बैकुण्ठपुर@2500 प्रति क्विंटल धान के पीछे सैकड़ों परेशानियों का जवाबदेह कौन?

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  • पहले बारदाने की शॉर्टेज होती थी, इस बार बारदाना ही शॉर्ट हो गया
  • क्या किसान अपना उपार्जन तभी बेच पाएगा,जब वह रेत और मुरूम मिश्रित गोबर खरीदेगा?
  • फसल तो उपार्जित हो गया और बोनी भी हो गई,अब जबरन थमाये जाने वाले गोबर से बने खाद का कहां उपयोग करें?
  • बारदाना में ऐसे हुई कटौती की 40 की जगह 35-36 किलो ही धान बारदाना में समा रहे

रवि सिंह –
बैकुण्ठपुर 22 नवम्बर 2022 (घटती-घटना) छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों से काबिज सरकार को? बदलने में किसानों की अहम भूमिका रही। किसानों ने अपनी मेहनत अनुसार दाम ना मिलने की वजह से 15 साल वाली सरकार को बदल दिया, क्योंकि आने वाली सरकार ने उन्हें उचित दाम देने का वादा किया था। वादा के अनुरूप नई सरकार ने अपना वादा पूरा भी किया और विगत 3 वर्षों से 2500 में धान खरीदी भी की पर धान को खरीदने के साथ उन्होंने किसानों के सामने समस्या भी बहुत बढ़ाई। पहले बारदानों को लेकर खूब परेशान किया, फिर धान की निगरानी को लेकर किसानों को खूब परेशान किया। ऐसा लगा कि किसान धान नहीं घरों में कोई अवैध सामग्री रखें? हैं। खूब छापेमारी चली अब वर्तमान सरकार के अंतिम वर्ष में अंतिम धान खरीदी के समय एक नए शर्तों के साथ धान की खरीदी हो रही है। स्थिति यह है कि किसानों को धान बेचने पूर्व परमिट कट आते समय ही गोबर के बने खाद खरीदने पड़ेंगे। किसान को उक्त खाद की आवश्यकता है या नहीं, यह मायने नहीं रखता। जबरिया हर किसान को उक्त खाद का टोकन कटवाना पड़ रहा है, जिसके एवज में प्रति बोरी 300 की राशि लग रही है।
आश्चर्य का विषय और सवाल यह है की खाद तो मौजूद है नहीं पर रसीद कटा कर सरकार को लाभ पहुंचाया जाएगा। उस रसीद के एवज में गोबर के खाद मिलेंगे भी या नहीं? क्योंकि इसी सत्र में पूर्व में सैकड़ों किसानों को श्रृण और खाद वितरण करते समय वर्मी कंपोस्ट के नाम पर हजारों रुपए लेकर उनकी रसीद तो थमा दी गई, परंतु उन किसानों को आज तक वर्मी कंपोस्ट उपलध नहीं कराया गया। और जिन किसानों को वर्मी कंपोस्ट मिला भी तो यह गोबर युक्त खाद केवल रेत और मुरूम युक्त था। जो किसी काम का नहीं था। गोधन न्याय योजना की वाहवाही के चक्कर में किसानों से ?2 किलो खरीदे जाने वाले गोबर को उन्हीं किसानों को रेत और मुरूम मिलाकर 10 किलो जबरिया बेचना कहां का न्याय है? आलम यह है कि जब किसान अपना उपार्जित धान बेचने समिति में टोकन कटवाने जा रहा है तो जबरन उसे वर्मी कंपोस्ट के नाम पर हजारों रुपए की रसीदें थमाई जा रही हैं। जिसके एवज में धान विक्रय के समय राशि समायोजित की जा रही है। विडंबना यह भी है की तत्काल किसानों को वर्मी कंपोस्ट उपलध भी नहीं कराया जा रहा। साथ ही सवाल यह भी उठता है, यदि किसानों को वर्मी कंपोस्ट के किसि तरह उपलध करा भी दिया जाए तो इस समय जहां खरीफ फसलों की कटाई हो चुकी है और रबि फसलों की बुवाई हो चुकी है,तब इस मुरूम युक्त वर्मी कंपोस्ट का करें भी तो क्या करें? खून पसीने से अर्जित कमाई का इस प्रकार लुट जाना किसानों को रास नहीं आ रहा, परंतु उनका विरोध भी उनके काम नहीं आ रहा। क्योंकि इस गंभीर मसले पर सत्ता पक्ष तो आंख मूंदे बैठा ही है, वहीं विपक्ष का कहीं अता पता नहीं है। स्वयं को किसान हितैषी बताने वाले सत्ता पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधि और नेता, दोनों इस मसले पर मौन हैं। क्योंकि पहुंच, पकड़, रसूख के दम पर तो उनका काम बगैर वर्मी कंपोस्ट के रसीद के ही आसानी से हो जा रहा है। इतने में दो पाटों के मध्य केवल किसान पिस जा रहा है।
बारदाने की तो शार्टैज नहीं, परंतु बारदाना ही शार्ट
एक तो मौसम की मार और  अनियमित बारिश की वजह से जहां एक ओर  फसलों को भारी नुकसान हुआ। वहीं दूसरी ओर देर से हुई वर्षा के कारण प्रदेश में धान की फसल भी ठीक से नहीं हो पाई। उपार्जित धान के दानों का वजन भी पूर्व वर्षों के मुकाबले हल्का हो गया। कोढ़ में खाज वाली बात यह हो गई कि इस बार सरकार ने धान खरीदी के लिए सहकारी समितियों को जो बारदाना सप्लाई किए हैं, उनका आकार पूर्व की तुलना में छोटा है। जिसमें किसी भी सूरत में 41 किलोग्राम की भर्ती करना नामुमकिन है। क्योंकि चंद किस्मों को छोड़ दिया जाए जो वजनी होते हैं, उनके अलावा अधिकांश धान की किस्में ऐसी हैं की प्रदाय किए जाने वाले बार दाने में शासन के नियमानुसार 40 किलो+1 किलो की भर्ती करना असंभव है। टोकन कटा कर समिति में पहुंचने वाले किसान इस समस्या से भारी परेशान हैं, क्योंकि किसी भी सूरत में उक्त बोरों में धान विक्रय करना संभव नजर नहीं आ रहा। जिससे किसान अपनी फसल समिति से वापस लाने को मजबूर हैं। वहीं दूसरी ओर समिति कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले हो गई है। जो किसान समिति कर्मचारियों का मुंह मांगा राशि अदा करने को तैयार हैं, उनके कम धान की भी आसानी से बिक्री समिति में हो जा रही है। किसानों की समस्याओं का इतना बड़ा मुद्दा किसान नेताओं, जनप्रतिनिधियों और विपक्षी नेताओं को दिखाई नहीं दे रहा, जो बड़े आश्चर्य की बात है।
टोकन कटाने से लेकर तौल पत्रक प्राप्त करने तक किसानों को जेब ढीली करनी पड़ रही
कहने को तो वर्तमान में किसान हितैषी सरकार है। जो किसानों के हित में बड़े-बड़े वादे कर साा में आई थी। और साा में आने का एक अहम कारण यह भी था कि चुनाव पूर्व उन्होंने किसानों के लिए बड़े-बड़े वादे भी किए थे। जिन से प्रभावित होकर छत्तीसगढ़ के किसानों ने एकतरफा समर्थन भी दिया। किसानों से किए गए वादे जिन्हें आंशिक रूप से पूरा करने का बेमन प्रयास भी किया गया। (बेमन प्रयास इसलिए कहा जा रहा की धान के एवज में प्रति कुंटल 2500 ? की राशि का किस्तों मैं मिलना किसानों को रास नहीं आ रहा) प्रयासों के बावजूद धरातल पर स्थिति एन उलट है। हालात यह है कि किसानों को हर परिस्थिति में दुर्दशा का शिकार होना पड़ रहा है। वर्तमान में धान खरीदी में किसानों को सुविधा प्रदान करने के लिए जितने भी दावे किए जाएं, परंतु उपार्जित फसल को समिति तक लाने के लिए टोकन कटाने से लेकर बारदाना प्राप्ति, तौल कराई और विक्रय कर तौल पत्रक प्राप्त करने के हर चरण में किसानों को अपनी जेब ढीली करनी पड़ रही है। समितियों में कार्यरत अस्थाई और व्यवस्था के तहत काम कर रहे कर्मचारी खुलेआम हर कार्य के लिए किसानों से पैसे ले रहे हैं। नाम ना छापने की शर्त पर कुछ किसानों ने बताया कि कर्मचारियों के इस रवैए का विरोध करने पर उनका साफ कहना है कि वे कोई स्थाई नौकरी में तो है नहीं, जो उनका कुछ बिगड़ जाएगा। हां ऊपर पैसे देकर काम कर रहे हैं, तो वसूली भी तो यहीं रहकर करेंगे। किसान यदि विरोध करें भी तो उन्हें सीधे धमकाया जाता है कि देखेंगे तुम धान कैसे विक्रय करते हो? स्थिति यह है कि जिले के किसी भी समिति में समिति द्वारा पल्लेदारी का पैसा नहीं दिया जा रहा। वह भी किसानों की जेब से ही निकाला जा रहा। और ऐसा नहीं है कि इससे अधिकारी और जनप्रतिनिधि अवगत नहीं है, परंतु मिलीभगत की चाशनी में सब डूबे पड़े हैं।
जनप्रतिनिधियों और विपक्ष का मौन समझ से परे
किसानों के बहुतायत वाले प्रदेश में, जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, किसानों को अपने उपार्जित फसल को समिति में विक्रय करने के लिए विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ रहा। जिससे जनप्रतिनिधि और विपक्ष के नेता भी अवगत हैं। परंतु किसान हित में इनके द्वारा किसी प्रकार का कोई कदम नहीं उठाया जा रहा, ना ही किसी प्रकार? यह प्रयासरत हैं, ताकि व्यवस्था में सुधार हो सके। जबकि जनप्रतिनिधि और विपक्ष के नेता भी अधिकांशतः किसान हैं। शायद इनके मौन रहने का कारण यह हो सकता है की मिलीभगत के कारण इनके सारे कार्य आसानी से निपट जाते हैं, और आम जनता, आम किसान इनकी ओर ताकता रह जाता है। बहरहाल चुनाव कि नजदीकी बढ़ रही है, फिर से किसानों से लोक लुभावने वादे किए जाएंगे, उन्हें बरगलाने की कोशिशें की जाएंगी, और भोले-भाले किसान उनकी बातों में आ भी जाएंगे। साा बदलती रहेगी, नुमाइंदे बदलते रहेंगे, नहीं बदलेगी तो केवल किसानों और जनता की स्थिति।


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