संपादकीय@राष्ट्रपिता के दिखाए मार्ग पर कितने लोग चल रहे हैं?

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लेख रवि सिंह:- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती अवसर पर आज देश की राजनीति पर विचार आवश्यक है। आज सत्य अहिंसा का मार्ग प्रसस्त करने वाले राष्ट्रपिता के दिखाए मार्ग पर कितने लोग चल रहे हैं और कितने केवल दिखावा कर रहें हैं यह देखा जा सकता है। राजनीतिक जीवन जी रहे जनप्रतिनिधि की जिम्मेदारी निभा रहे लोग क्या राष्ट्रपिता के दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं इस बात का जवाब खोजा जाएगा तो यह देखने को मिलेगा की ज्यादातर राजनीतिज्ञों का सत्य व अहिंसा से कोई लेना देना ही नहीं है वहीं राजनीति को आय का जरिया बनाकर ज्यादातर राजनीतिज्ञ राजनीति कर रहें हैं।
आजकल प्रायः देखा जा सकता है कि जब कहीं भी अपने निर्वाचन क्षेत्र में निर्वाचित जनप्रतिनिधि जाते हैं उनके साथ अवैध कारोबार से जुड़े लोग जरूर साथ होते हैं और वही जनप्रतिनिधियों के सबसे खास होते हैं यह सामान्य सी बात हो गई है। जन सरोकारों से जनप्रतिनिधियों को कोई लेना देना रह गया हो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता किस तरह योजनाओं को क्रियान्वित कराकर ज्यादा से ज्यादा आय स्वयं के लिए अर्जित कर ली जाए यही एकमात्र सेवा धेय रह गया है। अवैध कारोबार जो असत्य का मार्ग कहा जा सकता है उससे जुड़े लोग ही आज जनप्रतिनिधियों के पथप्रदर्शक हो गए हैं और उनके बिना जनप्रतिनिधियों का एक कदम भी चलना संभव नहीं है यह देखा जा सकता है।
अवैध कारोबार और कारोबारियों के लिए जनप्रतिनिधियों का समर्पण भी इस कदर आत्मीयता से भरा होता है कि अवैध कारोबारियों के लिए कानून की शिथिलता हर स्थिति तक प्रदान हो सके यही जनप्रतिनिधियों का प्रयास रहता है।राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती अवसर पर क्या जनप्रतिनिधि संकल्प लेंगे की उनका मार्ग सत्य एवम अहिंसा से परिपूर्ण होगा यदि ऐसा संकल्प वह लेते हैं तभी राष्ट्रपिता द्वारा प्रसस्त मार्ग पर चलकर देश प्रगति पथ पर आगे बढ़ सकेगा वरना जैसा कि आजकल देखा जा रहा है कि अवैध कारोबार और कारोबारियों के सहारे ही राजनीति आगे बढ़ रही है और राजनीति में वही आगे बढ़ पा रहें हैं जिनके पास अवैध कारोबारियों की फौज है
अब अवैध कारोबारियों की फौज आर्थिक रूप से मदद के लिए है यह बात समझा जा सकता है । जहां तक आम जनता की सुध लेने की बात रही तो जनप्रतिनिधि आम जनता की सुध तभी लेते हैं जब जनता के लिए उनके भलाई के लिए होने वाले कामो में जनप्रतिनिधियों को लाभ नजर आता है। निर्माण ही विकास है कि परिभाषा ही राजनीति रह गई है और निर्माण जनप्रतिनिधियों की आय। वेतन भत्तों से जनप्रतिनिधियों को सन्तुष्ट नहीं देखा जा रहा है अन्य आय की तलाश में ही राजनीति में लोगों का प्रवेश हो रहा है राजनीति आज एक व्यवसाय बनकर रह गया है यह कहना भी गलत नहीं होगा। आज सेवा भाव और विकास करने का संकल्प लेकर निर्वाचित हुए जनप्रतिनिधि जनता के बीच तभी जाते हैं जब उनको दुबारा जनता से स्वयं के निर्वाचित किये जाने मंशा रहती है।


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