टीएस के इस्तीफे में जो वजह है वह सरकार को कठघरे में खड़ा करती है?
इस्तीफा टीएस ने दिया पर तकलीफ विधायकों को क्यों? क्या विधायकों का कद टीएस से बड़ा या मुख्यमंत्री से छोटा?
क्या मुख्यमंत्री के करीबी बनने के लिए विधायकों ने टीएस के प्रति छेड़ा मुहिम या वास्तव में चाहते हैं पार्टी हित?
तकलीफ सहते रहो तो सब ठीक तकलीफ को उजागर करो तो सब गड़बड़?
छत्तीसगढ़ में 15 सालों का सूखा भोग चुकी प्रदेश कांग्रेस को यदि सफलता मिली और वह सत्ता में वापसी कर सकी तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कद्दावर नेता और मंत्री टी एस सिंहदेव का इसमे सबसे बड़ा योगदान रहा और उनके द्वारा पूरे प्रदेश में भ्रमण कर बनाई गई जन घोषणा पत्र ही इसकी मुख्य वजह बनी इससे कतई कोई इंकार नहीं कर सकता, क्योंकि सभी को मालूम है कि जन घोषणा पत्र लोकलुभावन था और सभी वर्गों सहित सभी कर्मचारी संघो तक से बातचीत करके उसे टी एस सिंहदेव ने तैयार किया था और वही एक वजह थी जो लोगों ने कांग्रेस पर विश्वास जताया और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार 15 साल बाद बन सकी। टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ के कद्दावर नेता हैं यह कहना फिलहाल तो गलत नहीं है लेकिन जिस तरह का व्यवहार उनके साथ इन सरकार के साढ़े तीन सालों में हुआ, उसको देखते हुए अब लगता है कि वह कद्दावर नेता कांग्रेस के हुआ करते थे यह कहना अब प्रारंभ करना पड़ेगा।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को जब बम्पर बहुमत प्राप्त हुआ तो ऐसा लगा था कि प्रदेश में कांग्रेस की 15 सालों बाद वापसी का श्रेय टीएस सिंहदेव को मिलेगा और उन्हें प्रदेश की कमान बतौर मुख्यमंत्री सौंपी जाएगी लेकिन ऐसा ना होते हुए प्रदेश में भूपेश बघेल को नेतृत्व मिला और अंदरखाने से ढाई ढाई साल के फार्मूले की बात सामने आई। ढाई साल किसी तरह बीते और जब टीएस सिंहदेव को लगातार दिल्ली की दौड़ लगाते देखा जाने तो इस बात पर विश्वास बढ़ने लगा कि ढाई ढाई साल का कोई फार्मूला जरूर था जिसे तब और बल मिलता गयं जब विधायकों को दिल्ली में डेरा जमाए देखा गया और भूपेश बघेल के पक्ष में अपना समर्थन देने की बात करते सुना गया, टीएस सिंहदेव ने भी ढाई ढाई साल वाले किसी फार्मूले पर यही कहा कि जो है वह सामने आएगा और वह दिल्ली की दौड़ लगाते रहे। दिल्ली दौड़ में टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री का पद तो नहीं मिला बल्कि उनकी छवि पर काफी हद तक असर डालने का प्रयास किया गया जिसमें बलरामपुर विधायक का जान से मारने का आरोप जिला कांग्रेस भवन उद्घाटन कुछ ऐसे अवसर आये जहां उनकी छवि उनकी कद को छोटा करने का प्रयास किया गया।
टीएस सिंहदेव लगातार शांत रहे और उन्होंने मुखर होकर साढ़े तीन सालों तक कुछ नहीं कहा यह सर्वविदित रहा लेकिन अचानक उन्होंने अपने मंत्री पद से जो उनके विभिन्न मंत्रालयों में से एक महत्वपूर्ण विभाग का मामला है से स्तीफा दे दिया तब माहौल गर्म दिखा और टीएस सिंहदेव की नाराजगी खुलकर सामने आई। टीएस सिंहदेव के स्तीफे में जो बात समझ मे आई वह यही रही कि उन्हें मुख्यमंत्री का पद तो देना दूर उनके मंत्रालयों के विभागों में भी उनकी नहीं चलती उनकी नहीं सुनी जाती जिस वजह से उन्होंने स्तीफा दिया है। टीएस सिंहदेव का कद आज एक आम विधायक जो मुख्यमंत्री खेमे का हो उससे भी कम है यह कहना भी गलत नहीं होगा क्योंकि टीएस सिंहदेव को पार्टी सहित सरकार में किनारे करते हुए सरकार चल रही है यह प्रतिदिन घट रही घटनाओं से साफ जाहिर है। टीएस सिंहदेव पर उनके कद पर केवल मुख्यमंत्री की तरफ से ही उसे छोटा करने का प्रयास किया जा रहा है ऐसा कहना गलत होगा, टीएस सिंहदेव के साथ पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी सौतेला व्यवहार कर रहा है यह साफ समझ मे आ रहा है। अब हाल फिलहाल में टीएस सिंहदेव के स्तीफे वाली घटना को ही यदि लिया जाए तो बताया जा रहा है कि 62 विधायकों ने टीएस सिंहदेव पर विपक्ष की तरह प्रहार सरकार पर करने का आरोप लगाया है और टीएस सिंहदेव की बर्खास्तगी की मांग केंद्रीय नेतृत्व को पत्र लिखकर की है।
अब विधायकों के द्धारा टीएस सिंहदेव की बर्खास्तगी के लिए केंद्रीय नेतृत्व को पत्र लिखा जाना सूरज को दिया दिखाने जैसा ही मामला कहा जा सकता है क्योंकि टीएस सिंहदेव ने कभी मुखर होकर किसी का विरोध नहीं किया और ना ही पार्टी नेतृत्व पर ही कोई सवाल उठाए, अपने ही मंत्रालय में अपना निर्णय नहीं ले पाने की व्यथा में यदि उन्होंने स्तीफा दिया भी है तो वह मुख्यमंत्री व उनके बीच का मसला है और मुख्यमंत्री चाहते तो उनसे बात कर मामले का निपटान कर लेते। विधायकों से पत्र मुख्यमंत्री ने ही लिखवाया है और उन्होंने ने ही केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष यह पत्र प्रेषित करने विधायकों को कहा है यह स्पस्ट रूप से समझ मे आ रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री की तरफ से यह एक तरह से अपने पक्ष में खड़े विधायकों की सूची भी होगी जो केंद्रीय नेतृत्व के पास पहुंचेगी। टीएस सिंहदेव को सच्चा कांग्रेसी नहीं मानने के मामले में भी यदि बात की जाए तो एक ही बात समझ मे एक ही बात आएगी जहां उन्होंने इतने विरोधों और अपने लगातार अपमान को सहते हुए एक बार भी पार्टी के खिलाफ कुछ नहीं कहा वहीं मुख्यमंत्री के पिता ने तो कई बार अम्बिकापुर आकर टीएस सिंहदेव को चुनाव में पराजित करने की बात तक कह डाली। टीएस सिंहदेव ने सरलता सहजता बनाये रखी कायम रखी और अब जब सर से पानी उपर जाने लगा तब उन्होंने स्तीफा दिया यह समझा जा सकता है। वैसे छत्तीसगढ़ में घट रहे नए राजनीतिक घटनाक्रम में विपक्ष की कोई भूमिका बिल्कुल भी सामने नहीं आ रही है लेकिन एकबात बिल्कुल तय माननी चाहिए वह यह कि कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में कहीं न कहीं बड़ी कमजोरी है जो वह पूरे मामले में दखल देकर मामले को निपटाने की बजाए टी सिंहदेव को ही निपटाने के प्रयास में लग गई है। टीएस सिंहदेव को यदि कांग्रेस पार्टी अपना नहीं मानती फिर यह भी तय है कि कांग्रेस में राजनीति सीमित लोगों के बीच ही सीमित हो गई है वहीं पद की दौड़ ज्यादा है वहीं नेतृत्व केवल इसलिए मजबूर है क्योंकि रहे सहे दो राज्यों तक ही कांग्रेस सिमट चुकी है और उसे डर है कि छत्तीसगढ़ से भी सफाया न हो जाये। टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने के पीछे एकबात और समझ मे आ रही है जो सच भी जान पड़ती है और वह यह कि जन घोषणा पत्र प्रभारी टीएस सिंहदेव थे और उन्होंने जमकर जन घोषणा पत्र में घोषणा चुनाव पूर्व की थी अब जबकि घोषणाओं को पूरा करने का सरकार पर दबाव है ऐसे में सरकार यह कहकर बच निकलने के फिराक में भी है कि घोषणाएं टीएस सिंहदेव की थीं और मुख्यमंत्री और सरकार का कोई लेना देना नहीं। केवल जन घोषणा पत्र की ही बात की जाए तो फिलहाल जन घोषणा पत्र की आधे से ज्यादा घोषणाएं अभी अपूर्ण हैं जिसका चुनावों पर असर पड़ेगा यह तय है।
रवि सिंह
कटकोना
कोरिया (छत्तीसगढ़)
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