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बैकुण्ठपुर@ कानून व्यवस्था बिगड़े,शिक्षा की व्यवस्था बिगड़े,रोड,पानी व बिजली व्यवस्था बिगड़े ना बिगड़े तो गोबर खरीदी व्यवस्थाःअनिल जयसवाल

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  • क्या मुख्यमंत्री को दिखाने के लिए ही प्रशासन ने भारी संख्या में मवेशियों को गौठानों में भेजा था?
  • मुख्यमंत्री के आगमन से पहले गौठानों में आए मवेशी,मुख्यमंत्री के जाते ही गौठानों से मवेशी हुए गायब।
  • मुख्यमंत्री के बैकुन्ठपुर विधानसभा दौरे के दौरान बैकुंठपुर से पटना के बीच पड़ने वाले को गौठानों में मवेशी भरे हुए थे,अब फिर से गौठानों में पसरा सन्नाटा।


-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 07 जुलाई 2022(घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ की वर्तमान सरकार की पहली योजना के तहत को गौठानों को प्राथमिकता दी गई और इस गौठानों को लेकर गौ सेवा बताया गया था पर साडे 3 साल से ऊपर का कार्यकाल हो चुका है पर गौठानों में मवेशियों का दिखना संभव नहीं होता है मुख्यमंत्री के आगमन पर पहली बार गौठानों में मवेशियों का दिखना संभव हुआ और उनके जाते ही मवेशियों का फिर से गौठानों से बाहर सड़कों पर ही दिखना रोज की तरह शुरू हो गया, अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन गौठानों में मवेशियों को इसलिए भेजा था ताकि मुख्यमंत्री को पटना से बैकुंठपुर जाने के दौरान रास्ते में पड़ने वाले गौठानों में मवेशी देख सके, कहीं मवेशी नहीं दिखे तो मुख्यमंत्री पूछ ना दें कि आखिर गौठानों में सन्नाटा क्यों है?
ज्ञात हो की 15 साल के बाद सत्ता में आने के लिए कांग्रेस ने बड़ी-बड़ी घोषणाओं का पत्र जारी किया था और जनता से अनेकों वादे किए थे। उसी कड़ी में शासन की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से नरवा गरवा घुरवा बाड़ी का हाल पूरे प्रदेश में दुर्दशा का शिकार हो रहा है। हालांकि ये योजनाएं सीधे-सीधे आम जनता से जुड़ी थी और अगर इनका सही क्रियान्वयन होता तो जनता को पूरा लाभ मिलता। परंतु सरकार के जनता को सुविधा देने वाली इन सभी योजनाओं का जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन बेहद लचर है। अभी हाल ही में मुख्यमंत्री जी का भेंट मुलाकात का कार्यक्रम कोरिया जिले के पटना और बचरापौड़ी में आयोजित था। जिन मार्गो से होकर मुख्यमंत्री जी को गुजरना था। उनसे लगे हुए गौठानों को प्रशासन ने दिखावे के लिए बेहद साज सज्जा के साथ चंद घंटों के लिए मूर्त रूप दिया था। इसके लिए आनन-फानन में गौठानों में रखने के लिए पशुओं को लाया गया, उनकी चारे पानी की व्यवस्था की गई। दीवारों पर रंगाई पुताई की गई जो सिर्फ दिखावे के लिए था। पूरा प्रशासन एन केन प्रकारेण किसी भी तरह मुख्यमंत्री जी को धरातल पर वैसी स्थिति दिखाने में जुटे रहे जैसा इस योजना का लक्ष्य था। परंतु जैसे ही मुख्यमंत्री जी का दौरा समाप्त हुआ यह सभी स्थल अपने पहले जैसे बदतर स्थिति में आ गए। आज ना तो यहां एक भी पशु है, ना पशुओं के लिए चारा। यहां तक की दिन हो या रात इन गौठानों के आसपास ही असंख्य पशुओं की भीड़ सड़कों पर देखी जा सकती है। इन आवारा पशुओं को व्यवस्थित करने के लिए ही शासन ने ऐसी योजनाएं पूरे प्रदेश भर में लागू की जिसके लिए सरकारी कोष से अथाथाह राशि भी खर्च की गई। परंतु व्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ। कोरिया जिले में यह कोई एक गौठान की बात नहीं है बल्कि लगभग सभी ग्राम पंचायतों में बने गौठानों का यही हाल है। कहीं शेड नहीं है, कहीं चारे पानी की व्यवस्था नहीं है और व्यवस्था हो भी किसके लिए जब सारे पशु सड़कों पर हैं।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ही बनी किरकिरी का कारण
15 साल के वनवास के बाद जब प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता का पुनर्योदय हुआ, तो नरवा गरुवा घुरवा बाड़ी को लागू करने के लिए सबसे पहले सरकार ने प्राथमिकता दी और इसके लिए दिल खोलकर राजकोष से पैसे भी आवंटित किए। यदि प्रशासन की कर्मठता से यह सारे प्रोजेक्ट धरातल पर हूबहू लागू होते तो जनता को सीधे-सीधे इनका लाभ मिलता। परंतु कमीशन खोरी, भ्रष्टाचार और उदासीनता ने एक तरह से सभी योजनाओं को निगल लिया। अब जब भी इन योजनाओं की चर्चा होती है तो जनता सीधे इसे पैसों का बर्बादी कहती है। पूरे प्रदेश के दौरे कार्यक्रम में प्रशासन द्वारा मुख्यमंत्री जी को वही दिखाया गया जो वे देखना चाहते थे परंतु जमीन पर हकीकत इससे उलट है।

अनिल जयसवाल भाजपा नेता

क़ानून व्यवस्था बिगड़ें, शिक्षा की व्यवस्था बिगड़ें, रोड, पानी व बिजली व्यवस्था बिगड़ें, ना बिगड़े तो गोबर ख़रीदी व्यवस्था
अनिल जयसवाल भाजपा नेता ने कहा छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना की जायज़ अथवा नाजायज़ औलाद कहना गलत नहीं होगा। क्यों की छत्तीसगढ़ में लोग अब आईएएस, आईपीएस, आईएफएस अफ़सरों को इसी सेवा के नाम से जानने लग गए हैं। क्योंकि सोते-जागते, खाते-पीते इनको सिर्फ़ गोबर का ही ख़्याल आता है। कलेक्टर, सीईओ ज़िला पंचायत और डीएफओ का ज़िले में अब सिर्फ़ एक ही काम 1 सूत्री कार्यक्रम रह गया है गोबर ख़रीदना। क़ानून व्यवस्था बिगड़ती है तो बिगड़ने दो। बलात्कार होता है तो होने दो। मार-काट होती है तो होने दो पर गोबर की चोरी मत होंने दो, स्कूली शिक्षा की धज्जियाँ उड़ती हैं तो उड़ने दो। रोड, पानी और बिजली के लिए आंदोलन होता है, तो होने दो। जंगल बर्बाद होते हैं, तो होने दो। बस, गोबर ख़रीदी बंद नहीं होनी चाहिए। अगर ख़रीदी नहीं भी हो रही है तो प्रचार प्रसार होते रहना चाहिए ताकि मुख्यमंत्री तक बातें पहुँचती रहें। क्योंकि ये अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी नहीं हैं, अब भारतीय गोबर सेवा के अधिकारी बन गए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना ने इनके सारे रूटीन काम को दूसरी, तीसरी प्राथमिकता में डाल दिया है। पहली प्राथमिकता सिर्फ गोबर और गोठान। देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी की परीक्षा पास करके ये अधिकारी मसूरी और देहरादून में ट्रेनिंग ले कर छत्तीसगढ़ क़ैडर में गोबर ख़रीदने और बेचने का काम कर रहे हैं। आख़िर क्या है इस गोबर में? छत्तीसगढ़ में अब तक लगभग 8 हज़ार गोठानों का निर्माण हो चुका है, जिनमें लगभग 1 हज़ार अवैध तरीक़े से वनभूमि पर बनाये गये हैं। हर गोठान में औसतन 50 लाख से 1 करोड़ तक का इन्वेस्टमेंट कर दिया गया है, जैसे फ़ेन्सिंग, कोटना, शेड, झोपड़ी, चरवाहा के लिए कक्ष, रोड, सीपीटी, इत्यादि। इसका मतलब सरकार ने लगभग 6 हज़ार करोड़ रुपये गौठान बनाने में ही लगा दिए हैं। जब इतना पैसा गौठान में ही लगा चुके हैं, तो फिर तो सारी गायों को रोड या गाँव में दिखना ही नहीं चाहिए। असल हालत ये है कि सारे गायें रोड पर ही दिखती हैं। आप किसी भी गाँव या शहर का दौरा कर लीजिए, आपको गाय परिवार रोड में या रोड किनारे ही विचरते मिलेंगे। एकाध को छोड़कर सारे गोठान सूने ही दिखेंगे, जहाँ बड़ी बड़ी झाड़ियाँ उग आयी हैं। फ़ेन्सिंग टूटी फूटी मिलेंगी, अब तो ये असामाजिक तत्वों के अड्डे बन गये हैं। मेन रोड और नेशनल हाइवे के किनारे गोठानों की दुर्दशा हो चुकी है, जहाँ सबकी नज़र है, फिर तो अंदरूनी गाँवों की बात ही छोड़ दीजिए। समय समय पर अखबारों में सूने गोठानों पर न्यूज़ छपते ही रहते हैं।


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