नई दिल्ली@डॉक्टरी की पढ़ाई मे कहा से जुड़ गया यह घिनौना टेस्ट!

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सुप्रीम कोर्ट बोला,टू-फिगर अब और नही
नई दिल्ली, 01 नवम्बर 2022। टू-फिगर टेस्ट अब और नही। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देते हुए इस अनुचित प्रथा को महिलाओ की गरिमा के खिलाफ करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेप पीडि़ताओ की जाच के लिए ‘टू-फिगर टेस्ट’ की प्रथा आज भी समाज मे प्रचलित है। कोर्ट ने केद्र सरकार और राज्यो को निर्देश दिया कि ऐसा आगे से न हो। जस्टिस डी. वाई. चद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने झारखड हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमे रेप और हत्या के दोषी को बरी कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक दशक पुराने फैसले ने ही इस टेस्ट को महिला की गरिमा और निजता का उल्लघन करार दिया था। दरअसल, दरिदगी का शिकार हुई महिला से टेस्ट के नाम पर एक ऐसी प्रथा चल निकली थी, जो पीडि़ता को दोबारा भीतर से झकझोर देती थी। जी हा, यह टेस्ट ही कुछ ऐसा है। इसे टू-फिगर टेस्ट कहते है। यौन उत्पीड़न और बलात्कार की शिकार हुई महिला के बारे मे यह जानने के लिए ‘टू-फिगर’ प्रक्रिया अपनाई जाती रही है कि वह सेक्स की अभ्यस्त है या नही।
रेप पीडि़ता की गरिमा पर हमला
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बलात्कार पीडि़ताओ से सबधित ‘टू-फिगर’ जाच पर सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नही है। इससे यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाए फिर से पीडि़त होती है और यह उनकी गरिमा पर एक कुठाराघात है। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि यह कहना पितृसाात्मक और लैगिकतावादी है कि किसी महिला के अपने साथ बलात्कार होने की बात पर सिर्फ इसलिए विश्वास नही किया जा सकता कि वह सेक्सुअली एक्टिव है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कहा है कि ‘टू-फिगर’ टेस्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। स्ष्ट ने झारखड सरकार की याचिका पर बलात्कार और हत्या के दोषी शैलेद्र कुमार राय उर्फ पाडव राय नामक व्यक्ति को बरी करने के झारखड हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और उसे गुनहगार करार देने के एक निचली अदालत के फैसले को कायम रखा।
गुप्ताग सबधी टेस्ट
पीठ ने कहा कि एक दशक पुराने शीर्ष अदालत ने इस टेस्ट को महिलाओ की गरिमा और निजता का उल्लघन बताया था। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि यह अब भी हो रहा है। कोर्ट ने कहा, ‘महिलाओ का गुप्ताग सबधी टेस्ट उनकी गरिमा पर अटैक है। यह नही कहा जा सकता कि यौन सबधो के लिहाज से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नही किया जा सकता।’ कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल लॉ अमेडमेड ऐक्ट 2013 मे साफ कहा गया है कि पीडि़ता के कैरेक्टर का साक्ष्य या उसका किसी शख्स के साथ पिछले सेक्सुअल एक्सपीरियस का इस केस से कोई लेनादेना नही है।
शीर्ष अदालत ने केद्र और राज्य सरकारो के अधिकारियो को निर्देश दिया कि वे राज्यो के पुलिस महानिदेशको और स्वास्थ्य सचिवो से यह सुनिश्चित करने को कहे कि ‘टू-फिगर’ टेस्ट अब नही हो। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मत्रालय ने यौन हिसा के मामलो मे स्वास्थ्य प्रदाताओ के लिए 19 मार्च 2014 को दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसमे ‘टू फिगर’ टेस्ट को प्रतिबधित किया गया था।
टू-फिगर टेस्ट इसलिए घिनौना?
इस प्रक्रिया के तहत मेडिकल प्रोफेशनल यह जाचते है कि महिला के हैमेन को नुकसान पहुचा है या नही, जिससे पता लगाया जा सके कि यौन हमला था या सहमति से इटरकोर्स।

‘मेडिकल कॉलेजो के सिलेबस से भी हटे’
सुप्रीम कोर्ट ने केद्र और राज्यो को निर्देश दिया कि सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजो के पाठ्यक्रम से टू-फिगर टेस्ट पर स्टडी मटीरियल को हटाने के लिए कदम उठाए जाए। पीठ ने केद्रीय स्वास्थ्य मत्रालय से यह सुनिश्चित करने को कहा कि रेप या यौन हमले से बचाए गए लोगो का यह टेस्ट न किया जाए। इस टेस्ट के खिलाफ जागरुकता पैदा की जाए और गाइडलाइस बने।


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