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बैकुण्ठपुर@एक बार फिर शिक्षक की शिकायत आयुक्त से

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  • पर क्या होगी कार्यवाही?,कई शिकायतें पर कार्यवाही सिफर,ऐसे में कैसे गढ़ेगा बच्चों का भविष्य।
  • जनपद उपाध्यक्ष पति के गांव की सरपंच ने आयुक्तको पत्र लिख शिकायत की है कि शिक्षक द्वारा राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लिया जाता है ।


-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 23 जून 2022(घटती-घटना)। यदि आप सत्ता पक्ष के किसी जनप्रतिनिधि के खास हो जाएं तो शासकीय सेवा की आचार संहिता का भी मखौल उड़ाने पर कोई फर्क नहीं पड़ता। शासकीय सेवा के आचार संहिता के अनुसार स्पष्ट है कि सेवा में रहते हुए कोई भी व्यक्ति किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्ष अथवा विपक्ष में सार्वजनिक तौर पर किसी भी गतिविधि में सम्मिलित नहीं होगा। परंतु कोरिया जिला के बैकुंठपुर में मामला बिल्कुल उलट है। यहां सत्तापक्ष के जनप्रतिनिधि के करीब रहने पर शासकीय सेवा के कार्य का समय आप खुलेआम ठेकेदारी और राजनीतिक गतिविधियों को संचालित करने में दे सकते हैं। कितनी भी शिकायतें हो पर कोई कार्यवाही नहीं होगी।
सरपंच संगीता सिंह ने सरगुजा आयुक्त को शिकायत कर बतया की विगत ढाई वर्षों से ऐसा ही देखने में आ रहा है की बैकुंठपुर जनपद उपाध्यक्ष श्रीमती आशा साहू के शिक्षक पति महेश साहू के विरुद्ध शासकीय सेवा में रह कर राजनीतिक गतिविधियों को संचालित करने, ड्यूटी के दौरान कार्यस्थल में लगातार अनुपस्थित रहने, सोशल मीडिया पर राजनीति के संदर्भ में पोस्ट की शिकायतें लगातार शिक्षा विभाग के विकास खंड शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी, जिलाधीश महोदय एवं कमिश्नर कार्यालय तक की गई। परंतु इन शिकायतों की ना तो आज तक कोई जांच हुई, नहीं किसी प्रकार की कोई कार्यवाही सुनिश्चित हुई। इसके उलट शिक्षक द्वारा खुलेआम राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने, राजनीतिक कार्यक्रमों के विज्ञापन समाचार पत्रों में छपवाने, राजनीतिक पार्टी के प्रतीक चिन्ह के साथ बैनर पोस्टर और होर्डिंग लगवाने, सोशल मीडिया पर राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने में अग्रणी रहते हैं। शिक्षक के पदस्थापना स्थल से लेकर उनके गृह ग्राम के तत्कालीन सरपंच एवं विद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के पालकों, व्यक्तियों द्वारा लगातार मौखिक और लिखित शिकायतें उच्च अधिकारियों को दर्ज कराते रहे हैं। परंतु आज तक एक भी शिकायतों पर किसी प्रकार की कोई सुनवाई नहीं हुई।
विडंबना गया है कि जहां कोरोना काल के बाद बच्चों के नियमित अध्ययन अध्यापन के लिए शिक्षा विभाग नित नए प्रयास में लगा है। नई-नई योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है, वहीं विभाग के आला अधिकारियों के नाक के नीचे एक शिक्षक अपने कार्य के दौरान कार्य स्थल से दूर जिला मुख्यालय बैकुंठपुर में आमतौर पर देखा जाता है, उस पर किसी अधिकारी की कोई निगाह नहीं जाती। जबकि शासकीय सेवा नियमावली के तहत राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना एवं अपने कार्यस्थल से लगातार गायब रहना गंभीर गैर अनुशासनात्मक कार्य के तहत आता है।
मुख्यमंत्री के आगमन पूर्व लगने वाली जन चौपाल में भी हुई थी जिलाधीश से शिकायत
विगत दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल जी का जब दौरा कोरिया जिले में निर्धारित हुआ था उसके पूर्व ग्राम पंचायत छिंदिया के प्राइमरी विद्यालय (जहां उक्त जनपद उपाध्यक्ष पति महेश साहू पदस्थ हैं) के प्रांगण में कलेक्टर कोरिया महोदय का जन चौपाल लगा था। वहां भी शिक्षक के विरुद्ध शिक्षक की उपस्थिति में ही कलेक्टर महोदय से पालकों द्वारा शिकायत की गई थी। जिस पर कलेक्टर महोदय ने कार्यवाही का आश्वासन दिया था। पर कोई कार्यवाही सुनिश्चित नहीं हुई।
सोशल मीडिया पर एक पोस्ट से पुनः चर्चा में उक्त शिक्षक
जनपद उपाध्यक्ष बैकुंठपुर श्रीमती आशा साहू के पति शिक्षक महेश साहू पर उन्हीं के ग्राम पंचायत चिरगुड़ा के तत्कालीन सरपंच श्रीमती संगीता साहू ने धनबल का प्रयोग कर अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से सरपंच पद से पृथक करने का आरोप लगाया था। जिस पर खबर काफी सुर्खियों में था, क्योंकि तत्कालीन सरपंच पर अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा पृथक होने के बाद शिक्षक एवं जनपद उपाध्यक्ष के समर्थकों ने सोशल मीडिया में पंचों के साथ फोटो डालकर अपनी ताकत का एहसास कराने का कई पोस्ट डाला था और लिखा था कि जनपद उपाध्यक्ष ने दिखाई अपनी ताकत। तत्कालीन सरपंच ने अपनी शिकायतों में खुलेआम यह आरोप लगाया था कि अविश्वास प्रस्ताव का पूरा क्रियान्वयन शिक्षक महेश साहू द्वारा धनबल के प्रयोग से किया गया है। सोशल मीडिया में किए गए उक्त पोस्ट इस बात की स्वीकारोक्ति भी थे। वर्तमान में जब हाईकोर्ट द्वारा निवर्तमान सरपंच की याचिका पर होने वाले पंचायत चुनाव पर स्थगन दे दिया तो इस आशय की खबर घटती घटना ने प्रकाशित की थी। जिसे उपाध्यक्ष पति महेश साहू द्वारा सोशल मीडिया में पोस्ट कर लिखा गया था कि अविश्वास प्रस्ताव पंचों का अधिकार है, कितना बदनाम करोगे। जबकि वास्तविकता यह है कि जब अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ तो उसका क्रेडिट लेने की होड़ में ये और इनके समर्थक सबसे आगे थे।
शिकायतों का अंबार, कार्यवाही का इंतजार
यदि किसी शासकीय सेवक के खिलाफ लगातार शिकायतें हो रही हों और विभाग उचित कार्यवाही ना करें तो इससे अन्य सेवकों के ऊपर भी गलत प्रभाव पड़ता है। क्योंकि जहां एक व्यक्ति शासकीय सेवा में रहते हुए बगैर सेवा के वेतन भत्तों का लाभ ले रहा है तो उसके साथ अन्य व्यक्ति जो सेवाकाल में सेवा करते हुए वेतन भत्ते पा रहे हैं, उनके मन में भी यह भावना जागृत होती है कि जब बगैर कार्य किए ही पूरा पैसा मिल रहा है तो कार्य क्यों करें। साथ ही समाज में एक गलत संदेश भी जाता है। देखना यह है कि शिकायतों पर जांच कब होगी, कैसे होगी?? कार्यवाही सुनिश्चित होगी भी या नहीं?


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