संपादकीय@73 की उम्र में जवानी की अंगड़ाई…सिद्धान्तों की लड़ाई या सत्ता की अंगड़ाई?

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लेख राकेश प्रताप सिंह परिहार:- बात गुलाम नबी आजाद की जो कांग्रेस से आज़ाद हो हुंकार भर कह रहे हम वर्तमान राजनीति की दिशा और दशा बदल देंगे….यह आत्मविश्वस नरेंद्र दामोदर मोदी के भावुकता की वजह तो नही?…नरेंद्र दामोदर मोदी से गुलामनबी आज़ाद की नजदीकियां जग जाहिर रही है…गुलाम नबी आजाद के विदाई वाले दिन राज्यसभा में पीएम मोदी भावुक हो गए थे। उन्होंने कहा कि गुजरात के यात्रियों पर जब आतंकियों ने हमला किया, सबसे पहले गुलाम नबी आजाद जी का उनके पास फोन आया। वो फोन सिर्फ सूचना देने का नहीं था, फोन पर गुलाम नबी आजाद के आंसू रुक नहीं रहे थे। पीएम मोदी ने बताया कि उस वक्त प्रणब मुखर्जी रक्षा मंत्री थे, तो उनसे फौज के हवाई जहाज की व्यवस्था की मांग की। उसी दौरान एयरपोर्ट से ही गुलाम नबी आजाद ने फोन किया, जैसे अपने परिवार के सदस्य की चिंता की जाती है वैसी ही आजाद जी ने उनकी चिंता की।इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि उनके द्वार हमेशा खुले हैं।
कॉंग्रेस छोड़ने की मूल वजह और किंगमेकर की बनाने चाह के पीछे मूल वजह यही तो नही?- केंद्र में राजनीति की एक लंबी पारी खेलने के बाद गुलाम नबी आजाद एक फिर से जम्मू-कश्मीर में अपना सियासी मैदान तलाश रहे हैं। हालांकि, अभी तक ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आजाद घाटी से चुनावी मैदान में उतरेंगे या ‘किंग मेकर’ की भूमिका में रहेंगे।
गुलाम ने घाटी में 3 चुनाव लड़े, एक जीता- आजाद ने घाटी में अब तक तीन बार चुनाव लड़ा है, इसमें से केवल एक ही बार जीत दर्ज कर पाए। वो भी तब जब वे मुख्यमंत्री थे। आजाद ने 1977 में पहला चुनाव इंदरवाल विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था। इसमें उन्हें महज 959 वोट मिले थे और वह हार गए थे। दूसरी बार, 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अप्रैल 2006 के उपचुनाव में भद्रवाह विधानसभा सीट से जीत दर्ज की थी। तीसरी बार, 2014 के लोकसभा चुनाव में आजाद भाजपा के डॉ. जितेंद्र सिंह से 60,000 से ज्यादा वोटों से हारे थे।
पीडीपी, एनसी और कॉंग्रेस को सीधा नुकसान- राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो गुलाब नबी आजाद के चुनावी मैदान में उतरने का सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा। कांग्रेस, पीडीपी और नैशनल कांफ्रेंस अलग धड़ों में बंटी है। अब गुलाम नबी के आने के बाद कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोट बैंक चार हिस्सों में बंट सकता है। मुस्लिम वोटबैंक की सेंधमारी का सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि भले ही गुलाम नबी आजाद की नई पार्टी को सीटें कम मिलें लेकिन उन्हें जो वोट मिलेगा वह पीडीपी, एनसी और कांग्रेस का वोट बैंक होगा।
गुलाम की राजनीतिक सफ़रनामा पर नजर डालेतो- महाराष्ट्र की वाशिम लोकसभा सीट से सांसद बन कर हुई  गुलाम पहली बार 1982 में इंदिरा सरकार में शामिल हुए थे और फिर नरसिम्हा राव की सरकार में उन्हें संसदीय मामलों और नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली. उसके बाद 2005 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के 7वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। कहा जाता है गुलाम को कॉंग्रेस में लाने वाले महरूम संजय गांधी थे। गुलाम का स्तीफा के बाद लिखे पाँच पन्नो के पत्र में जिन मुद्दों को उठाया है  क्या वे शुरुवाती दिनों के राजनीति में यही सब नही किया करते थे? कहा जाता है की महरूम संजय गांधी के सबसे बड़े दरबारियों में से एक थे। कुलमिलाकर  सारांश यह कि भाजपा के पास  जम्मू कश्मीर में कोई चर्चित चेहरा नही है जिसकी पहचान मैदानी इलाकों से लेकर घाटी तक हो। ऐसे परिस्थितियों में गुलाम नबी का चेहरा ही है जो भाजपा को भी शूट करती है और आज होने वाली राजनीति में  फिट भी बैठती है क्योंकि एक मात्र सिद्धान्त है सत्ता में शक्तिशाली बना रहना । सिद्धान्तों की बलि चढ़नी है तो चढ़ने दिया जाय।

राकेश प्रताप सिंह परिहार
(वरिष्ठ पत्रकार)
बिलासपुर


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