रावण का दहन कीजिये पर पहले राम जैसे बने का प्रयास तो कीजिए।
रावण के राज्य में भ्रष्टाचार, अपराध आदि नही थे आज के हालात तो सबको पता है।
सत्ता अधिकांशत: अहंकार को जन्म देती है और अहंकार दुराचार को स्थान देता है।
क्या रावण से ज्यादा बुरा इन्सान इस दुनिया में है, बहुत से लोग दुनिया में इतने बुरे है की रावण भी उसके सामने देवता लगने लगे?
लेख रवि सिंह:- इतिहास में अधिकांशत सत्तासीन नेतृत्व अहंकारी, अत्याचारी, दुराचारी होता आया है। यह शत प्रतिशत सत्य नहीं है, परंतु सतयुग और अन्य युगों की बात छोड़ दे तो कलयुग में बहुमत इसी और इंगित करते हैं। सत्ता से स्वयमेव अर्जित अहंकार व्यक्ति को सदैव अनाधिकृत, अनौपचारिक, अव्यावहारिक तथा अलोकतांत्रिक व्यवहार करने को प्रेरित करता है रावण अत्याचारी शासक था, इसीलिए तो भगवान राम ने उसका वध किया था। जिसकी प्रतीकात्मक याद में आज भी रावण दहन किया जाता है। क्या आपको पता है की रावण दहन क्यों किया जाता है? लोग ये कहेंगे की भगवान राम ने इसी दिन दुष्ट रावण का वध किया था इसीलिए। तर्क यह भी है कि रावण का अंतिम संस्कार नहीं हुआ था, लेकिन एक रावण था उसे श्रीराम ने मार दिया, उसकी कहानी तो ख़तम, फिर उसका पुतला बना के हर साल उसे मारने, जलाने का क्या कारण हो सकता है?
अधिकतर लोंगो को तो ये पता ही नहीं होगा कि विजयादशमी के दिन रावण दहन से पहले भगवान राम के जीवन का मंचन “राम लीला” के माध्यम से किया जाता था और उसी के अंत में बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में रावण दहन कर संदेश प्रसारित किया जाता था की बलशाली, शक्तिशाली और तीनों लोकों का स्वामी होने पर भी अहंकार, दुराचार, व्यभिचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार का समाज में कोई स्थान नहीं है। कोई ना कोई मर्यादा पुरुषोत्तम किसी न किसी रूप में इसे समाज से हर हाल में उखाड़ फेंकेगा। पहले प्रभु श्री राम के चरित्र के मंचन के साथ दशहरे में ऐसा होता था। अब भी होता है, लेकिन पहले जैसी बात अब नहीं है। दशहरा से कुछ दिन पहले ही राम लीला का आरम्भ हो जाता था। रोज रात को पुरे गाँव के लोग राम लीला देखने जाते थे।
हमें अपने अन्दर के बुराइयों को ख़त्म कर देना चाहिए
तुलसीदास जी ने जब अकबर के समय में राम लीला का चलन शुरू किया था, उस समय ना टीवी थे ना ही इन्टरनेट और इसलिए भगवान राम के जीवन चरित्र को लोंगो तक पहुचाने के लिए राम लीला का आयोजन किया गया। ताकि लोग उनके चरित्र से सीख लेके अपने जीवन में उतारे। फिर अंत में रावण का दहन करके ये दिखाया जाता था की बुराइयों का अंत क्या होता है? इसलिए हमें अपने अन्दर के बुराइयों को ख़त्म कर देना है। आज टीवी और इन्टनेट में हर कोई रामायण देख के बैठा है। अब तो टीवी में ऐसे-ऐसे धार्मिक कार्यक्रम आ रहे है की पूछो मत। आज के लोग इतने शिक्षित और समझदार हो गये हैं की सबको पता है बुराई और अच्छाई क्या होता है। फिर भी दुनिया में बुराइयाँ बढ़ती ही जा रही है। जो संदेश देने के लिए ये प्रथा शुरू किया गया था, वो संदेश तो आज कोई लेना ही नही चाहता। तो फिर हर साल रावण दहन करने से क्या फायदा है? फायदा कुछ नहीं, परंतु राजनीतिक प्रतिद्वंदिता ऐसी कि पुतला दहन कार्यक्रम के एकाधिकार की अव्यवहारिक चेष्टा जो मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम के चरित्र के बिल्कुल विपरीत है।
रावण से ज्यादा बुरे इन्सान इस दुनिया में है?
सच बात तो ये है, की रावण से ज्यादा बुरे इन्सान इस दुनिया में है। बहुत से लोग इस दुनिया में इतने बुरे है की रावण भी उसके सामने देवता लगने लगे। फिर ऐसे बुरे लोग बुराई के नाम पे रावण दहन करे तो ये तो रावण का अपमान ही है, साथ ही अच्छाई का भी। अगर प्रकृति ने ये नियम बनाया होता की जो इन्सान राम के जैसा ना सही उनके आस पास भी हो सिर्फ वही रावण का दहन कर सकेगा तो मै कहता हूँ की आज कही भी एक भी रावण का दहन नही हो सकेगा। कहा जाता है की रावण बुराई का प्रतीक है और रावण दहन का मतलब होता है अपने अन्दर के बुराई को जलाना। हर साल रावण दहन होता है, कितने लोगो की बुराइयां ख़तम होती है इससे? ऐसा नही है की हर इन्सान बुरा है, जो अच्छे है उन्होंने तो अपने अन्दर के रावण को कब का मार दिया है। कहने का तात्पर्य की वो लोग खुद को बुराइयों से दूर रखे हुए है। इन लोगो को रावण दहन करने की जरुरत ही नहीं है। दूसरी ओर अधिकतर इन्सान जिनके अन्दर कुछ ना कुछ बुराई है वो उन्हें छोड़ना नही चाहते, चाहे उन्हें ही क्यों ना दहन कर दिया जाये।
रावण से सिखने योग बाते
इसलिए मैं ये कहता हूँ की, रावण का दहन कीजिये पर पहले राम जैसे तो बन लीजिये। अधिकतर लोग जो रावण से भी कही अधिक धूर्त और पापी है। पहले उन्हें अपने बुराइयां कम करना होगा। रावण भी बहुत बड़ा पुण्यात्मा था, अगर आज की स्थिति से तुलना की जाये तो…..रावण की लंका सोने की थी, मतलब बहुत ही समृद्ध, खुशहाल और सबसे बड़ी बात, “साफ़ सुथरा”। हमारे देश के हालात क्या रावण के लंका जितना खुशहाल, समृद्ध और साफ़ सुथरा है? रावण पराक्रमी था, निडर, खतर लेने वाला, क्या आज के लोग ऐसे है? अधिकतर लोग नहीं है। रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए अपने प्राण लुटा दिया। आज शायद ही कोई भाई ऐसा करेगा? रावण ने एक स्त्री का हरण जरुर किया था लेकिन उसकी आज्ञा के बिना उसे छुआ तक नही और आज रोज हो रहे बलात्कार के बारे में तो हर कोई जानता है। रावण के राज्य में भ्रष्टाचार, अपराध आदि नही थे आज के हालात तो सबको पता है।
अपनी अंतर आत्मा से जरुर पूछे
मै इस लेख के माध्यम से यही कहना चाहता हूँ कि आप अपने अन्दर झांक के देखिये, क्या आपको वो इन्सान नजर आया जो सही मायनो में रावण को मारने के काबिल है? अगर हां, तो आप बिलकुल रावण दहन कर सकते है, लेकिन अगर नही तो स्वयं को रावण दहन के काबिल बनाने का प्रयास करना ही प्रभु श्री राम के मार्ग पर चलने की प्रारंभिक स्थिति होगी।
