नई दिल्ली,07 दिसंबर 2022 (ए)। देश में काले धन और कर चोरी, जाली मुद्रा, आतंकवाद के वित्तपोषण के खतरे से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लेकर 8 नवंबर, 2016 को देश में नोटबंदी की घोषणा कर दी थी, जो एक बड़ी रणनीति का हिस्सा था। इस दौरान नागरिकों को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे का मतलब यह नहीं है कि अदालत चुप बैठ जाएगी। साथ ही, शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार किस तरह से निर्णय लेती है उस पर कभी भी गौर किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान, भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि अस्थायी कठिनाइयां थीं और वे राष्ट्र-निर्माण प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग भी हैं, लेकिन एक तंत्र था जिसके द्वारा उत्पन्न हुई समस्याओं का समाधान किया गया। जस्टिस एस.ए.नजीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक नीति के कानूनी अनुपालन की संवैधानिक अदालत द्वारा पड़ताल की जा सकती है। पीठ ने कहा कि अदालत सरकार द्वारा लिए गए फैसले के गुण-दोष पर नहीं जाएगी। लेकिन वह हमेशा उस तरीके पर गौर कर सकती है जिस तरह से फैसला लिया गया था। महज इसलिए कि यह एक आर्थिक नीति है, इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत चुपचाप बैठ जाएगी।
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