- विभाजन के बाद कोरिया में प्रशासनिक कसावट ध्वस्त,कलेक्टोरेट में अनुभवी अधिकारियों की दिख रही कमी?
- डिप्टी कलेक्टर के पद भी आधे से ज्यादा रिक्त,दोहरा प्रभार संभाल रहीं बैकुंठपुर एसडीएम अंकिता सोम
- जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी नही दे रहे ध्यान,जनता हो रही परेशान
- रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 22 दिसम्बर 2022 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के विभाजन के बाद अब यहां प्रशासनिक व्यवस्था भी चरमरा गई है, समय पर न तो शासकीय फाईल निपट पा रहा है और न ही आमजन का काम। हालात यह है कि कलेक्टोरेट में अनुभवी अधिकारियों की कमी के साथ ही डिप्टी कलेक्टर के पद भी आधे से अधिक रिक्त हैं, संयुक्त कलेक्टर अंकिता सोम के पास दोहरा प्रभार है वे बैकुंठपुर एसडीएम का काम भी संभाल रही हैं। जिससे कि कलेक्टोरेट में जिस शाखा की ओआईसी हैं वहां से लेकर संयुक्त कलेक्टर के कामकाज पर भी असर पड़ रहा है। एक तरफ शासकीय कर्मचारी हैं जो कि फाईल को लेकर उलझे हुए हैं तो वहीं आमजन का काम जो कि अधिकारियों से संबंधित है वह समय पर नही हो पा रहा है। यहां के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी शासकीय कार्यक्रम में शामिल होकर फोटो खिचाने तक सीमित रह गए हैं, उन्हे अपनी जिम्मेदारी का थोड़ा भी एहसास नही है।
जिले में सिर्फ दो डिप्टी कलेक्टर,पद 7- कोरिया जिले में डिप्टी कलेक्टर के कुल 7 पद स्वीकृत हैं, लेकिन इनमें से मात्र 2 डिप्टी कलेक्टर पदस्थ हैं। एक डिप्टी कलेक्टर अमित सिन्हा को सोनहत एसडीएम बनाया गया है जबकि एक अन्य डिप्टी कलेक्टर अरूण सोनकर हैं जो कि कलेक्टोरेट में ही पदस्थ हैं लेकिन उनके पास नाममात्र की शाखा है। डिप्टी कलेक्टर के 5 पद रिक्त हैं, पद रिक्त होने के कारण शासकीय कामकाज पर असर पड़ रहा है। डिप्टी कलेक्टर के होने से शासकीय कामकाज आसानी से समय पर निपट सकता है, लेकिन कमी के कारण कोई भी फाईल समय पर नही हो रहा है। विभागीय कर्मचारी भी इससे खासे परेषान रहते हैं, डिप्टी कलेक्टरो को विभिन्न शाखाओ के प्रभारी अधिकारी का काम दिया जाता है जिससे कि सभी महत्वपूर्ण फाईलें उन्ही के माध्यम से होकर आगे कलेक्टर तक बढती है लेकिन डिप्टी कलेक्टरों की भारी कमी के कारण समय पर फाईल आगे नही बढ पा रही है। कार्यालयीन कामकाज हो या फिर आम जन का काम,सभी वर्ग को परेषानी का सामना करना पड़ रहा है। बताया जाता है कि वे कई शाखाओं के ओआईसी हैं लेकिन बताया जाता है कि फाईल आगे बढाने में सबसे ज्यादा उन्ही के द्वारा या तो विलंब किया जाता है या कि लटकाया जाता है। फाईल में तर्क वितर्क करने में उन्हे महारथ हासिल है। कार्यालयीन सूत्रो की माने तो कई बार फाईलो में हस्ताक्षर को लेकर अधीनस्थ कर्मियों से उनकी बहस भी हो चुकी है।
संयुक्त कलेक्टर के पास दोहरा प्रभार
जिले में दो संयुक्त कलेक्टरो की पदस्थापना है, एक संयुक्त कलेक्टर अनिल सिदार कलेक्टोरेट ही पदस्थ हैं। बताया जाता है कि वे कई शाखाओं के ओआईसी हैं लेकिन फाईल आगे बढाने में सबसे ज्यादा उन्ही के द्वारा या तो विलंब किया जाता है या कि लटकाया जाता है। फाईल में तर्क वितर्क करने में उन्हे महारथ हासिल है। कार्यालयीन सूत्रो की माने तो कई बार फाईलो में हस्ताक्षर को लेकर अधीनस्थ कर्मियों से उनकी बहस भी हो चुकी है। सबसे ज्यादा उन्ही शाखाओं मे हो रही है जिसके प्रभारी अधिकारी श्री सिदार हैं। हलांकि वर्तमान मे वे पारिवारिक कारणो से अवकाष पर हैं जिससे कि उनके प्रभार के शाखाओं को अलग-अलग विभाजित किया गया है। लेकिन उनके छुट्टी से आने के बाद फिर वही स्थिति निर्मित हो जाएगी। वहीं जिले में दूसरी संयुक्त कलेक्टर अंकिता सोम की पदस्थापना है उन्हे बैकुंठपुर एसडीएम बनाया गया है, साथ ही वे कलेक्टोरेट में भू-अभिलेख, खनिज न्यास संस्थान आदि अनेक महत्वपूर्ण शाखाओं की प्रभारी अधिकारी भी हैं। समस्या यह है कि उन्हे बैकुंठपुर एसडीएम का काम भी देखना है जिससे कि वह कलेक्टोरेट में बैठ नही पाती और उनकी शाखाओ का कामकाज विलंब होता है। बतलाया जाता है कि विभागीय कर्मी फाईल में उनका हस्ताक्षर लेने के लिए परेशान रहते हैं उन्हे कई बार महत्पूर्ण फाईल लेकर एसडीएम कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है। लेकिन एसडीएम कार्यालय में भी भीड़-भाड़ व उनकी अनुपस्थिति के कारण फाईल कई दिनो तक लटका रहता है। एक दिन में होने वाला काम कई दिन तक नही हो पा रहा है। मजबूरी भी ऐसी है कि आखिर विभिन्न शाखाओ का प्रभारी किस अधिकारी को बनाया जाए,जिससे कि समय पर काम हो सके ।
अपर कलेक्टर उइके का स्थानांतरण, अब रीता यादव आएंगी
जिले में पदस्थ अपर कलेक्टर भगवान सिंह उइके का स्थानांतरण हाल ही में अंतागढ हो गया है। उनकी जगह बलरामपुर जिला पंचायत सीईओ रीता यादव की पदस्थापना जिले में की गई है पूर्व में वे यहां संयुक्त कलेक्टर के रूप में काम कर चुकी हैं। कर्मचारियो को भी उम्मीद है कि उनके आने के बाद कामकाज में थोड़ा सुधार होगा। बतलाया जाता है कि वर्तमान अपर कलेक्टर श्री उईके के साथ भी काम करने में कर्मचारियो को खासी परेषानी हो रही थी, अकारण फाईलो को लटकाया जाता था जिससे कि काम में विलंब होता था।
जिले में अच्छे अधिकारियो की रूचि नही
जिला विभाजन के बाद कोरिया जिले की स्थिति प्रषासनिक दृष्टि से काफी खराब हो गई है, अब यहां मात्र दो अनुविभाग हैं। बचरापोड़ी क्षेत्र में अभी भी असमंजस की स्थिति बरकरार हैं। जनपद पंचायत के हिसाब से भी मात्र दो ही जनपद शेष हैं। अधिकार क्षेत्र अब पूर्व की तुलना में काफी कम हो गया है। कलेक्टर के पास भी संयुक्त कोरिया जिले के हिसाब से बहुत बड़ा कार्यक्षेत्र था लेकिन अब वह सिमटकर मात्र 40 प्रतिषत तक रह गया है। जिला छोटा होने के कारण अच्छे अनुभवी अधिकारी भी यहां नही आना चाहते या कि जो हैं भी वे अब दूसरे जिले में काम करना चाह रहे हैे। कुल मिलाकर कोरिया में प्रषासनिक व्यवस्था भी आगे भगवान भरोसे रहेगी।
खेल और शिक्षा अधिकारी भी प्रभारी
जिले में खेल गतिविधियां अब एकदम समाप्त सी हो गई हैं, जिले का खेल विभाग एक कमरे में वर्षो से संचालित हो रहा है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार से लेकर आज तक खेल अधिकारी की पदस्थापना नही हो सकी है। शिक्षको को खेल विभाग का प्रभार देकर काम चलाया जा रहा है लेकिन इससे विभाग के कामकाज पर खासा असर पड़ा है। जिले में प्रतिभावान खिलाडि़यो की कमी नही है लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण उन्हे विभाग से किसी प्रकार की मदद नही मिलती, कई खिलाड़ी तो यह जानते भी नही कि जिले में खेल विभाग भी है। खेल विभाग प्रभारी के भरोसे चल रहा है तो वर्तमान में लगभग एक सप्ताह से जिला षिक्षाधिकारी का कामकाज भी प्रभारी के भरोसे है। एक शिक्षक जो कि वर्षो से जिला शिक्षाधिकारी कार्यालय में ही संलग्न है और उनकी वरिष्ठता कई षिक्षको से काफी नीचे हैं, उन्हे वर्तमान में जिला शिक्षाधिकारी का प्रभार दिया गया है। पिछले दिनो आयोजित बैठक में कई वरिष्ठ शिक्षक को बतौर षिक्षाधिकारी वे आदेश देते रहे जो कि शिक्षको को भी नागवार गुजरा है। पूर्व में जिलाषिक्षाधिकारी रहे विनोद गुप्ता अब संभागीय संयुक्त संचालक के पद पर पदस्थ हो गए हैं, उनका वर्तमान प्रभारी जिला शिक्षाधिकारी अनिल जायसवाल के साथ अच्छा तालमेल भी था जिसके बाद श्री जायसवाल को प्रभार दिया गया है। शिक्षाधिकारी का पद कितने दिनो तक प्रभार में रहेगा यह भी देखने वाली बात होगी।
न शासन को ध्यान, न जिम्मेदार जनप्रतिनिधि को
जिले में प्रषासनिक अधिकारियों की कमी बनी हुई है, कलेक्टोरेट का दौरा करने पर देखने में मिला कि अधीनस्थ कर्मचारी अधिकारियो के अनुभवी न होने का रोना रोते रहते हैं। दबी जुबान से कहते फिरते हैं कि पहले अधिकारियो के साथ काम करने में दिक्कत नही होती थी लेकिन वर्तमान में काफी परेषानी होती है। कोई भी फाईल आगे बढाने में सोचना पड़ता है। अधिकारियो की कमी के कारण आम जन को भी कहीं न कहीं परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह आष्चर्य की बात है कि इस ओर न तो शासन का ध्यान है और न ही स्थानीय जनप्रतिनिधि को इस ओर दिखलाई दे रहा है। स्थानीय विधायक प्रदेष में संसदीय सचिव भी हैं लेकिन उनके द्वारा प्रशासनिक अधिकारियो की कमी पूरा करने कभी भी सरकार से मांग करते नही सुना गया। बहरहाल अधिकारियो की कमी से एक ओर जहां कर्मचारी भी परेशान हैं तो वही आम जन को भी परेशानी हो रही है अब देखना होगा कि आगे भी इसी प्रकार की स्थिति बनी रहेगी या कि सरकार और जिम्मेदार जनप्रतिनिधि इसके लिए आगे आएंगे।