में बड़े-बड़े अधिकारी फैल
समिति का अंशकालीन कर्मचारी जो बतौर धान प्रभारी कार्य कर रहै हैं, आज उनका रुतबा ऐसा है कि बड़े बड़े अधिकारी भी उनके सामने नतमस्तक होकर बदल जाते हैं। लाख शिकायत होने के बाद भी सेटिंग करने में माहिर कर्मचारी किसी भी मामले को बड़ी आसानी से सेलेक्ट लेते हैं।