Breaking News

बैकुण्ठपुर@क्या कोरिया गेज बांध मुआवजा मामले में हुआ बड़ा घोटाला?

Share


गेज बांध मुआवजा घोटाला मामले में शिकायत के दो महीने बाद भी प्रशासन चुप क्यों?
गेज बांध मुआवजा घोटाले में राजस्व या जल संसाधन विभाग इनमे से किसका हो सकता है हाथ?
1992 में 95 एकड़ड़ भूमि का 49 हितग्राहियों में मिलना था 10.63 लाख मुआवजा राशी, फिर 2022 में भूमि 140 एकड़ड़ व मुआवजा राशि 17.34 करोड़ कैसे होगी?
शासन को 17 करोड़ 34 लाख देना पड़े तो समझिये शासन के पैसो का दुरूपयोग कितना गुना होगा।
अधिकारियों की लापरवाही से शासन को करोड़ो का नुकसान इसकी भरपाई कौन करेगा?
क्या जिम्मेदारों पर होगी बड़ी कार्यवाही क्योंकि शासन के पैसे को ही बंदरबांट करने के फिराक में।
1992 में अधिग्रहण हुये जमीन मुआवजा राशि का भुगतान 2022 में गड़बड़ी का आरोप।
गेज बांध मुआवजे की गड़बड़ी मामले में आखिर प्रशासन कब करेगा जांच?
अविभाजित मध्यप्रदेश का 1992 का मुआवजा सूची सही या वर्तमान 2022 का मुआवजा सूची सही?
1992 की मुआवजा सूची को प्रशासन क्यों नहीं दे रहा तवज्जो,नये सूची पर भरोसा क्यों?
अनुविभागीय अधिकारी पर गड़बड़ी का लग रहा आरोप,आखिर कौन करेगा इसकी जांच।
मुआवजा गड़बड़ी मामले में एसपी,कलेक्टर सहित कई जनप्रतिनिधियों से शिकायत क्या होगी इसकी जांच।

रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 15 जून 2022 (घटती-घटना)।
अविभाजित मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले के बैकुण्ठपुर क्षेत्र के छरछा बैकुण्ठपुर में गेज बांध निर्माण जमीन अधिग्रहण 1992 का मामला जिसके मुआवजे में 30 साल के विलंब के बाद मुआवजे वितरण सूची में गड़बड़ी का आरोप। समय के साथ मुआवजा के असली हकदार भटक रहे कब्जाधारी मुआवजा राशि लेने की फेर में प्रशासन पर मिलीभगत कर मुआवजे का गलत वितरण कराने का गंभीर आरोप है और इस आरोप का जांच की मांग उठ¸ने लगी और वर्तमान कलेक्टर ने मौखिक रूप मुआवजा वितरण पर रोक तो लगा दी है पर इसमें से कुछ लोगों को मुआवजा मिल गया है और बंदरबांट हो चुका है। अब सवाल यह है कि सारे दस्तावेज सूची बनाने वाले जिम्मेदार अधिकारी की तरफ गड़बड़ी ईषारा कर रहे है आखिर गड़बड़ी मामले में जांच कब होगी? जिस पर गड़बड़ी का आरोप है उस जिम्मेदार अधिकारी को पद से पृथक कर जांच क्यों नहीं हो रहा है? क्या शासन के पैसो का बंदरबांट करने के लिये समय दिया जा रहा है? मामले में साक्ष्य भी मौजुद है और शिकायत भी हुयी है इसके बाद गड़बड़ करने वालो के हौसले बुलंद है साथ ही कई गड़बड़ी होती जा रही है, मुआवजे सूची का प्रकाशन के बाद कुछ हितग्राहीयों को मुआवजा वितरण किया गया है पर गड़बड़ी की शिकायत होने पर बैंक से पैसा निकासी पर रोक नहीं लगायी गयी।
शिकायतकर्ता के जानकारी के अनुसार गेज बांध मुआवजे गड़बड़ी में पहला मामला यह है कि ग्राम छरछा व रकैया के क्षेत्र में गेज बांध का निर्माण होना था जिसके लिये 08.08.1991 में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुयी उस समय अविभाजित मध्यप्रदेश तत्कालिन कलेक्टर सरगुजा के प्रभावित हितग्राहियों की अधिसूचना एवं भूमि का विवरण का व्यापक प्रचार-प्रसार करते हुये, इसकी सूचना जारी की। भू-अर्जन अधिनियम 1994 (क्रं. 01 सन् 1894) की धारा 4 की उक्त धारा 01 तथा धारा 06 के उपबंधो के अनुसार अधिसूचना तथा उद्घोषणा का प्रकाशन मध्यप्रदेश राज्यप्रत्र के भाग 01 में क्रमषः पृष्ठ संख्या 1865 दिनांक 18.101991 तथा तथा पृष्ठ संख्या 728 दिनांक 06.03.1992 को प्रकाशित कराया गया था। उपरोक्त अधिसूचना तथा उद्धघोषणा का प्रकाशन दो स्थानीय समाचार पत्रों में विस्तृत जानकारी के साथ प्रकाषन कराया सूची जारी कराया था। ईश्तहार जारी कर 15 दिवस के भीतर भूमि के संबंध में आपत्ति यदि कोई हो तो आमंत्रित किया गया इसके अलावा धारा 9 (3) के अंतर्गत स्थल पर जाकर सम्बन्धित हितग्राहियों से स्वतः अर्जित क्षेत्रफेल, किस्म, भूमि के निहित अंश अथवा क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में लिखित आपत्ति की मांग की गयी थी किन्तू किसी हितग्राही का कोई आपत्ति प्राप्त नहीं हुआ। किन्तू स्थल जांच के दौरान कुछ ग्रामीणों जो आदिवासी समुदाय के थे उन्होंने डूबान में आने वाली भूमि जिस पर वह मकान, बाड़ी बनाकर 20 से 25 वर्ष से काबिज थे उन व्यक्तियों ने चोरी से नजायज पट्टा हासिल कर लिया है ऐसे व्यक्तियों को मुआवजा न देकर उनकों दिये जाने का निवेदन किया गया है जिसकी षिकायत गंभीरता से लेते हुये अधिकारी द्वारा बैकुण्ठपुर तहसीलदार को जांच करने का निर्देश दिया उसके पष्चात 37.993 हे0 में से 15.663 हे0 निजी भूमि का आर्डर पारित किया गया। अविभाजित मध्यप्रदेश के तत्कालीन सरगुजा कलेक्टर द्वारा 1992 में जारी जमीन अधिग्रहण सूचना के आधार पर सूची जारी की गयी थी उस दौरान बांध निर्माण वाले क्षेत्र का कुल रकबा 37.993 हे0 था, जिसमें हितग्रहियों की संख्या 49 हितग्राही थे जिसमें से 15.663 हे0 और 11 हितग्राहियों को मुआवजा वितरण कर दिया गया। यदि इसी सूची को आगे लेकर चला जाता तो शायद हितग्राहियों को समय पर मुआवजा भी मिलता और साथ ही किसी भी हितग्राहियों का पैसा किसी दूसरे को नहीं मिलता और शासन का पैसा भी बचता। पर इस सूची को मध्यप्रदेश विभाजन के बाद आगे लेकर नहीं चला गया, जानकारों का मानना है कि 1992 के सारे दस्तावेजों को दरकिनार कर नये सिरे से भूमि अधिग्रहण का प्रकरण शुरू किया और मुआवजे में राशी से लेकर जमीन का अधिग्रहण रकबा व मुआवजा राशि इतनी बढ़ गयी कि ऐसा लगा कि बांध बनते ही जमीन फैल गया और हितग्राही बढ़ गये। जिसकी गड़बड़ी अचानक 2022 में मुआवजा वितरण के दौरान सामने आयी जिसे लेकर शिकायत व जांच की मांग उठ¸ने लगी। जिसे 1992 में मिला मुआवजा उसी जमीन का मुआवजा अधिक रकबे व राशि के साथ कब्जे धारक को देने के लिये सूची में नाम आ गया।
1992 का प्रकरणकैसे हुआ खत्म
अविभाजित मध्यप्रदेश के सरगुजा जिले के बैकुण्ठपुर के छरछा ग्राम में किसानों की भूमि की सिंचाई के लिये गेज नदी पर गेज बांध का निर्माण करने का प्रस्ताव 1991 में तैयार हुआ, जिसके लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण करने की प्रक्रिया शुरू हो गई, यह प्रक्रिया 1992 में पूरी कर ली गयी। उस समय इस बांध को बनाने के लिये किसानों की 95 एकड भूमि का अधिक्रहण किया गया। अधिग्रहण की भूमि में 49 हितग्राहीयों के नाम शामिल थे जिन्हें तकरीबन 10.66 लाख भुगतान होना था जो तत्कालिन समस्याओं की वजह से अधिकारीयों ने नहीं कर पाया और यह प्रकरण 26 साल ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और जब शासन-प्रशासन जागी तो इस प्रकरण को आगे बढ़ोने की बजाये नया प्रकरण शुरू कर दिया, इस 26 सालों में क्या भाजपा क्या कांग्रेस सभी आये और गये पर किसानों के अधिग्रहण के पैसो की चिंता किसी ने नहीं की। किसान भी एक समय के लिये इस पैसों को भूल बैठे थे पर कुछ जनप्रतिनिधि अपने निजी लाभ और अधिकारीयों को प्रलोभन देकर मामले को 2018 में कुछ भू-माफिआयों के साथ मिलकर प्रकरण शुरू कराया पर सवाल यह है कि पुराने प्रकरण को दफ्न कर नये प्रकरण क्यों शुरू किया गया?
2018 में शुरू हुये प्रकरण में आ रही घोटाले की गंध
1992 के प्रकरण को ही आगे लेकर बढ़ना था क्योंकि यह सारे प्रकरण मौजुदा विभाग के पास दस्तावेज के तौर पर पड़े थे और सारी जानकारीयां पूर्णतः स्पष्ट थी पूर्व के अधिकारीयों ने भू-स्वामीयों को संतुष्ट करने के बाद ही अधिकग्रहण किया था, यही वजह था कि उस समय सिर्फ मौखिक आपत्ति ही आयी और उस मौखित आपत्ति को गंभीरता से लेते हुये जांच में के लिये वापस भेज दिया था, उन्हें क्या पता था कि बांध भी बन जायेगा और मुआवजे का प्रकरण अटका रह जायेगा। किसानों की सहमति व ईच्छा से कोरिया जिले को एक मध्यम परियोजना के तौर पर गेज बांध मिला जो आज कितने किसानों के लिये सिंचाई का साधन तैयार हो गया। आज उसी किसानों के धैर्य व त्याग का फायदा उठ¸ा 2018 में भू-माफिआ व जनप्रतिनिधि सक्रिय होकर नया प्रकरण शुरू करा दिया, जिस प्रकरण में सिर्फ खामिंया ही दिख रही है। खामियां भी छोटी नहीं काफी बड़ी है बांध तो कई एकड़ की भूमियों में तैयार हो गया पर उसमें से डूबान क्षेत्र के 95 एकड़ की भूमि थी वह भूमि किसानों की निजी थी जिसे बांध के लिये किसानों ने सरकार को दे दिया और इसके एवज में सरकार ने उन्हें मुआवजा का आबंटन किया पर यह राशि हितग्राहियों को समय पर नहीं मिली और जब दुबारा प्रकरण तैयार कर मौजुदा प्रशासन, शासन को ही करोड़ो का चुना लगा रहा है। पूर्व में जमीन मुआवजा के लिये 95 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें 39 एकड़ में 11 हितग्राहियों को 4 लाख 36 हजार 191 का मुआवजा वितरण हो गया था। जिसमें शेष 56 एकड़ भूमि के 38 हितग्राहियों को 6 लाख 27 हजार का शेष रकम बच गया था जो वर्तमान में बढ़कर यह अधिग्रहित भूमि 140 एकड़ हो गयी और 38 हितग्राहीयों की संख्या बढ़कर 61 हो गयी। वहीं 6 लाख 27 हजार की रकम बढ़कर 17.34 करोड़ हो गयी। रकम के अंतर राशि 278 गुणा हो गया, जिस राशि में देखा जाये तो 17.27 करोड़ का ईजाफा हो गया। यह ईजाफा का वजह सिर्फ राजस्व के बड़ी लापरवाही है। इस बड़ी लापरवाही में यदि किसी को नुकसान हो रहा है तो सिर्फ शासन को, लापरवाही में जल संसाधन विभाग की भी मौन स्वीकृति से इंकार नहीं किया जा सकता।
कब्जे धारी को बिना दस्तावेज को कैसे मिल रहा मुआवजा?
1992 में रकबा व खसरा नं के साथ भूमि अधिग्रहण की जानकारी स्पष्ट रूप से प्रकाशित कर दी गयी थी, जिसकी जानकारी मौजुदा विभाग के पास मौजुद है फिर भी 2018 में नया कब्जेदार का नाम कैसे और किस आदेश के तहत आ गया और मुआवजे पाने का अधिकार कैसे उसे मिल गया। बिना दस्तावेज के प्रशासन क्यों पुराने मुआवजे सूची को विलोपित कर नयी सूची में नाम शामिल कर दिया। जबकि जमीन डूबान क्षेत्र की है तो फिर डुबान क्षेत्र की जमीन पर कब्जा कैसे?
सहमति पत्र में
रकबा और खसरा नंम्बर निरंक क्यों?
सहमति पत्र में भी राजस्व विभाग का बड़ा खेल हुआ है दस्तावेजों का अवलोकन करने से हितग्राहियों व कब्जाधारीयों के सहमति पत्र में नाम व हस्ताक्षर तो मौजुद है पर रकबा व खसरा का विवरण निरंक क्यों है। जब हितग्राही सहमति पत्र में हस्ताक्षर कर रहा है तो उसे यह जानने का अधिकार नहीं कि उसे किस रकबे व खसरा नं0 भूमि के लिये सहमति दे रहा है। यह भी एक जांच का विषय है पर शायद ही विभाग इसकी जांच कर पाये।
प्रकशित ईश्तहार मेंनाम क्यों नहीं?
1992 में जब भूमि अधिग्रहण संबधित प्रकरण का प्रकाशन समाचार पत्रों में कराया था, उसमें सारे जानकारियां हितग्राहियों के लिये स्पष्ट तौर पर मौजुद था, जबकि देखा जाये तो उस समय सूचना व सम्पर्क की इतनी व्यवस्था नहीं रही। इसके बाद भी तत्कालीन जिम्मेदारों ने बड़ी ईमानदारी से यह कार्य कराया था। पर वहीं 2018 में इसी प्रकरण को दोबारा नया प्रकरण बनाकर इसे प्रारंभ किया गया तो इस प्रकरण में कई अनिमियता देखा जा रहा है, अखबारों में इसकी सूचना प्रसारित की जाती है तो हितग्राहियों का नाम व उसके पिता का नाम या फिर कब्जेदारों का नाम निरंक करके प्रसारित करायी जाती है जो कहीं न कहीं घोटाले को व्यापक तौर पर करना दर्शाता है और जानकारी छुपाने का संदेह भी प्रकट होता है।
मुआवजे मिले हुये जमीन का दुबारा मुआवजा क्यों?
1992 में प्रश्नकिंत भूमि का मुआवाजा जिस हितग्राहियों को मिल गया, उसी जमीन का मुआवजा फिर से 2022 में किसके कहने प्रस्तावित किया गया। उदाहरण स्वरूप दस्तावेज का आंकलन करने से पता चला कि 1992 में भूस्वामी हृदयलाल पिता मनरूप खसरा नं. 570/36 का रकबा 1.214 हे0 भूमि का मुआवजा राशि 33 हजार 807 रूपये मिल गया था पर इसी भूमि में वर्तमान में हृदयलाल कब्जाधारी बन गये और भूस्वामी सगीरनिशा पिता मो0 ईषाक भू स्वामी बन गये और मुआवजा सूची में नाम आ गया और जो रकबा था वह वर्तमान में बढ़कर 2.426 हे0 हो गया जिसकी मुआवजा राशि 75 लाख 43 हजार बनायी गयी है। जबकि उक्त भूमि का 1992 में यह मुआवजा मिल गया था अब जो पैसा मिल रहा है वह हितग्राही के लिये उपहार स्वरूप है पर यह उपहार शासन क्यों दे रही है यह शासन पर बड़ा सवाल है।
अधिग्रहण के बाद कब्जा क्यों?जबकि डुबान क्षेत्र का कब्जा नहींकिया जा सकता
जानकारों का मानना है कि एक बार यदि अधिग्रहण हो गयी और इसकी सूचना प्रसारित हो गयी तो इस भूमि बंटवारा, कब्जा यहां तक कि खरीदी-बिक्री नहीं हो सकता क्योंकि इस तहरह की भूमि पर स्थगन आदेष जारी रहता है। इसके बावजुद यदि इसमें कोई राजस्व के जिम्मेदार छेड़छाड़ करते है तो उन्हें अपराधी न मानकर पदोन्न कर दिया जाते है।
बिना भौतिक
सत्यापन के 21 हितग्राहियों को मुआवजा राशि देने का मामला
21 हितग्राहियों में 4 करोड़ 75 लाख की राषि तो बंट गयी सवाल यह है कि जब यह पूरा मामले ही संदेह के घेरे में है तो इतनी हड़बड़ी क्यों प्रशासन ने दिखायी राशि के भुगतान करने में हांलाकि राषि हितग्राहियों में बंटा पर इसमें भी एक गड़बड़ी दिखी जो हल्का पटवारी बिना भौतिक सत्यापन की चेक का वितरण करते हुये राशि दे दी गयी।
इस संबंध में जब इस संबंध बात की तो उन्होंने कहा कि मुआवजा वितरण के लिए मुझसे प्रतिवेदन नहीं लिया गया था। जब प्रतिवेदन नही लिया गया तो फिर कैसे मुआवजा वितरण किया गया?
वंदना कुजुर हल्का पटवारी छरछा
इस संबंध में जब इनसे बात की गई तो इन्होंने कार्यालय आने की तो बात कही पर कोई भी बयान देने से इंकार कर दिया, जवाब देने से साफ इनकार किया जाना ऐसा लगा कि यह इस मामले पर कुछ कहना नहीं चाहते, पर यह क्यों नहीं कहना चाहता है यह भी बड़ा सवाल?
ज्ञानेन्द्र सिंह ठाकुर अनुविभागीय अधिकारी बैकुण्ठपुर


Share

Check Also

कोरिया@ जनसमस्या निवारण शिविर मे΄ 135 आवेदन प्राप्त,37 आवेदन का स्थल पर निराकरण

Share @ विधायक भईयालाल राजवाड़े ने चौपाल लगाकर लोगो की समस्याए΄ सुनीस΄ब΄धित अधिकारियो΄ को ल΄बित …

Leave a Reply