पहली बात तो यह तय जान लीजिए कि जैसा हमारे पड़ौसी देश श्रीलंका में हो रहा है,वैसा कभी भी भारत में नहीं होगा क्योंकि ये भारत देश है और इसकी अपनी ऐसी कुछ विशेषताएं हैं जो इसे पूरे विश्व के समस्त देशों से अलग करती हैं।हमारी अपनी सर्वोत्तम विदेश नीति है।पर यह बात भी उतनी ही सच और सही है कि हमें असफल देशों की गलतियों से भी सीखना चाहिए और सफल देशों की सही नीतियों से भी सीखना चाहिए।साथ ही यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि यदि पड़ौसी के घर आग लग जाए तो क्या हम यह भी न सोचें कि पड़ौसी के घर में आग क्यों लगी?और उन कारणों को जानकर कुछ इंतजामात कर लिए जाएं ताकि भविष्य में हमारा घर सुरक्षित रहे।साथ ही सबसे पहले मानवता यह कहती है कि उस पड़ौसी की जो भी हमसे बन पड़े,वह सहायता करनी चाहिए।निश्चित रूप से भारत सरकार इस समय जो कार्य कर रही है,वह सहरानीय है क्योंकि यही भारत की वह विशेषता है जिसकी चर्चा हमने ऊपर की है।खैर,मानवीय सहायता का काम चलता रहना चाहिए क्योंकि इस समय यह बेहद जरूरी है,मानवीय आधार पर भी और विदेश नीति के तहत भी क्योंकि कहीं इस स्तिथि का लाभ उठाकर चीन भी श्रीलंका को हड़प सकता है।पर साथ ही यह भी विचार करने की जरूरत है कि आखिर ऐसे कौन-से कारण हैं जिनसे श्रीलंका में इस तरह के हालाता पैदा हुए।विदेशी मामलों के जानकार बताते हैं कि उन हालातों में एक है भाषाई मुद्दा,जिसका आधार बनाकर वहाँ के कम संख्या वाले लोगों के साथ अन्याय किया गया और नारा यहाँ तक लगाया गया कि यदि श्रीलंका में रहना है तो तमिल भाषा को छोड़ना होगा और सिहंली भाषा को अपनाना होगा।इस विषय को लेकर एक तरह से श्रीलंका बंट-सा गया था परिणामस्वरूप दिक्कतें पैदा होती रही।पर वहाँ की सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दिया और अप्रत्यक्ष रूप से इस अन्याय का समर्थन किया।वैसे भी इतिहास बताता है कि जब-जब भी ज्यादा संख्या वाले लोगों ने कम संख्या वाले लोगों पर मनमाने अत्याचार किए हैं तब-तब विकास नहीं विनाश ही हुआ है।खैर,दूसरी मुख्य बात यह जिसके कारण श्रीलंका को आज की भयावह स्तिथि का सामना करना पड़ रहा है,वह है वहाँ की सरकार द्वारा मनमाने निर्णयों का लिया जाना,जिसे ठीक बताकर जनता को,विपक्ष को गुमराह किया गया और न विपक्ष की सुनी गई और न ही जनता की,आखिर गलत निर्णय कब तक ठहरते?और आज श्रीलंका को पूरा विश्व देख रहा है,वह भी जब कि श्रीलंका एक ऐसा देश होता था जिसकी मजबूत आर्थिक स्तिथि थी,हमारे यहाँ तो उसे सोने की लंका भी कहा जाता रहा है लेकिन मनमाने फैसलों में कारण दिक्कतें बढ़ती गई।खैर,जिस स्तिथि में श्रीलंका आज पहुँचा है,उसका मुख्य कारण यह भी है कि वहाँ की सरकार ने सत्ता में आने के लिए जनता को काफी बड़े-बड़े सपने दिखाए पर उनमें से एक भी पूरा नहीं किया परिणाम स्वरूप जनता का गुस्सा बढ़ता गया।खैर,श्रीलंका की मुद्रा डॉलर के मुकाबले गिरती रही,विदेशी कर्ज बढ़ता रहा,निरंतर बेरोजगारी बढ़ती गई और महंगाई आकाश को चूमती रही और सरकार तमिल और सिंहली भाषा के फेर में उलझी हुई अपने ही निर्णयों को सही ठहराती रही और इधर जनता का गुस्सा बढ़ता ही रहा।साथ ही वहाँ की सरकार मजे लेती रही,जिसकी तस्वीर सामने आ रही हैं।वहाँ की मीडिया का रोल कुछ ठीक नहीं रहा वरना तो हालात कुछ बदले जा सकते थे क्योंकि जब मीडिया ही सरकार के गुण गाने लग जाए तब समझ लीजिए कि कहीं कुव्ह गड़बड़ जरूर है।अंततः जनता के सब्र का बांध टूट ही गया,टूटना ही था और याद रखिए जब भी जनता के सब्र का बांध टूटता है तब वही कविता साकार होती चली जाती है कि-सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।और जब जनता आती है तो हिटलर और मुसोलनी जैसों को भी भागना पड़ता है जैसे कि गोटाबाया भाग खड़े हुए हैं और पीएम बदलने के बाद भी कुछ हल नहीं हुआ।आखिरकार राष्ट्रपति,उस राष्ट्रपति के हाउस पर जनता ने कब्जा कर लिया,जिसने सत्ता के नशे में मनमाने तरीके से फैसले लेकर खुद को इतना ताकतवर बना लिया था कि वो जनता को ही भूल गया और सच में खुदा ही बन बैठा था।आज श्रीलंका में उसी आलीशान हाउस पर जनता का कब्जा है क्योंकि याद रखिए जब भी कोई राजा खुद को स्वम्भू घोषित कर देगा तब कभी-ना-कभी जनता उसे धूल जरूर चटाएगी क्योंकि यही नियम भी है।पीएम के घर को ही आग लगा दी गई क्योंकि जब कानून जनता के लिए ना हो और जनता बार-बार अनुरोध करके तंग आ जाए फिर ऐसा ही होता है।इसलिए श्रीलंका की घटना को आकस्मिक न माना जाए बल्कि इसके लिए सीधे तौर वहाँ की सरकार जिम्मेदार है।इसलिए तमाम विश्व के लिए श्रीलंका से सबक लेने की जरूरत है क्योंकि सबक नहीं लिया गया तो श्रीलंका वाला हाल होते देर नहीं लगेगी।बहुत सारे देश इस मुहाने पर खड़े हैं जिसकी बानगी ब्रिटेन के पीएम जॉनसन का इस्तीफा और अमेरिका के सबसे झूठे पीएम डोनाल्ड का हश्र हम सबको पता है और श्रीलंका को हम देख ही रहे हैं।इसलिए विश्व के तमाम देशों को जनता के लिए काम करने की सख्त जरूरत है,महंगाई पर रोक लगाने की,रोजगार के अवसर बढ़ाने की,वैमनस्य और नफरत घटाने की,मनमाने निर्णय ना लेने की और चुनाव के दौर में बढ़ा-चढ़ाकर सपने न दिखाने की जरूरत है,नहीं तो किसी को भी श्रीलंका बनते देर नहीं लगेगी।
कृष्ण कुमार निर्माण
करनाल,हरियाणा।
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