रायपुर, 20 सितम्बर 2022। उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ ने 19 सितबर को, वर्ष 2012 मे राज्य शासन के द्वारा आरक्षण के प्रतिशत मे वृद्धि के मामले मे अपना निर्णय सुनाया है, राज्य शासन ने इस निर्णय से असहमत होते हुए यह निर्णय लिया है कि इस मामले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील के माध्यम से प्रस्तुत किया जाएगा। राज्य शासन का यह मानना है कि यद्यपि वर्ष 2012 मे समुचित रूप से इस मामले मे तथ्य तत्कालीन सरकार मे पेश नही किए थे परन्तु फिर भी, छत्तीसगढ़ राज्य मे अनुसूचित जाति एव अनुसूचित जनजाति के आरक्षण प्रतिशत को देखते हुए, राज्य सरकार उपरोक्त फ़ैसले से पूरी तरह असहमत है, राज्य सरकार यह मानती है कि उपरोक्त निर्णय से राज्य के आरक्षित वर्ग मे समुचित विकास के मार्ग मे बाधित होगा।
उक्त निर्णय से राज्य सरकार सहमत नही है एव राज्य सरकार निर्णय को चुनौती देते हुए आरक्षित वर्ग को न्याय दिलाने मे साथ खड़ी है। यह अत्यत ही दुर्भाग्य का विषय है कि तत्कालीन राज्य सरकार ने इस मामले को बिना किसी तथ्य के जानबूझकर अनुसूचित जाति एव अनुसूचित जनजाति की आबादी के विकास एव आवश्यकताओ को नज़रअदाज़ करते हुए माननीय न्यायालय के समक्ष अधूरे तथ्य प्रस्तुत किए, जो दस्तावेज़ एव रिकॉर्ड भी तत्कालीन राज्य सरकार के पास उपलध थे। उन्हे भी तत्कालीन राज्य सरकार ने जानबूझकर माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नही किया था, परतु वर्तमान सरकार ने उक्त सबध मे समस्त तथ्यो को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति भी माँगी थी।
जिसे इस आधार पर मना किया गया कि चूकि पूर्व मे राज्य सरकार को समय देने के बावजूद भी वह मौक¸ा होने के बावजूद भी तत्कालीन सरकार ने जवाब मे सभी तथ्यो का उल्लेख नही किया, इसलिए अब उसकी अनुमति नही दी जा सकती है। परन्तु किसी भी सूरत मे समझ के अनुसूचित जाति एव जनजाति के हितो की रक्षा के लिए क¸ानून की अतिम सीढ़ी तक लड़ाई लड़ी जाएगी एव जो भी आवश्यक हो क¸दम उठाए जाएगे।