बैकुण्ठपुर@कोरिया जिला भाजपा वर्तमान अध्यक्ष रहेंगे यथावत या होगा बदलाव?

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  • भाजपा जिलाध्यक्ष बदले जाने पर आखिर कौन हो सकता है नया जिलाध्यक्ष,उठ रहा सवाल?
  • जिलाध्यक्ष बदले जाने की स्थिति में लक्ष्मण राजवाड़े हैं जिलाध्यक्ष के प्रबल दावेदार।
  • जिलाध्यक्ष के दावेदार रविशंकर शर्मा भी माने जा रहें हैं, लेकिन वह हैं पूर्व मंत्री भईयालाल राजवाड़े की पसंद।
  • संगठन की पसंद होते दो बार दावेदारी में मिल चुकी होती उन्हें जिलाध्यक्ष की कमान।
  • भईयालाल राजवाड़े के प्रत्याशी चुने जाने पर संगठन तभी मजबूत रहेगा जब जिलाध्यक्ष यथावत रहेंगे।
  • या लक्ष्मण राजवाड़े जिलाध्यक्ष बनेंगे।

-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 13 सितम्बर 2022 (घटती-घटना)। कोरिया जिला विभाजित हो कर दो भागों में बट गया है, एक जिला कोरिया है तो दूसरा जिला एमसीबी है अब भाजपा के जिला संगठन में बदलाव किये जाने की बात की जा रही है, क्योंकि प्रदेश संगठन में भी बदलाव हो चुका है और कार्यकाल पूरा होने पर जिलाध्यक्षों को भी बदलने की बात हो रही है, ऐसे में कोरिया जिले के जिलाध्यक्ष यथावत होगे या फिर जिलाध्यक्ष बदला जाएगा और यदि एमसीबी का जिलाध्यक्ष बनाया जाता है तो आखिर एमसीबी जिले का जिलाध्यक्ष पहला कौन होगा? यह तमाम तरह के सवाल है पर आगामी 2023 को लेकर इन सवालों और सही संगठन के चुनाव भी भाजपा के लिए जरूरी है, जिससे वह चुनाव में दमखम के साथ उतर सके। विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर बैकुंठपुर विधानसभा से भाजपा के प्रत्याशी भईयालाल राजवाड़े होंगे इसकी संभावना अधिक है और प्रत्याशी चुने जाने पर संगठन का किरदार भी बहुत अहम होगा, भईयालाल राजवाड़े को संगठन कितना मदद करेगा यह भी एक बड़ी बात है, भईयालाल राजवाड़े को संगठन तभी मदद करेगा जब जिलाध्यक्ष यथावत होंगे या फिर बदलने की स्थिति में लक्ष्मण राजवाड़े को जिला अध्यक्ष बनाया जाएगा, इसके अलावा यदि जिलाध्यक्ष की कमान और किसी को सौंपी जाएगी तो शायद संगठन और विधायक प्रत्याशी के बीच सामंजस्य का अभाव रहेगा जो चुनाव में नहीं होना चाहिए, वैसे सूत्रों की माने तो पूर्व कैबिनेट मंत्री भईयालाल राजवाड़े जिलाध्यक्ष के तौर पर रवि शंकर शर्मा को देखना चाह रहे थे पर पिछले दो बार एकबार स्वर्गीय तीरथ गुप्ता को और फिर संगठन ने उन्हें मौका ना देकर कृष्णबिहारी जयसवाल को जिलाध्यक्ष बनाया था, इस बार फिर से कुछ खबर मिल रही है कि भईयालाल रजवाड़े रवि शंकर शर्मा को जिलाध्यक्ष के रूप में देखना चाह रहे हैं पर अभी तक भईयालाल राजवाड़े ने इस संबंध में चुप्पी साधी हुई है और इस पर उन्होंने मुहर नहीं लगाई है।
क्यों यथावत हो सकते हैं जिलाध्यक्ष
कोरिया जिले के भाजपा के जिलाध्यक्ष कृष्णबिहारी जायसवाल को 3 साल पहले पहली बार जिलाध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी इस बीच 2 साल कोरोना में ही बीत गया और बहुत ज्यादा वह कुछ कर नहीं पाए और अब जब करने का समय आया तो इनका कार्यकाल ही समाप्त हो गया है पर यह कहा जा रहा है कि पिछले 3 सालों में उन्होंने सब को जोड़कर रखने का काम बखूबी निभाया भले से ही विरोध करने में नाकाम रहे पर संगठन जोड़े रखने में सफल रहे विपक्षी होने के नाते इन्होंने वह विरोध नहीं दिखाया जो विरोध विपक्षी पार्टी को दिखाना था पर कोई भी पदाधिकारी इन से नाखुश नहीं रहा और ना ही कोई ऐसी बातें हैं जिससे कि संगठन के अंदर कोई फूट पड़े इस वजह से इन्हें दोहराए जाने को लेकर अंदर खाने में यह बात चल रही है कि इन्हें यथावत रखा जाए ताकि 2023 के चुनाव में संगठन व प्रत्याशी एक साथ होकर चुनाव लड़ सकें।
यदि बदलना ही जरूरी है तो लक्ष्मण राजवाड़े को मिले मौका
यदि जिलाध्यक्ष का बदलना अत्यंत जरूरी है तो ऐसी स्थिति में संगठन को किसके हाथ में दिया जाए इसे लेकर सबसे पहला नाम लक्ष्मण राजवाड़े का आ रहा है क्योंकि यह वह नाम है जो भाजपा में काफी पुराना है और विधायक के टिकट मिलने पर भी इंकार कर सिर्फ पार्टी के काम करने के लिए, उन्होंने विधायक का टिकट ठुकराया था उनका कहना था कि यह पार्टी के साथ रहकर पार्टी को मजबूत करना चाहते हैं इसलिए संगठन को ऐसे योग व्यक्ति की जरूरत है जो संगठन को इतना मजबूत कर सके कि सत्ता दोबारा हासिल की जा सके, यदि एक राजवाड़े विधायक तो दूसरा राजवाड़े जिला अध्यक्ष दोनों की जोड़ी में समाज का वोट भाजपा को मिल सकता है और जिलाध्यक्ष के लिए लक्ष्मण राजवाड़े का नाम ऐसे भी बहुत साफ सुथरा बेदाग छवि का है जिस वजह से उनके दावेदारी जिलाध्यक्ष के लिए ज्यादा मानी जा रही है।
क्या खास बात है जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मण राजवाड़े
भारतीय जनता पार्टी जिला कोरिया संगठन में जिला उपाध्यक्ष पूर्व जिला पंचायत सदस्य लक्ष्मण राजवाड़े की बात वर्तमान राजनीति एवम चुनावों को की जाए तो बहुत खास है, फिलहाल लक्ष्मण राजवाड़े स्वस्थ है पिछले कई वर्ष तक अस्वस्थ होने की वजहों से राजनीति से भले ही यह शारीरिक रूप से अपनी दूरियां बना चुके थे, लेकिन स्वस्थ होकर फिर से अब सक्रिय राजनीति में अपनी जिम्मेदारी अपनी पार्टी के लिए बखूबी निभा रहें हैं और लगातार जनसंपर्क एवम अपनी पार्टी के द्वारा दिये गए दायित्वों को अच्छे से निभा रहे हैं। लक्ष्मण राजवाड़े भाजपा के एक ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता हैं जिन्होंने कभी किसी पद के लिए अपनी तरफ से पार्टी में न तो प्रयास किया न ही कभी संगठन के खिलाफ जाकर काम किया। लक्ष्मण राजवाड़े भाजपा के हमेशा संकटमोचन बनते आये हैं। इनका राजनीतिक सफर ग्राम पंचायत सरपंच से शुरू हुआ उन्होंने 1 ही वर्ष में सरपंच और जिला पंचायत चुनाव दोनों जीता। इन्होंने दोनों चुनाव 1998 में अविभाजित मध्य प्रदेश व अविभाजित सरगुजा जिला रहते हुए चुनाव लड़ा और जीता, यह ऐसे नेता है जो निस्वार्थ भाजपा के साथ जुड़े है और आज भी भाजपा के लिए समर्पित है इनकी कुशल राजनीति इनकी पहचान है कृषक होने के साथ यह एक अच्छे राजनीतिक भी माने जाते हैं, कभी भी इन्होंने बड़ा ख्वाब नहीं देखा विधायक के लिए दावेदार माने जाने पर साथ ही मिल रहे टिकट तक को उन्होंने पार्टी हित में वापस कर दिया और पार्टी के प्रत्यासी के लिए जी जान से चुनाव प्रचार करते हुए विजय का रास्ता बनाते आये।
आइये जानते हैं उनकी राय
सवालः- अपने राजनीति में ही आने का फैसला क्यों किया?
उत्तरः-मैं राष्ट्रीय राज्यमार्ग पर स्थित गांव का निवासी हूं,पहले और आज की स्थिति के हिसाब से गांवो का विकास बिल्कुल हुआ,लेकिन हमारे पढ़ाई के दौरान गांवो का विकास उस स्तर पर जारी नही हुआ था। जब हम गांव से अपने ही जिले के छोटे शहरों की ओर जाते थे अपने गांव पिछड़ा नजर आने लगता था। गांव विकसित हो सके सभी सुविधाएं गांव में उपलब्ध हो सके यही उद्देश्य लेकर मैंने राजनीति में प्रवेश किया।
सवालः-आपने जिला पंचायत चुनाव लड़ने का ही क्यों विचार किया?
उत्तरः-जिला पंचायत का चुनाव मैंने इसलिए लड़ने का मन बनाया क्योंकि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था की जब शुरुआत हुई जिला पंचायत,जनपद पंचायत,एवम गांव की सरकार का गठन तय हुआ। गांव की सरकार जो पंचायत है के ऊपर जनपद एवम उसके ऊपर जिला पंचायत का नियंत्रण तय किया गया। मैंने जिला पंचायत में जाकर अपनी तरफ से क्षेत्र सहित अपने गांव की सरकार की मदद करने की ठानी और उसी उद्देश्य के कारण मैंने जिला पंचायत का चुनाव लड़ा एवम क्षेत्र के विकास को गति देने का अपनी तरफ से प्रयास किया।
सवालः-आपने कभी विधानसभा या कोई दूसरा चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाहा?
उत्तरः- हंसते हुए इन्होंने बताया कि अभी भी समय नहीं बिता है। जब कहिए तब लड़ लेंगे।किसी भी चुनाव में अपनी दावेदारी रखने से पहले औरों की दावेदारी को भी परख लेना चाहिए,हो सकता है आपसे भी कोई योग्य हो। वैसे भी भाजपा संगठन में जैसे ही आप योग्य मान लिए जाएंगे आपको भी अवसर मिला समझिये। मैंने कभी इस विषय मे ज्यादा नही सोचा संगठन के निर्देश पर कार्य करता आया हु आगे भी करता रहूंगा।
सवालः-मतलब आप भविष्य में खुद को दावेदार मानते हैं?
उत्तरः-हंसते हुए,यह प्रश्न जरा कठिन है,मैं दावेदार हूं या नहीं यह तय करना संगठन का काम है। मैं हमेशा से अपने संगठन के साथ निष्ठा से अपनी जिम्मेदारी निभाता आया हूं आगे भी निभाता रहूंगा यही केवल कह सकता हूं। वैसे भी भाजपा में प्रत्येक कार्यकर्ता किसी भी चुनाव के लिए दावेदार होता है, संगठन को जिसके ऊपर भरोसा हुआ वह दावेदार हुआ। यहाँ निष्ठा एवम कार्य करने की ललक देखी जाती है, सेवा भाव व समर्पण देखा जाता है।
सवालः-चुनावों में बाहरी भीतरी जैसे शब्दों को लेकर क्या कहना है आपका।
उत्तरः- जो योग्य है,जिसमें जनता के लिए बेहतर करने की ललक है,वह कहीं से भी चुनाव लड़े उसमें बाहरी भीतरी जैसे शब्दों का प्रयोग करना बिल्कुल गलत है।राजनीति में कई लोग अपना कार्यक्षेत्र बदलकर भी बेहतर सेवा प्रदान कर रहें हैं जिसका जनता को लाभ भी मिल रहा है जैसे हमारे देश के प्रधानमंत्री ही गुजरात के होकर बनारस से चुनाव लड़ते आ रहें हैं, बनारस का क्या विकास नही हो रहा है। बनारस लगातार विकसित होता नजर आ रहा है। राजनीति में बाहरी भीतरी वही लोग कहते हैं जो अपनी दावेदारी बचाने के लिए किसी योग्य की दावेदारी को छल एवम झूठी बातों से समाप्त करना चाहते हैं। महत्वाकांक्षी लोग जो जनाधार विहीन होते हैं वही इस तरह की बात करते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार सेवाभाव एवम समर्पण के साथ आप किसी भी जगह से जाकर चुनाव लड़े।ले किन उस क्षेत्र का जितने पश्चात पूरा ध्यान रखें।
सवालः-राजनीति में जातिवाद के आधार पर चुनावों में टिकट वितरण को लेकर आपकी राय।
उत्तरः- राजनीति में प्रत्येक जाति, धर्म एवम सम्प्रदाय के लोग विभिन्न दलों में अपना बेहतर समय एवम समर्पण प्रदान कर रहें हैं। राजनीति में काम कर रहा हर व्यक्ति अपने लिए भी अवसरों की प्रतीक्षा में रहता है। यदि किसी होनहार का योग्य होने के बाद भी केवल इसलिए अवसर प्रदान करना रोक दिया जाय क्योंकि उसके जाति की संख्या वोटों के हिसाब से कम है तो यह गलत परम्परा होगी साथ ही यह एक तरह से उन लाखों कार्यकर्ताओं के लिए एक कुठाराघात होगा जो राजनीतिक संगठनों को अपने खून पसीने से सींचकर आगे लेजाकर सत्ता की कुर्सी का हक़दार बनाते हैं। राजनीति में काम एवम मेहनत के आधार पर ही अवसर प्रदान किये जाने का मैं पक्षधर हूँ। वह योग्यता बड़ी संख्या वाले जाति से आने वाले के पास भी हो सकती है और कम जनसंख्या वाले जाति से आने वाले कार्यकर्ता के पास भी। किसके पास ज्यादा अनुभव एवम योग्यता है यह उसके कार्यों एवम समर्पण के आधार पर ही तय किया जाना चाहिए।


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