- देश की जेलों में कैदियों की संख्या में लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज,दूसरी ओर अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या में 45 प्रतिशत की वृद्धि क्यों?
- कुछ चीजें कहने की नहीं, समझने की होती है, जो नही कहा उसे भी समझ जाओ: द्रौपदी मुर्मू।
- विधायिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका तीनों को कटघरे में खड़ा किया महामहिम राष्ट्रपति ने।
- सक्षम वर्ग धनबल के जरिए वाजिब और गैर वाजिब तरीकों से न्याय प्राप्त कर लेता है, वंचित वर्ग का पूरा जीवन जेलों में सड़ने के लिए बाध्य है।
- पहली बार किसी राष्ट्राध्यक्ष ने इतने गंभीर मुद्दे को सहज तरीके से उठाया।
- देश के मुख्य न्यायाधीश और विधि मंत्री के समक्ष उद्बोधन में कम शब्दों में बड़ी बात कही गई, मुद्दा जितना गंभीर उतना ही मार्मिक भी।
- सजायाफ्ता कैदियों की संख्या में तो आई गिरावट, परंतु अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि सोचनीय।
- पहली बार किसी संविधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ने ऐसी महत्वपूर्ण बात कहने का साहस किया है, “जो नही कहा उसे भी समझ जाओ”।
लेख अजय सिंह:- देश में संभवत पहली बार किसी ने इतने गंभीर मुद्दे को बहुत ही सहज और सरल तरीके से सामने रखा, मंच भी ऐसा जहां देश के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के अलावा देश के विधि मंत्री और सम्माननीय न्यायाधीशों का सम्मेलन था। मुद्दा इतना गंभीर होने के बाद भी आज तक किसी के जेहन में यह विकराल समस्या सामने नहीं दिखी। आमतौर पर आम जनमानस और बुद्धिजीवियों का भी ध्यान इस ओर आकृष्ट नहीं हुआ, परंतु जैसे ही देश की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने इस मुद्दे पर बोलना प्रारंभ किया सभी की आंखें खुली रह गई। उन्होंने कहा की 2019 की राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार जहां एक और देश की जेलों में कैदियों की संख्या में लगभग 9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई, वहीं दूसरी ओर अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या में 45 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। इस विकराल समस्या की ओर उंगली उठाते हुए महामहिम राष्ट्रपति ने कहीं ना कहीं न्यायपालिका को आईना दिखाने का काम किया।
अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि जेलों में बंद अधिकांश अंडर ट्रायल के वे कैदी जो वंचित, दलित और शोषित वर्ग से आते हैं सामान्यतः गरीब हैं। जो न्याय प्रणाली में विहित महंगी विभीषिका के शिकार हैं। उन्होंने अपने उद्बोधन में जिक्र किया कि गांव के लोग शिक्षक, चिकित्सक और वकीलों को अपना भगवान मानते हैं और चिकित्सक तथा वकीलों के पास लोग परेशानी में ही जाते हैं, ताकि उन्हें परेशानियों से निजात मिल सके। परंतु वर्तमान परिदृश्य में महंगी चिकित्सा के साथ-साथ कानून के पैरोकार की महंगाई, वंचित वर्ग के लिए भीषण विभीषिका का कार्य कर रही है। सक्षम वर्ग जहां धनबल के जरिए वाजिब और गैर वाजिब तरीकों से न्याय प्राप्त कर लेता है, वहीं वंचित वर्ग का पूरा जीवन जेलों में सड़ने के लिए बाध्य है। अधिकांश लोग महंगी व्यवस्था से परेशान होकर अपना बचत, धनसंपदा इस ओर गवाना नहीं चाहते और व्यक्ति छोटे-छोटे मामलों में भी जीवन भर जेल में रह जाता है।
जो मैं कह रही हूं उस के अलावा जो नहीं कह रही हूं उस बात को समझने की कोशिश कीजिए
अपने संक्षिप्त और मार्मिक शब्दों में महामहिम ने जो संदेश दिया वह विलक्षण था और साथ ही देश की विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए कटाक्ष भी। उन्होंने कहा कि जो मैं कह रही हूं उस के अलावा जो नहीं कह रही हूं उस बात को समझने की कोशिश कीजिए। अंडर ट्रायल कैदियों की बढ़ती संख्या पर उन्होंने न्यायपालिका को कटघरे में खड़ा करते हुए संकेत किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे-छोटे मामले जो न्याय प्रणाली के दर पर पहुंचते-पहुंचते ऐसी धाराओं से घिर जाते हैं कि व्यक्ति का निकलना असंभव हो जाता है। लोग अपने परिजनों को न्याय दिलाने के लिए दरबदर भटक कर प्रयास करते हैं, परंतु अपनी पूरी जमा पूंजी धन संपदा को इसके लिए गंवाना उचित नहीं समझते और व्यक्ति बगैर किसी महती दोष के जीवन भर जेलों में रहने को मजबूर हो जाता है।
न्याय प्रणाली पर यदि सुधार हो तो जेल तथा कैदियों की संख्या में उत्तरोत्तर कमी लाई जा सकती है
संकेतों में उन्होंने विकास के पटरी पर दौड़ते देश और जेलों की व्यवस्था पर इशारा भी किया कि यदि न्याय समयानुसार प्राप्त हो जाए तो विकास के इस दौर में नए जेलों को बनाने की आवश्यकता ही क्यों पड़े? अपितु इसके उलट न्याय प्रणाली पर यदि सुधार हो तो जेल तथा कैदियों की संख्या में उत्तरोत्तर कमी लाई जा सकती है और बात सत्य भी है कि पूरे भारतवर्ष में जहां एक और जेलों को सुधारगगृह के नाम से जाना जाता है। यदि इनकी कार्यप्रणाली सही हो और लोग सुधरते चले जाएं तो नए जैलों की आवश्यकता क्यों?
जमानत योग्य होने पर भी आर्थिक कारणों से जमानत प्राप्त नहीं कर पाते
जिस प्रकार वर्तमान परिस्थिति में अंडर ट्रायल कैदियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, इनमें से ज्यादातर वंचित और शोषित वर्ग के लोग हैं, जो जमानत योग्य होने पर भी आर्थिक कारणों से जमानत प्राप्त नहीं कर पाते और बगैर किसी वाजिब कारण के सालों अपना जीवन जेल में बिताते हैं। उन्होंने कहा कि जेलों में निरुद्ध कैदियों की अधिकांश संख्या आदिवासियों, दलितों और वंचित वर्ग की है, तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि यह आदतन अपराधी होते हैं। बल्कि इनके पीछे बहुत ऐसे कारण हैं जिनका निवारण कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका मिलकर कर सकती है। उन्होंने अपील की कि समय है मिलकर कार्य करने का, जिससे नए भारत का निर्माण किया जा सके।
लेखा-अजय सिंह
अधिवक्ता
जिला न्यायालय
बैकुंठपुर कोरिया(छत्तीसगढ़)