- शैलेश शिवहरे का जन्मदिवस उत्सव किसी शक्तिप्रदर्शन से कम नहीं रहा।
- शैलेश शिवहरे का जन्मदिवस उत्सव आयोजन अच्छे-अच्छे राजनीतिक लोगों के सीने में सांप लोटने जैसा था।
- भाजपा नेता शैलेश शिवहरे का जन्मदिन कई जगह मनाया गया जन्म उत्सव आगामी चुनाव से जुड़ा दिखा।
- जन्म उत्सव में शैलेश शिवहरे ने जनसंपर्क साधा पर वास्तविकता में अपने विधानसभा के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया।
- जो लोगों को अगले विधानसभा में वह अपनी और आकर्षित करा सकें।
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 17 अगस्त 2022 (घटती-घटना)। कोरिया जिले के बैकुंठपुर नगरपालिका के प्रथम निर्वाचित अध्यक्ष शैलेश शिवहरे का विगत दिनों जन्मदिवस था और उनका जन्मदिवस बैकुंठपुर शहर आसपास बड़ी धूमधाम से मनाया गया शहर सहित आसपास के कुछ ग्रामीण इलाकों में भी उनके जन्मदिवस पर आयोजन किये गए जिसमे शैलेश शिवहरे शामिल भी हुए और पूरा आयोजन देखकर यही लगा कि यह आगामी विधानसभा में अपनी दावेदारी दर्ज कराने को लेकर एक प्रकार का शक्ति प्रदर्शन भी है और जिसमें बहोत सफल होते हुए शैलेश शिवहरे नजर नहीं आये क्योंकि पूरे विधानसभा की बजाय केवल बैकुंठपुर शहर व उसके आसपास के एक दो गांवों में ही आयोजन हो सका।
शैलेश शिवहरे कोरिया जिले की राजनीति का वह चेहरा हैं जो कभी पूर्व कैबिनेट मंत्री भइया लाल राजवाड़े के सबसे खास माने जाते थे और यहां तक की कहा यह भी जाता है कि पूर्व मंत्री की शैलेश शिवहरे से इतनी निकटता थी की केवल शैलेश शिवहरे की नगरपालिका चुनाव में जीत सुनिश्चित करने के लिए पूर्व कैबिनेट मंत्री ने पार्टी लाइन से बाहर जाकर काम किया था और उस समय भाजपा से नगर पालिका अध्यक्ष पद के दावेदार रहे स्व तीरथ प्रसाद गुप्ता की बजाए पूर्व मंत्री ने शैलेश शिवहरे की मदद की थी जो सुनी जाने वाली बात भी है। शैलेश शिवहरे का राजनीतिक जीवन भी माना जाए तो निर्वाचित जनप्रतिनिधि के रूप में यहीं से आरंभ हुआ था और वह पूरे पांच साल नगर पालिका बैकुंठपुर के अध्यक्ष बने रहे थे। शैलेश शिवहरे बाद में भाजपा से टिकट पाकर दूसरा चुनाव हार गए और यह एक ऐसा अवसर था जब यह भी देखने को मिला कि उनकी स्वीकार्यता शहर में कम हुई थी और वह किन कारणों से हुई थी यह समझ मे नहीं आ सका था। वैसे तो नगरपालिका अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ते हुए दूसरी बार वह भले ही चुनाव हार गए थे लेकिन उनको बैकुंठपुर विधानसभा के लिए भाजपा के दावेदार के रूप में देखा जाने लगा था और वह लगातार खुद को सुर्खियों में भी रखने का प्रयास करते ही रहते थे।
शैलेश दूसरे चुनाव में हार मिलने के बाद भी तीसरी बार नगरपालिका चुनाव के मैदान में उतरे
शैलेश शिवहरे दूसरे चुनाव में हार मिलने के बाद भी तीसरी बार नगरपालिका चुनाव के मैदान में उतरे पर परिस्थितियां इसबार दूसरी थीं और इसबार चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से अध्यक्ष का लड़ा जाना था और साथ ही अध्यक्ष पद महिला के लिए आरक्षित था और शैलेश शिवहरे ने अपनी धर्मपत्नी को भी वार्ड पार्षद के लिए भाजपा से टिकट दिलाया और स्वयं भी भाजपा की टिकट पर ही पार्षद का चुनाव लड़ने मैदान में उतरे। नगरपालिका चुनाव में शैलेश शिवहरे की धर्मपत्नी तो चुनाव जीत गईं लेकिन स्वयं शैलेश शिवहरे चुनाव पार्षद का हार गए और दूसरी बार ऐसा साबित हुआ कि उनकी स्वयं की शहर में ही स्वीकार्यता कम हुई है और जिसकी वजह से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। खैर शैलेश शिवहरे ने सत्ताधारी दल जो कि पार्षदों के हिसाब से बड़ी बहुमत के साथ तो जरूर जीतकर आया था नगरपालिका चुनाव में लेकिन आपसी मनमुटाव और महत्वाकांक्षा की वजह से उसमें अध्यक्ष पद के कई दावेदार सामने थे और इसी महत्वाकांक्षा का शैलेश शिवहरे ने फायदा उठाया और अपनी धर्मपत्नी को वह अध्यक्ष बना ले गए। देखा जाए तो यह एक रणनीति के तहत जीत हुई और इसे स्वीकार्यता से जोड़कर नहीं देखा जा सकता क्योंकि यदि स्वीकार्यता होती वह स्वयं भी चुनाव वार्ड पार्षद का जीत चुके होते।
शैलेश शिवहरे ने पूर्व मंत्री का लिया आशीर्वाद
अपने जन्मदिवस पर शैलेश शिवहरे ने काफी जगह सम्मलित होकर आयोजनों में हिस्सा लिया लेकिन यदि विधानसभा के हिसाब से बात की जाए तो पटना क्षेत्र और बचरा पोड़ी क्षेत्र वह नहीं पहुंच सके उस अंदाज में जिस अंदाज में उन्हें विधानसभा प्रत्यासी बतौर पहुंचना था। शैलेश शिवहरे ने पूर्व मंत्री से भी आशीर्वाद लिया और जिसे देखकर यही भी कयास लगाया गया कि वह पूर्व मंत्री से उनके राजनीतिक उत्तराधिकार के लिए आशीर्वाद प्राप्त किये और पूर्व में साथ ही आज भी पूर्व मंत्री से निकटता की वजह से यह कयास कहीं न कहीं सही भी नजर आया, वैसे पूर्व मंत्री स्वयं चुनावी मैदान में होंगे इसबार या वह अपना उत्तराधिकारी घोषित करेंगे यह अभी इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि ऐसा कोई इशारा पूर्व मंत्री ने अभी नहीं किया है वैसे वह स्वयं चुनाव लड़ सकते हैं ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि उनकी स्वीकार्यता भी बनी हुई है वहीं वह लगातार जनसम्पर्क में बने हुए हैं।
शैलेश का राजनीतिक जीवन यदि सही मायने में देखा जाए तो एकआंधी की तरह आया और चला गया
शैलेश शिवहरे का राजनीतिक जीवन यदि सही मायने में देखा जाए तो एक आंधी की तरह आया और चला गया क्योंकि जब वह पहला चुनाव लड़ने निकले थे शहर में एक लहर थी जो देखकर ही लगता था कि उनकी टक्कर में कोई नहीं वहीं दूसरे चुनाव में काफी मशक्कत और पूर्व मंत्री की भरपूर मदद के बावजूद वह चुनाव हार गए थे वहीं तीसरा चुनाव जैसा लोगों का भी कहना है कि उन्होंने यह चुनाव लड़कर बड़ी भूल अपने राजनीतिक जीवन के लिए किया वार्ड पार्षद का चुनाव लड़कर उन्होंने कहीं न कहीं अपने राजनीतिक जीवन को गहरा आघात लगाया और जिसकी वजह से विधानसभा प्रत्यासी बतौर उनकी उपस्थिति कहीं न कहीं भाजपा में दर्ज होती नजर नहीं आती। वैसे बैकुंठपुर शहर में शैलेश शिवहरे के समर्थकों की लंबी कतार है लेकिन शहर से बाहर उनके पास ऐसा कुछ नहीं जो उन्हें एक बड़े चुनाव के लायक बताता हो।
शैलेश शिवहरे के लिए जन्मदिवस पर जितने भी आयोजन हुए उनके समर्थकों ने किए,अभी उनके लिए मेहनत की स्वयं आवश्यकता है
नेताओं के जन्मदिवसों में बड़े बड़े आयोजन और उपस्थित जनसमुदाय देखकर ही किसी को सर्वमान्य माना जाता तो ऐसे आयोजन सभी करते नजर आते वैसे शैलेश शिवहरे के लिए जन्मदिवस पर जितने भी आयोजन हुए उनके समर्थकों ने किए फिर भी अभी उनके लिए मेहनत की स्वयं आवश्यकता है तभी जाकर वह पूरे विधानसभा में स्वीकार्यता अपनी साबित कर पाएंगे। शैलेश शिवहरे के जन्मदिवस पर जो आयोजन हुए यदि उसकी बात की जाए तो यह उन अन्य भाजपा से टिकट की चाह रखने वालों के लिए जरा सोचने वाला विषय रहा होगा क्योंकि यदि प्रदर्शन और वह भी शक्ति प्रदर्शन की बात की जाए तो बैकुंठपुर शहर आसपास शैलेश शिवहरे ने अपनी बेहतर उपस्थिति दर्ज कराई और यह साबित किया कि भले ही पूरे विधानसभा में नहीं फिर भी कुछ जगहों तक उनका जनाधार इतना जरूर है जो अन्य की तुलना में ज्यादा है।
निर्वाचित कार्यकाल में या बाद में कोई अपने काम की ऐसी अमिट छाप नहीं छोड़ड़ी जिस से उनकी लोकप्रियता साबित हो सके
वैसे शैलेश शिवहरे ने अपने निर्वाचित कार्यकाल में या बाद में कोई अपने काम की ऐसी अमिट छाप नहीं छोड़ी जिसकी वजह से उनकी लोकप्रियता साबित हो सके,विकासकार्यों की बात भी की जाए तो यदि शहरवासियों को विकास दिखाई दिया होता वह दूसरा और तीसरा चुनाव नहीं हारते। अब यह तो विधानसभा चुनाव के समय भाजपा को तय करना है साथ ही पूर्व मंत्री की भी बातें सुनी जाएंगी भाजपा में की यदि वह चुनाव से बाहर रहते हैं तो उनका उत्तराधिकारी कौन होगा वहीं क्या वह चुनाव से बाहर रहने वाले हैं इस चुनाव में।