Work From Home: नीदरलैंड में कानूनी अधिकार बना वर्क फ्रॉम होम, अब स्वीडन पर सबकी नजर 

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वर्ल्ड डेस्क, नीदरलैंड 12 जुलाई 2022 ढाई साल पहले वैश्विक स्तर पर शुरू हुए कोविड काल में वर्क फ़्रॉम होम का अभ्यास कई कंपनियों को यह सोचने पर मजबूर कर चुका है कि अगर कर्मचारी दफ़्तर नहीं आकर भी पूरी ईमानदारी के साथ अच्छा काम कर रहे हैं और उनका प्रदर्शन भी बेहतर हो रहा है।

नीदरलैंड में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोग इस बात से काफी खुश हैं कि अब यहां वर्क फ्रॉम होम या फिर रिमोट वर्क के कॉन्सेप्ट को कानूनी अधिकार के दायरे में शामिल कर लिया गया है। इसे डच संसद से मंजूरी मिल चुकी है, जिसे जल्द ही डच सिनेट से मंजूरी मिलने की उम्मीद है। यानी यहां की कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए दफ़्तर आकर काम करने की बाध्यता नहीं होगी, वे अपने घर या फिर कहीं और बैठकर अपने दफ्तर का काम निपटा सकेंगे। अगर ऑफिस के किसी काम को बिना आए भी पूरा किया जा सकता है तो ऐसी स्थिति में कोई भी नियोक्ता किसी कर्मचारी के घर से काम करने के अनुरोध को अस्वीकार नहीं कर सकता। हालांकि, जिन जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों को दफ्तर आने की बाध्यता होगी, उन्हें इस दायरे में नहीं रखा जाएगा। 

नीदरलैंड में 2.40 लाख प्रवासी भारतीय

नीदरलैंड में एक आईटी कंपनी में कार्यरत रोशनी मुरली कहती हैं कि यूके के बाद नीदरलैंड में सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय रहते हैं। तकरीबन 2.40 लाख प्रवासी भारतीय/ भारतीय मूल के लोग नीदरलैंड में रहते हैं। इनमें ज़्यादातर सूचना व प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कार्यरत हैं। यह खबर हम सभी के लिए सुकूनदायक है। हालांकि, कोरोना महामारी से बचाव को लेकर यहां आज भी एहतियातन वर्क फ़्रॉम होम की व्यवस्था अधिकांश कंपनियों में चल ही रही है। लेकिन क़ानूनी रूप में आने के बाद अब लोग ज़्यादा खुश हैं। उम्मीद है कि आने वाले दिनों कुछ दूसरे यूरोपीय देश भी इस तरह का ऐलान करें। रोशनी कहती हैं कि यह क़ानूनी व्यवस्था अगर भारत में लागू हो जाए तो यह कोरोना और प्रदूषण नियंत्रण दोनों में कारगर साबित होगा। 
कंपनियों के लिए फायदे का सौदा

दरअसल, ढाई साल पहले वैश्विक स्तर पर शुरू हुए कोविड काल में वर्क फ़्रॉम होम का अभ्यास कई कंपनियों को यह सोचने पर मजबूर कर चुका है कि अगर कर्मचारी दफ़्तर नहीं आकर भी पूरी ईमानदारी के साथ अच्छा काम कर रहे हैं और उनका प्रदर्शन भी बेहतर हो रहा है। ऐसे में क्यों उनके दफ़्तर आने को अनिवार्य बनाया जाए। यह कंपनियों के लिए घाटे का सौदा नहीं है। वहीं कर्मचारी भी इस तरह ज़्यादा संतुष्ट हैं। 
धीरे-धीरे सीमित हो रहा वर्क फ्रॉम होम

हालांकि, धीरे धीरे कई कंपनियों ने कर्मचारियों के वर्क फ़्रॉम होम की सुविधा को सीमित या फिर ख़त्म करना शुरू कर दिया है। गूगल, टेस्ला जैसी नामचीन कंपनियों ने कर्मचारियों को वर्क फ़्रॉम होम की जगह दफ़्तर आने के लिये सूचना जारी कर दी है। यूरोप में भी अधिकांश कंपनियों में हाईब्रिड मॉडल शुरू किया जा चुका है। यानी हफ़्ते के कुछ दिन घर और कुछ दफ़्तर से काम करने की आज़ादी है। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो जिन्होंने पिछले दो सालों में कंपनी के बेहतर रिज़ल्ट को देखते हुए अपने कर्मचारियों को अपनी सुविधा के मुताबिक़ दफ़्तर आने या घर से काम करने का विकल्प चुनने का अधिकार दिया है। 

अब स्वीडन पर सबकी निगाहें 

नीदरलैंड के इस पहल की प्रशंसा पूरे यूरोप में हो रही है। और अब सबकी निगाहें स्वीडन पर है। स्वीडन एक उदारवादी सामाजिक व्यवस्था वाला लोकतांत्रिक देश है। यह वर्क लाईफ बैलेंस के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है। इसलिए उम्मीद है कि यहां भी वर्क फ़्रॉम होम को क़ानूनी मान्यता देने की पहल हो सकती है। 


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