रायपुर@वन विभाग का एक और कारनामा

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इतने वर्ष मे आधा दर्जन हाथी के बच्चो की मौत, आकड़े निकालने मे छूट रहे पसीने करोड़ो रुपए खर्च फिर भी ये हाल
रायपुर, 27 सितम्बर 2022।
वन विभाग मे चल रहे भीतरघात बड़े कारनामो का उजागर हुआ है। बीते चार वर्ष मे आधा दर्जन हाथी के बच्चो की मौत हो गई है। कोई बीमारी और झुड से बिछड़ने के कारण हुई है। बाकी आकड़े निकालने मे विभाग के जिम्मेदारी अधिकारी का पसीने छूट रहे है।
बता दे कि प्रदेश मे हाथी मानव द्वद को रोकने से लेकर उनके सरक्षण मे शासन-प्रशासन एक वर्ष मे करोड़ो रुपए खर्च तो करता है। इसके बावजूद वन विभाग हाथियो के बच्चो की मौत को रोकने मे असफल साबित हो रहा है।
अभी हाल ही मे जशपुर वनमडल क्षेत्र मे हाथी के झुड से एक माह का बच्चा बिछड़ने का मामला सामने आया है, लेकिन बच्चे को ढूढने मे वन विभाग के अधिकारियो-कर्मचारियो के पसीने छूट गए है। इसके लिए वन्यजीव प्रेमियो ने वनमत्री मोहम्मद अकबर से मुलाकात कर हाथी के बच्चे को ढूढने की माग कर ज्ञापन सौपा।
यहा हुआ दो हाथियो की मौत
महासमुद जिले के चदा हाथी दल मे विचरण करते समय दो शावको की मौत हो गई। 2018 मे महासमुद वनपरिक्षेत्र के कुकाडीह बजर से जोबा इलाके होते हुए 22 जगली हाथियो का झुड विचरण करते हुए अछोला के पास महानदी तट पहुचा। इस दौरान झुड से एक बच्चा बिछड़ गया, जो पूरी तरह घायल हो गया था। जिसकी तीन दिन बाद मौत हो गई थी।
वन अफसरो के मुताबिक, हाथी के बच्चे के सिर मे गभीर चोट और पेट मे अल्सर था। स्थिति गभीर होने के कारण डॉक्टर भी उसे नही बचा सके। इसी तरह महानदी मे मार्च 2019 अछोला महानदी तट पर नदी मे डूबने से एक हाथी के बच्चे की मौत हो गई थी। इस दौरान नदी मे डूबता देख हाथियो के झुड ने बच्चे को कई घटो तक निकालने की कोशिश की, लेकिन वे विफल रहे।
इसके बाद हाथियो का दल वहा से चला गया। इसके अलावा, धमतरी मे दलदल मे फसकर 4 वर्ष के बच्चे की मौत हो गई। इसी तरह बालोद जिले मे चार महीने के हाथी के बच्चे का शव और बलरामपुर जिले मे 7 महीने के बच्चे का शव मिला था।
हरपीज वायरस से तीन हाथी के बच्चे की मौत
पिछले वर्ष सूरजपुर जिले के पिगला रेज मे एलीफेट रेस्क्यू सेटर मे कुमकी हाथी गगा व योगलक्ष्मी के करीब डेढ़ वर्षीय दो बच्चो की मौत 24 घटे मे हो गई थी। इसका पोस्टमार्टम मे पता चला कि इसकी मौत हरपीज वायरस की चपेट मे आकर हुई थी। वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. राकेश वर्मा ने बताया कि यह बीमारी आमतौर पर दो से 10 साल तक के हाथियो को होती है। इस वायरस के सक्रमण के कारण होने वाला रक्तस्त्राव हाथियो की मौत का कारण बनता है। इसका प्रमुख लक्षण हाथियो मे भूख कम लगना, नाक से पानी निकलना और सूझी हुई ग्रथिया है।
दल से बिछड़ने का ये एक कारण
पूर्व सीसीएफ व भारत सरकार के एलीफेट प्रोजेक्ट के सदस्य केके बिसेन ने बताया कि अधिकाश हाथी के झुड से बच्चे बीमार होने के कारण बिछड़ जाते है, या कई बार लोगो के शोरगुल से बच्चे इधर-उधर चले जाते है। हाथी के बच्चे को लोगो के सपर्क से दूर रखने के लिए हाथियो के लीद को बच्चे के पूरे शरीर मे लेप चढ़ाकर जगल मे बाड़े मे रखना चाहिए। जहा से उसका झुड आसानी से ले जा सके।
हाथी के बच्चो को मिल्क फामूर्ले से दूध पिलाया जाता है
वन्यजीव प्रेमी नितिन सिघवी ने बताया कि हाथी के बच्चे को दूध पिलाने के लिए क्या वन विभाग के पास बोतल है? या उसे अनहाईजीनिक तरीके से पॉलिथीन मे छेद करके दूध पिलाया गया। जबकि, हाथी के बच्चो को मिल्क फामूर्ले से दूध पिलाया जाता है। वरिष्ठ निदेशक एव मुख्य पशुचिकित्सक वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इडिया के डॉ. असरफ ने बताया कि कोटोनट पाउडर, मिल्क पाउडर व प्रोटिनेस को गर्म पानी मे मिलाकर दिया जाता है। इसमे भी उम्र के हिसाब से एक या दो बार दिया जाता है।
हाथी के बच्चे के बारे मे मै आपको बता नही सकता
वही डॉ. पवन कुमार चदन, चिकित्सक, वन्यप्राणी ने कहा कि अभी हाथी के बच्चे के बारे मे मै आपको बता नही सकता, क्योकि अभी सबसे बड़ी चीज हमे इलाज के साथ-साथ उसे झुड मे शामिल करना है।


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