नई दिल्ली, 23 अगस्त 2022। देश मे रेवड़ी कल्चर को लेकर राजनीतिक दलो के बीच छिड़ी जग के बाद सुप्रीम मे कोर्ट मे आज इस मामले को लेकर सुनवाई हुई। इस दौरान अदालत ने कहा कि गरीबी के दलदल मे फसे इसान के लिए मुफ्त सुविधाए और चीजे देने वाली स्कीमे महत्वपूर्ण है। सवाल यह है कि इस बात का फैसला कौन लेना कि क्या चीज मुफ्तखोरी के दायरे मे आती है और किसे जनकल्याण माना जाएगा? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम चुनाव आयोग को इस मामले मे अतिरिक्त शक्ति नही दे सकते। अदालत ने कल भी इस मामले पर सुनवाई करने की बात कही है।
अदालत ने कहा कि मुफ्त उपहार एक अहम मुद्दा है और इस पर बहस किए जाने की जरूरत है। सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि मान लीजिए कि अगर केद्र सरकार ऐसा कानून बनाती है जिसके तहत राज्यो को मुफ्त उपहार देने पर रोक लगा दी जाती है, तो क्या हम यह कह सकते है कि ऐसा कानून न्यायिक जाच के लिए नही आएगा। ऐसे मे हम देश के कल्याण के लिए इस मामले को सुन रहे है।
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले कहा था कि हम यह फैसला करेगे कि मुफ्त की सौगात क्या है। अदालत ने कहा कि क्या सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल, पीने के पानी तक पहुच, शिक्षा तक पहुच को मुफ्त सौगात माना जा सकता है। हमे यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि एक मुफ्त सौगात क्या है। क्या हम किसानो को मुफ्त मे खाद, बच्चो को मुफ्त शिक्षा के वादे को मुफ्त सौगात कह सकते है। सार्वजनिक धन खर्च करने का सही तरीका क्या है, इसे देखना होगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार को कहा था कि राजनीतिक दलो और व्यक्तियो को सवैधानिक दायित्वो को पूरा करने के उद्देश्य से चुनावी वादे करने से नही रोका जा सकता। साथ ही ‘फ्रीबीज’ शबद और वास्तविक कल्याणकारी योजनाओ के बीच अतर को समझना होगा। कोर्ट ने महात्मा गाधी ग्रामीण रोजगार गारटी योजना (मनरेगा) का उल्लेख किया और कहा कि मतदाता मुफ्त सौगात नही चाह रहे, बल्कि वे अवसर मिलने पर गरिमामय तरीके से आय अर्जित करना चाहते है।
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