गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार,घमंड,अभिमान,भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही हमारी सच्ची गुरु दक्षिणा होगी

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ब्रह्म ज्ञान का दीप जला कर करें अज्ञान का दूर अंधेरा
गुरु मेरी पूजा गुरु गोविंद गुरु मेरा पारब्रह्म गुरु भगवंत, गुरु मेरा ज्ञान ह्रदय ध्यान गुरु गोपाल पुरख भगवान, गुरु जैसा नहीं को देव, जिस मस्तक भाग सो लागा सेव इत्यादि माननीय गुरुवर की महिमा के अनेक आध्यात्मिक भजन हम अनेक बार शिद्दत से सुनते गाते आ रहे हैं क्योंकि भारत माता की मिट्टी से ही मानवीय जीव की रग रग में आध्यात्मिकता, माता पिता गुरुवर के प्रति सम्मान आस्था समर्पण का भाव समाया हुआ है। मेरा मानना है कि जितनी आध्यात्मिकता की श्रद्धा भारत में है शायद ही यह विश्व के किसी भी अन्य देश में होगी। यहां सदियों से माता-पिता और आचार्य को गुरु का दर्जा दिया जाता है भारतीय संस्कृति की पहचान है कि, मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः। ‘ (अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।) ‘प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान। पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव। अतिथि देवों भव। अर्थात् माता को, पिता को, आचार्य को और अतिथि को देवता के समान मानकर उनके साथ व्यवहार करो। गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।गुरु ब्रह्मा है, गुरू विष्णु है, गुरू महेश्वर अर्थात भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परम ब्रह्म सर्वशक्तिमान है, ऐसे गुरु को मेरा नमस्कार। (उक्त श्लोक में गुरू की महत्ता स्पष्ट करते हुए गुरु को परम ईश्वर के तुल्य बताकर वंदना की गई है।)
इसलिए आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर हम माता पिता गुरु की विस्तार से चर्चा इस आर्टिकल के माध्यम से करेंगे
साथियों बात अगर हम इस बार गुरु पूर्णिमा की करें तो, इस गुरु पूर्णिमा पर ग्रह नक्षत्रों की युति के हिसाब से 4 राजयोग का निर्माण हो रहा है. ये योग बेहद ख़ास है. जिनकी वजह से 13 जुलाई 2022 दिन बुधवार के दिन पड़ने वाली गुरु पूर्णिमा बेहद खास बन गई है. पंचांग के अनुसार, गुरु पूर्णिमा के दिन मंगल, बुध, गुरु और शनि की स्थिति राजयोग बना रही है. इन ग्रहों के कारण इस दिन रुचक, भद्र, हंस और शश नामक 4 राजयोग बन रहें हैं. इसके अलावा कई सालों बाद गुरु पूर्णिमा के दिन सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग का निर्माण हो रहा है. ऐसे में हमें यह जान लेना जरुरी हो जाता है कि गुरु पूर्णिमा के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए।
साथियों बात अगर हम गुरु शिष्य परंपरा की करें तो,गुरु-शिष्य परम्परा आध्यात्मिक ज्ञान को नई पीढç¸यों तक पहुंचाने का सोपान है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य परम्परा के अन्तर्गत गुरु अपने शिष्य को निस्वार्थ भाव से शिक्षा देता है। जिसके बदले में शिष्य अपने गुरु को शिक्षा समाप्त होने पर गुरुदक्षिणा देता है। बाद वही शिष्य अपने गुरु के बताये हुए मार्गदर्शन पर चलकर समाज सेवा करता है। या फिर गुरु बनकर दूसरों को शिक्षा देता है। जिससे यह कर्म चलता रहता हैगुरु-शिष्य की यह परम्परा ज्ञान के किसी भी क्षेत्र में हो सकती है।जैसेअध्यात्म संगीत, कला, वेदाध्ययन, वास्तु विज्ञान चिकित्सा आदि।
साथियों प्राचीन समय में गुरु आश्रमों में अपने शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। उस समय उनके बीच मधुर सम्बन्ध हुआ करते थे। प्राचीन समय में गुरु शिष्य के बीच अगाध प्रेम हुआ करता था। शिष्य अपने गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव रखता था। गुरु निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को शिक्षा दिया करते थे। गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था। अतः गुरु कभी भी अपने शिष्य का अहित नहीं चाहता है। वह हमेशा अपने शिष्य का भला सोचता है। शिष्य का यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।
साथियों बात अगर हम वर्तमान परिपेक्ष्य की करें तो जितना माता-पिता और आचार्य को देव समझने वाली इस भव्य भारतीय संस्कृति का गुणगान किया जाए उतना ही कम है परंतु वर्त्तमान समय में यह स्थिति बिल्कुल उलट है। आज आश्रमों की जगह स्कूल कॉलेज ने ले ली है। और गुरु शिष्य का सम्बन्ध वैसा नहीं रहा जैसा प्राचीन समय में रहता था। आज गुरु शिष्य के सम्बन्ध सही नहीं है। और गुरु शिष्य का सम्बन्ध स्वार्थ से पूर्ण हो गया है। गुरु शिष्य परम्परा समाप्त सी हो गयी है।इस कराल काल में आज भौतिकवाद के प्रभाव में व्यक्तिवादी भोगवादी तथा स्वार्थपरायणता का तांडव नृत्य हो रहा है वहां मानव जीवन में इन दिव्य और उदार विचारों की विलुप्तता की ओर कदम बढ़ाने को रेखांकित करना जरूरी है। कदाचित कुछ संस्कारी परिवार उपरोक्त संस्कृति के श्लोकों और विचारों का सिंचन अपनी पीढ़ी में करते भी होंगे परंतु पाश्चात्य संस्कृति के बदलते प्रभाव को रोकने के लिए बड़े बुजुर्गों बुद्धिजीवियों को आगे आकर जागरूक करने और एक्शन उठाने का समय आ गया है।
साथियों बात अगर हम गुरु के महत्व की करें तो, गुरु कोई साधारण इंसान नहीं होता है। गुरु ही एक जरिया है जिसके बताये हुए पद चिन्हो पर चलने से कठिन से कठिन मुकाम को हासिल किया जा सकता है। इसीलिए हमेशा गुरु का पूर्ण सम्मान करे। गुरु की आज्ञा का पालन करना चाहिए। एक गुरु ही हमें समाज में अपनी पहचान बनाने की शिक्षा देता है। प्राचीन समय से लेकर वर्तमान तक गुरु का स्थान सर्वोपरि रहा है। जीवन में अगर गुरु का आशीर्वाद हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाईयों से मुकाबला किया जा सकता है।
साथियों जिस तरह एक बच्चे की माँ उसकी प्रथम गुरु होती है जिसे वो खाना पीना, बोलना, चलना, आदि तौर तरीके सिखाती है। ठीक उसी तरह गुरु अपने शिष्य को जीवन जीने का तरीका बताता है। उसे सफलता के हर वो पहलु बताता है जो उसके लिए उपयुक्त हो। इस संसार सागर में सफलता पाने के लिए हर किसी को गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु के बिना सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। एक गुरु ही होता है जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। तभी तो गुरु शब्द में “गु” का अर्थ अंधकार (अज्ञान) और “रु” काअर्थ प्रकाश (ज्ञान) होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। इसीलिए गुरु को ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’। इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं है जो बिना गुरु के सफल हुआ हो। यदि डॉक्टर, वकील, इंजीनियर समाज सेवक,ट्रेनर,सैनिक, आदि बनाना चाहते है तो इसके लिए आपको उसी क्षेत्र के एक गुरु की आवश्यकता होती है। यही गुरु आपको सफलता के द्वार तक लेकर जाता है।
साथियों इसीलिए हमेशा गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए। गुरु के बिना जीवन अपूर्ण है। आपको कोचिंग,स्कूल, कॉलेज, खेल,आदि जगह पर गुरु की आवश्यकता पड़ती है। अतः गुरु के महत्व को समझे। गुरु के सेवा करे। इसीलिए हमें चाहिए के गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार घमंड अभिमान भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही सच्ची गुरु दक्षिणा होगी। ब्रह्म ज्ञान का दीप जला कर करे अज्ञान का दूर अंधेरा ऐसा सतगुरु है मेरा।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।गुरु के चरणों में अपने समस्त अहंकार घमंड अभिमान भ्रष्टाचारी मानसिकता अर्पित कर दें यही हमारी सच्ची गुरु दक्षिणा होगी। ब्रहम्म ज्ञान का दीप जला कर करे अज्ञानता का दूर अंधेरा ऐसा सतगुरु है मेरा।
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी
गोंदिया महाराष्ट्र


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