बिजनेस डेस्क नई दिल्ली 20 जुलाई 2022। एनसीएलटी इस समय जीएसटी काउंसिल में भारतीय जनता पार्टी की 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारें हैं, लिहाजा इन राज्यों के समर्थन के बल पर केंद्र अपने 33 फीसदी मतों के साथ कोई भी निर्णय लागू कराने की स्थिति में है, जबकि गैर भाजपा शासित राज्यों की आवाज इसमें अनसुनी रह जाती है…
गरीबों के उपयोग की नॉन ब्रांडेड प्री-लेबल्ड वस्तुओं पर पांच फीसदी जीएसटी (5% GST) लगाने के निर्णय पर घमासान जारी है। केंद्र सरकार ने इस निर्णय का यह कहते हुए बचाव किया है कि यह फैसला जीएसटी काउंसिल में सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों की सहमति से लिया गया है। यह बताने का भी प्रयास किया गया है कि इस पर सभी राज्य सहमत थे और कुछ राज्यों में इस तरह का टैक्स पहले से भी लिया जा रहा था। लेकिन पता चला है कि देश के ज्यादातर गैर भाजपा शासित राज्य केंद्र के इस फैसले से सहमत नहीं थे। दिल्ली के बाद पश्चिम बंगाल ने भी इस फैसले का कड़ा विरोध किया है।
दिल्ली सरकार ने केंद्र के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि यदि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जाए, तो इस प्रकार का टैक्स लगाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री ने यह कहते हुए अपनी असहमति जताई है कि फैसला लेने में उनकी असहमति को नजरअंदाज किया गया है। कुछ अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों ने भी केंद्र के इस फैसले से अपनी असहमति जताई है।
कांग्रेस ने जमकर बोला हमला
कांग्रेस के मीडिया इंचार्ज जयराम रमेश ने आरोप लगाया है कि गैर ब्रांडेड कंपनियों के प्री-लेबल्ड वस्तुओं पर पांच फीसदी टैक्स लगाने का निर्णय जीएसटी काउंसिल की आभासी बैठक में लिया गया। इसमें वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण दूसरे राज्यों के वित्त मंत्रियों के सवालों का जवाब देने के लिए फिजिकली उपलब्ध नहीं थीं, लिहाजा कई राज्य इस पर अपनी असहमति नहीं जता सके। इस फैसले को जीएसटी काउंसिल का एकमत होकर लिया गया फैसला बताया जा रहा है, जबकि यह एकमत होकर लिया गया फैसला नहीं, बल्कि बहुमत के आधार पर लिया गया फैसला है। उन्होंने कहा है कि इस टैक्स वृद्धि के खिलाफ पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने अपना विरोध जताया था, लेकिन उनके विरोध को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया है कि शवदाह किये जाने वाली वस्तुओं पर भी जीएसटी दरें बढ़ाकर 18 फीसदी तक कर दिया गया है। कांग्रेस ने इस फैसले को अमानवीय बताया है और इसका पुरजोर विरोध किया है।
कैसे होता है जीएसटी काउंसिल में फैसला
दरअसल, जीएसटी काउंसिल के प्रावधान में सहमति से फैसला लिए जाने पर बल दिया गया है। इसमें कहा गया है कि चूंकि, काउंसिल के माध्यम से पूरे देश में लगने वाले टैक्स का निर्धारण किया जाएगा, इस पर सबकी सहमति होना बेहतर है। लेकिन किसी मुद्दे पर सबकी आम सहमति न होने पर बहुमत से फैसला लिए जाने का प्रावधान किया गया है। इसमें केंद्र को इतनी शक्ति दी गई है कि यदि वह चाहे तो अकेले अपने दम पर किसी निर्णय को लागू न होने दे।
काउंसिल में विपक्ष महत्त्वहीन क्यों
जीएसटी काउंसिल में किसी मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाती है, लेकिन आम सहमति न बनने पर बहुमत के आधार पर फैसला लिया जाता है। लेकिन इस बहुमत के फैसले के लिए काउंसिल के सभी सदस्यों के 75 फीसदी की सहमति अनिवार्य है। चूंकि, अकेले केंद्र सरकार को जीएसटी काउंसिल में 33 फीसदी की भागीदारी दी गई है, इसलिए यदि किसी फैसले से केंद्र सरकार सहमत नहीं होती है, और वह अपने सदस्यों के माध्यम से 33 फीसदी वोट नहीं देती है तो बाकी सदस्यों के वोट मिलकर केवल 67 फीसदी ही रह जाते हैं, और इस प्रकार किसी निर्णय के 75 प्रतिशत बहुमत से पास होने से पीछे रह जाते हैं। इस प्रकार केंद्र की सहमति के बिना जीएसटी काउंसिल में कोई निर्णय पास नहीं किया जा सकता।
भाजपा का दबदबा क्यों
चूंकि, इस समय भारतीय जनता पार्टी की 19 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारें हैं, लिहाजा इन राज्यों के समर्थन के बल पर केंद्र अपने 33 फीसदी मतों के साथ कोई भी निर्णय लागू कराने की स्थिति में है, जबकि गैर भाजपा शासित राज्यों की आवाज इसमें अनसुनी रह जाती है। यही कारण है कि केंद्र सरकार सभी गैर भाजपा शासित राज्यों का समर्थन न होने के बाद भी यह कहने की स्थिति में है कि यह बहुमत के साथ लिया गया फैसला है, जबकि इसमें गैर भाजपा शासित राज्यों की आवाज शामिल नहीं है।