हेल्थ डेस्क, नई दिल्ली 12 जुलाई 2022। शरीर को मजबूती देने वाला हड्डियों का मजबूत ढांचा कई बार कमजोर पड़ जाता है। यह कमजोरी किसी समस्या की वजह से भी हो सकती है और शरीर में किसी कमी की वजह से भी। यदि इस पर ध्यान न दिया जाए तो हड्डियां क्षतिग्रस्त होती जाती हैं और टूट भी सकती हैं। कई बार यह स्थाई विकलांगता का मामला भी बन जाता है। इसलिए जरूरी है कि हड्डियों की सेहत को लेकर सजग रहा जाए। हड्डियों से जुड़ी दिक्कतों को अक्सर लोग मामूली दर्द या तकलीफ मानकर चलते हैं, जब तक कि तकलीफ बहुत बढ़ न जाए और डॉक्टर जांचों के लिए न बोल दें। इसलिए दर्द होने पर भी लोग लम्बे समय तक दर्द निवारक दवाएं खाकर या बाम आदि लगाकर काम चलाते रहते हैं। हड्डियों के लिए यह तरीका गंभीर मुश्किल का कारण भी बन सकता है। हड्डियों को मुश्किल में डालने वाली कई तरह की स्थितियां हो सकती हैं। जानिए उनको करीब से।
बचपन से रखें ख्याल
सेहत के लिए जागरूकता का शुरुआत से साथ रहना लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य का मूलमंत्र है। ज्यादातर लोग जीवन के शुरूआती समय को गंभीरता से नहीं लेते क्योंकि उस समय शरीर विकास कर रहा होता है, मेटाबॉलिज्म अच्छा होता है और आमतौर पर कोई समस्या सामने नहीं आती। इसलिए लोग खान-पान से लेकर जीवनशैली तक हर चीज को लेकर प्रयोग कर डालते हैं। जबकि यही वह समय होता है जब आप भविष्य के लिहाज से मजबूत और स्वस्थ शरीर की नींव रख सकते हैं। इसलिए बच्चों को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, विटामिन्स और खनिज से भरपूर भोजन, व्यायाम, खेल-कूद और समय पर सोने-जागने की आदत डालें। ये आदतें हड्डियों और जोड़ों को भी लम्बे समय तक सेहतमंद और मजबूत बनाये रखने में मदद करेंगी। सही साइज के जूते पहनने से, सही पॉश्चर रखने तक, बच्चों को हर अच्छी चीज के लिए प्रेरित करें।
ये हो सकती हैं समस्याएं
हड्डियों से जुडी जो समस्याएं लोगों को गिरफ्त में ले सकती हैं उनमें शामिल हैं-
हड्डियों का भुरभुरा या अधिक कमजोर हो जाना अगर ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या की ओर ले जा सकता है तो हड्डियों का अधिक सघन (डेन्स) होना भी ऑस्टियोपेट्रोसिस नामक समस्या का कारण बन सकता है। हड्डियां अधिक भुरभुरी होने पर आसानी से टूट सकती हैं तो अधिक सघन होने पर भी यही खतरा होता है। हड्डियों के मोटे या सघन होने का मतलब उनका मजबूत होना नहीं होता। ऑस्टियोपोरोसिस की आशंका महिलाओं और बुजुर्गों में बहुत देखने में आती है। महिलाओं में खासकर मेनोपॉज के दौरान या उसके बाद। इसके कारण कूल्हे, कमर या कलाई की हड्डी के टूटने का खतरा अधिक होता है। इसलिए डॉक्टर आपकी बोन डेंसिटी यानी हड्डियों का घनत्व जांचते हैं। समय रहते यदि इसके लिए बचाव न किये जाएँ तो हल्के से धक्के से भी हड्डी टूट सकती है।
दूसरी तरफ ऑस्टियोपेट्रोसिस की स्थिति हड्डियों के भीतर मौजूद मैरो को प्रभावित कर सकती है, जिसकी वजह से शरीर के लिए संक्रमण से लड़ने, ऑक्सीजन को सही तरीके से सब जगह पहुंचाने और रक्तस्राव रोकने में मुश्किल पैदा हो सकती है। इसके अलावा ऑस्टियोनैक्रोसिस की स्थिति में हड्डियों तक पर्याप्त खून नहीं पहुंचने पर तकलीफ हो सकती है। यह समस्या ज्यादातर जाँघों, बाँहों, घुटनों और कंधे में हो सकती है। इसकी वजह से भी दर्द और चलने-फिरने में परेशानी हो सकती है।
डायबिटीज की परेशानी केवल खून में शकर के स्तर के बढ़ने-घटने से ही नहीं जुडी है। इसकी वजह से शरीर के कई अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। हड्डियां भी कमजोर हो सकती हैं। हार्मोनल असंतुलन के अलावा शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र के कमजोर पड़ने से भी हड्डियों की समस्या हो सकती है। कई बार ल्यूपस जैसी स्थितियां भी बनती हैं जब शरीर का इम्यून सिस्टम खुद ही शरीर पर आक्रमण कर देता है और इस स्थिति में जोड़ों का दर्द होने के साथ ही हड्डियों के कमजोर होकर टूटने की आशंका भी बढ़ जाती है।
कुछ लोगों में ग्लूटन को न पचा पाने की स्थिति भी हड्डियों पर बुरा प्रभाव डाल सकती है।ग्लूटन एक प्रकार का प्रोटीन है जो गेहूं व अन्य अनाजों में पाया जाता है। जब शरीर इसको पचा नहीं पाता तो इम्यून सिस्टम छोटी आंत पर हमला करके उसे क्षति पहुंचाता है और इसकी वजह से शरीर पर्याप्त पोषण नहीं ले पाता। इसका असर हड्डियों की सेहत पर भी पड़ता है क्योंकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम आदि नहीं मिल पाता।
आर्थराइटिस के कई प्रकार भी हड्डियों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। इनमें रह्युमेटॉइड आर्थराइटिस जैसी ऑटोइम्यून समस्या तो है ही जिसमें इम्यून सिस्टम हड्डियों और जोड़ों पर हमला करके उन्हें नुकसान पहुंचाता है। इसके साथ ही ऑस्टियोऑर्थराइटिस भी इसमें शामिल है जिसमें हड्डियों के किनारों पर चढ़ी ऊतकों (टिशूज़) की परत क्षतिग्रस्त होने लगती है और सूजन और दर्द की समस्या हो सकती है।
हार्मोनल असंतुलन जैसे थाइरॉइड का अधिक मात्रा में बनने लगना भी हड्डियों को तकलीफ दे सकता है । यह हड्डियों को नुकसान पहुंचाने के साथ ही दिनभर थकान, दर्द, कंपकंपी, अनिद्रा जैसे लक्षण भी प्रकट कर सकता है, जिसका परिणाम हड्डियों पर भी पड़ता है। यदि समय पर थाइरॉइड की इस समस्या को नियंत्रित न किया जाए तो ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका कई गुना बढ़ सकती है।
आपके जीवन जीने का तरीका भी पूरे शरीर की सेहत पर प्रभाव डालता है। पर्याप्त नींद न हो पाना, व्यायाम की कमी, पोषक भोजन की कमी भी हड्डियों को कमजोर और क्षतिग्रस्त बना सकती है। सिगरेट या तम्बाकू का सेवन भी हड्डियों की सेहत को खराब करने में भूमिका निभाता है। तम्बाकू की वजह से पूरे शरीर का रक्त संचरण (ब्लड सर्कुलेशन) गड़बड़ा जाता है जिसका असर हड्डियों तक भी पहुंचता है। इससे हड्डियां कमजोर तो होती ही हैं, जोड़ों और कमर दर्द की आशंका भी कई गुना बढ़ सकती है। तम्बाकू की वजह से खासतौर पर रीढ़ की हड्डी तक ब्लड सर्कुलेशन बाधित होने से इसे अधिक नुकसान पहुँच सकता है।
मोटापा कम करने वाली सर्जरी को लेकर भले ही आप बहुत उत्साहित हों लेकिन आपकी हड्डियां इसे लेकर बहुत खुश नहीं होंगी। मुख्यतः इस तरह की सर्जरी में पेट को छोटा किया जाता है ताकि आप कम खाएं लेकिन सर्जरी के बाद कई लोगों में हड्डियों के कमजोर पड़ने और टूटने के मामले दर्ज किये गए हैं। कुछ विशेषज्ञ यह मानते हैं कि कम मात्रा में पोषक तत्वों जैसे कि कैल्शियम और विटामिन डी का मिलना इसके पीछे का कारण हो सकता है।
सामान्य संक्रमण हो या कोई विशेष प्रकार का संक्रमण, आमतौर पर हाथ-पैरों का दुखना या बुखार के साथ शरीर की टूटन इसके लक्षणों में शामिल होते हैं। ऐसे में यदि आपके जोड़ों और हड्डियों में पहले से तकलीफ है तो संक्रमण हड्डियों तक भी पहुंच सकता है। बैक्टीरिया, वायरस या फंगस कोई भी इस संक्रमण का कारण बन सकता है।

इन बातों का रखें ख्याल
-हड्डियों में दर्द यदि सामान्य तरीकों से ठीक न हो रहा हो तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।
-बिना डॉक्टर की सलाह मसाज, ठंडा-गरम सेक ज्यादा न करें। कई बार गलत तरीके से की गई मसाज हड्डियों के लिए और खतरा पैदा कर देती हैं। वहीं ठंडे-गर्म सेक के लिए भी वैज्ञानिक आधार हैं। हर दर्द या चोट पर यह अप्लाई नहीं होता।
-बेवजह पेनकिलर्स खाने से बचें। दर्द की स्थिति में अधिकांश लोग यह गलती करते हैं और अपनी मर्जी से कोई भी पेनकिलर खा लेते हैं। जरूरत से ज्यादा मात्रा में और लम्बे समय तक पेनकिलर्स खाने से शरीर को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए हड्डियों में, जोड़ों में दर्द हो तो पहले डॉक्टर से पूछें।
-अधिकांश समस्याओं को शुरूआती स्तर पर जीवनशैली में परिवर्तन, पर्याप्त पोषण और नियमित व्यायाम से नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए समस्या को टालें नहीं बल्कि समय पर और पूरा इलाज लें। याद रखें कि दर्द पर नियंत्रण के साथ आपको समस्या को भी ठीक करना है और इसमें वक्त लगता है इसलिए धैर्य रखें ।
-यदि डॉक्टर आपको किसी प्रकार की सर्जरी या इंजेक्शन के लिए कहते हैं तो पहले उसकी पूरी जानकारी जुटाएं। यह पता लगायें कि उसका आपकी वर्तमान शारीरिक स्थिति पर क्या असर रहेगा। सेकेण्ड ओपिनियन लेने में कोई बुराई नहीं।
नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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