औरगाबाद@अटूट आस्था का केद्र है देव का त्रेतायुगीन सूर्य मदिर

Share


औरगाबाद, 29 अक्टूबर 2022। बिहार मे औरगाबाद जिले के देव स्थित ऐतिहासिक त्रेतायुगीन सूर्य मदिर देशी-विदेशी पर्यटको, श्रद्घालुओ और छठव्रतियो की अटूट आस्था का केद्र बना हुआ है।
भगवान भास्कर का त्रेतायुगीन सूर्य मदिर सदियो से लोगो को मनोवाछित फल देने वाला पवित्र धर्मस्थल रहा है। यू तो सालो भर देश के विभिन्न जगहो से लोग यहा पधारकर मनौतिया मागने और सूर्यदेव द्बारा उनकी पूर्ति होने पर अर्घ्य देने आते है लेकिन लोगो का विश्वास है कि कार्तिक एव चैती छठ व्रत के पुनीत अवसर पर सूर्य देव की साक्षात उपस्थिति की रोमाचक अनुभूति होती है।
देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल सूर्य मदिर अपने अप्रतिम सौदर्य और शिल्प के कारण सदियो श्रद्घालुओ, वैज्ञानिको, मूर्तिचोरो व तस्करो एव आमजनो के लिए आकर्षण का केद्र है। मदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प, कलात्मक भव्यता और धार्मिक महत्ता के कारण ही जनमानस मे यह किवदति प्रसिद्घ है कि इसका निर्माण देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने स्वय अपने हाथो से किया है। काले और भूरे पत्थरो की अति सुदर कृति जिसतरह उड़ीसा प्रदेश के पुरी स्थित जगन्नाथ मदिर का शिल्प है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प देव के प्राचीन सूर्य मदिर का भी है।
मदिर के निर्माणकाल के सबध मे उसके बाहर ब्राह्मी लिपि मे उत्कीर्ण एव सस्कृत मे अनुवादित एक श्लोक जड़ा है, जिसके अनुसार 12 लाख16 हजार वर्ष त्रेता युग के बीत जाने के बाद इलापुत्र पुरूरवा ऐल ने देव सूर्य मदिर का निर्माण आरभ करवाया। शिलालेख से पता चलता है कि वर्ष2014 मे इस पौराणिक मदिर के निर्माण काल का एक लाख पचास हजार चौदह वर्ष पूर्ण हो चुके है।देव मदिर मे सात रथो से सूर्य की उत्कीर्ण प्रस्तर मूर्तिया अपने तीनो रूपो- उदयाचल-प्रात: सूर्य, मयाचल- मय सूर्य और अस्ताचल -अस्त सूर्य के रूप मे विद्यमान है। पूरे देश मे देव का मदिर ही एकमात्र ऐसा सूर्य मदिर है जो पूर्वाभिमुख न होकर पश्चिमाभिमुख है। करीब एक सौ फुट ऊचा यह सूर्य मदिर स्थापत्य और वास्तुकला का अदभूत उदाहरण है।
बिना सीमेट अथवा चूना-गारा का प्रयोग किये आयताकार, वर्गाकार, अर्द्धवृत्ताकार, गोलाकार, त्रिभुजाकार कई रूपो और आकारो मे काटे गये पत्थरो को जोड़कर बनाया गया यह मदिर अत्यत आकर्षक व विस्मयकारी है।

सूर्य पुराण से सर्वाधिक प्रचारित जनश्रुति के अनुसार ऐल एक राजा थे, जो किसी ऋषि के शापवश श्वेत कुष्ठ से पीडि़त थे। वे एक बार शिकार करने देव के वनप्रात मे पहुचने के बाद राह भटक गये। राह भटकते भूखे-प्यासे राजा को एक छोटा सा सरोवर दिखायी पड़ा, जिसके किनारे वे पानी पीने गये और अजुरी मे भरकर पानी पिया। पानी पीने के क्रम मे वे यह देखकर घोर आश्चर्य मे पड़ गये कि उनके शरीर के जिन जगहो पर पानी का स्पर्श हुआ उन

जगहो के श्वेत कुष्ठ के दाग जाते रहे। इससे अति प्रसन्न और आश्चर्यचकित राजा अपने वस्त्रो की परवाह नही करते हुए सरोवर के गदे पानी मे लेट गये और इससे उनका श्वेत कुष्ठ पूरी तरह जाता रहा। अपने शरीर मे आश्चर्यजनक परिवर्तन देख प्रसन्नचित राजा ऐल ने इसी वन प्रातर मे रात्रि विश्राम करने का निर्णय लिया और रात्रि मे राजा को स्वप्न आया कि उसी सरोवर मे भगवान भास्कर की प्रतिमा दबी पड़ी है। प्रतिमा को निकालकर वही मदिर बनवाने और उसमे प्रतिष्ठित करने का निर्देश उन्हे स्वप्न मे प्राप्त हुआ।

कहा जाता है कि राजा ऐल ने इसी निर्देश के मुताबिक सरोवर से दबी मूर्ति को निकालकर मदिर मे स्थापित कराने का काम किया और सूर्य कुण्ड का निर्माण कराया लेकिन मदिर यथावत रहने के बावजूद उस मूर्ति का आज तक पता नही है। जो अभी वर्तमान मूर्ति है वह प्राचीन अवश्य है, लेकिन ऐसा लगता है मानो बाद मे स्थापित की गई हो। मदिर परिसर मे जो मूर्तिया है, वे खडित तथा जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे है।

मदिर निर्माण के सबध मे एक कहानी यह भी प्रचलित है कि इसका निर्माण एक ही रात मे देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने अपने हाथो किया था और कहा जाता है कि इतना सुदर मदिर कोई साधरण शिल्पी बना ही नही सकता। इसके काले पत्थरो की नक्काशी अप्रतिम है और देश मे जहा भी सूर्य मदिर है, उनका मुह पूरब की ओर है, लेकिन यही एक मदिर है जो सूर्य मदिर होते हुए भी उषाकालीन सूर्य की रश्मियो का अभिषेक नही कर पाता वरन अस्ताचलगामी सूर्य की किरणे ही मदिर का अभिषेक करती है।जनश्रुति है कि एक बार बर्बर लुटेरा काला पहाड़ मूर्ति्तयो और मदिरो को तोड़ता हुआ यहा पहुचा तो देव मदिर के पुजारियो ने उससे काफी विनती की कि इस मदिर को कृपया न तोड़े क्योकि यहा के भगवान का बहुत बड़ा महात्म्य है। इस पर वह हसा और बोला यदि सचमुच मे तुम्हारे भगवान मे कोई शक्ति है तो मै रात भर का समय देता हू और यदि इसका मुह पूरब से पश्चिम हो जाये तो मै इसे नही तोडूगा। पुजारियो ने सिर झुकाकर इसे स्वीकार कर लिया और वे रातभर भगवान से प्रार्थना करते रहे। सबेरे उठते ही हर किसी ने देखा कि सचमुच मदिर का मुह पूरब से पश्चिम की ओर हो गया था और तब से इस मदिर का मुह पश्चिम की ओर ही है।

कहा जाता है कि एक बार एक चोर मदिर मे आठ मन (एक मन 40 किलोग्राम के बराबर) वजनी स्वर्ण कलश को चुराने आया। वह मदिर के ऊपर चढ़ ही रहा था कि उसे कही से गड़गड़ाहट की आवाज सुनायी दी और वह वही पत्थर बनकर चिपक गया। आज लोग अपने को सटे चोर की ओर उगली दिखाकर बताते है।

इस सबध मे पूर्व सासद, प्रख्यात साहित्यकार एव देव के बगल के ही गाव भवानीपुर के रहने वाले स्व. शकर दयाल सिह का मानना था कि इसके दो कारण हो सकते है। उनमे एक यह कि कोई सोना चुराने नही आये, इसलिए यह किवदति प्रसिद्धि मे आयी और दूसरी बात यह कि जिसे चोर की सज्ञा दी जाती है वह देखने पर बुद्घ की मूर्ति नजर आती है। वही, इस मत से भिन्न रूख रखने वालो मे पडित राहुल साकृत्यायन प्रमुख है, जिनके अनुसार यह प्राचीनकाल मे बुद्घ मदिर था जिसे विधर्मियो से भयाक्रात भक्तजनो ने इसे मिट्टी से पाट दिया था।

कहा जाता है कि सनातन धर्म के सरक्षक और सस्कारक शकराचार्य जब इधर आये तो सशोधित और सुसस्कृत कर यहा मूर्ति प्रतिष्ठित की। पुरातत्व से जुड़े डॉ. के. के. दत्ता और पडित विश्वनाथ शास्त्री ने भी इसकी अति प्राचीनता का प्रबल समर्थन किया है।


Share

Check Also

शाहजहांपुर,@ दोस्त के कहने पर युवक ने सुहागरात का बनाया वीडियो

Share शाहजहांपुर,26 अक्टूबर 2024 (ए)। एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है. जहां …

Leave a Reply