भोपाल , 03 दिसंबर 2022 (ए)। भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात काल बनकर आई थी। यूनियन कार्बाइड के कारखाने से रिसी जहरीली गैस ने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। सरकारी आंकड़े करीब तीन हजार लोगों की मौत बताती है पर लोगों का दावा है कि हादसे में उस दिन करीब 16 हजार लोगों की मौत हुई थी। जिसका असर आज भी सांस की बीमारी के रूप में देखने को मिल रहा है।
भोपाल गैस त्रासदी के 38 साल बाद मरीजों को सांस की बीमारी का पहला अस्पताल मिला है। कुछ माह पहले शहर के ईदगाह हिल्स में रीजनल इंस्टीट्यूट फॉर रेस्पिरेटरी डिजीज की स्थापना की गई। यहां हर दिन करीब 150-200 मरीज आते हैं। इनमें से तीन से पांच फीसदी मरीज जहरीली गैस से प्रभावित होते हैं।
मई में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने क्षेत्रीय श्वसन रोग संस्थान की आधारशिला रखी। इसके बाद टीबी अस्पताल परिसर में एक अलग श्वसन विभाग स्थापित किया गया। विभाग ने फेफड़ों के कैंसर, श्वसन रोगों और खराटरें की जांच और उपचार की सुविधा प्रदान की।
केंद्र सरकार ने विभाग के नए भवन के निर्माण के लिए लगभग 56 करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं। अनुमान है कि दो साल बाद एक ही छत के नीचे वेंटीलेटर, एक्स-रे, पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, अल्ट्रासाउंड, दवा समेत अन्य सुविधाएं यहां उपलब्ध होंगी।
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