- घटती घटना में खबर प्रकाशन के बाद जनप्रतिनिधियों और प्रशासन में किसानों को न्याय दिलाने मची होड़।
- जांच कर 3 दिनों में रिपोर्ट सौंपने मिला था आदेश,समयावधि बीत जाने के बाद भी प्रारंभ नहीं हो जांच।
- कोरिया में कोई भी जांच समयावधि पर नहीं होती पूरी फिर समय देना का क्या मतलब?
- कोरिया में किसी भी मामले में समय पर जाँच ना होने में प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की भूमिका संदिग्ध।
- क्या सीएम के आगमन पूर्व पीडि़तों को मैनेज करने की तैयारी में जूटे प्रशासन और सत्ताधारी लोग?
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 31 मई 2022 (घटती-घटना)। मामला कोरिया जिला अंतर्गत आदिम जाति सेवा सहकारी समिति पटना एवं तरगंवा का है। जहां विगत वर्ष किसानों ने समिति से खाद एवं यूरिया प्राप्त करने के लिए टोकन तो कटाया परंतु समिति प्रबंधक अनूप कुशवाहा एवं राम कुमार साहू द्वारा किसानों को खाद प्रदान नहीं किया गया, अपितु धान खरीदी के वक्त संपूर्ण ऋण की वसूली भी कर ली गई। उक्त अवैध ऋण की वसूली के विरुद्ध एवं खाद प्राप्ति के लिए जहां 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी किसान दर-दर भटक रहे हैं, वही मामले में राजनीति भी गरम हो गई है।
किसानों के साथ हुए अन्याय की खबर जब घटती घटना में प्रकाशित हुई तो प्रशासन भी मुस्तैद नजर आया और घटना की जांच के लिए सहायक पंजीयक सहकारी संस्थाएं कोरिया द्वारा शाखा प्रबंधक जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित शाखा बैकुंठपुर को पूरे प्रकरण की जांच कर 3 दिनों में रिपोर्ट सौंपने के लिए आदेशित किया गया। परंतु समयावधि बीत जाने के बाद भी अभी तक उक्त आदेश के परिपालन में किसी प्रकार की जांच प्रारंभ नहीं की गई है ना ही किसानों से संपर्क कर उनका अभिमत लिया गया है। खैर यह कोरिया के लिए कोई नई बता नहीं है यह तो परंपरा बन गई है सिर्फ जाँच का आदेश होता है पर जाँच पूरी नहीं होती है पहले के समिति प्रबंधको के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा है जाँच हो रही है पूरी कब होगी यह कोई मत पूछना? वही मामले की जानकारी मिलते ही कोरिया कांग्रेस के कद्दावर नेता जनपद पंचायत में सभापति एवं कांग्रेस महामंत्री बिहारी लाल राजवाड़े ने घोषणा की है और कहा है कि यदि अति शीघ्र किसानों को न्याय नहीं मिला तो वे आंदोलन की राह पर मजबूर होंगे। इसके पूर्व भी किसानों के हित में समय-समय पर बिहारी लाल राजवाड़े ने आंदोलन, धरना प्रदर्शन के माध्यम से किसानों की आवाज बुलंद की है। श्री राजवाड़े जी के इस घोषणा के पश्चात किसानों में एक आस जगी है कि शायद उन्हें न्याय मिल सके। विडंबना यह है कि सत्ता पक्ष के कद्दावर नेता अपने ही शासन में आंदोलन की बात कर रहे हैं, वहीं सत्ता पक्ष के ही कोरिया किसान कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल जायसवाल के गृह क्षेत्र की समिति का मामला होने पर भी उनकी चुप्पी समझ से परे है। किसानों के संदर्भ में बड़ा मामला होने के कारण कोरिया भाजपा के लिए यह एक बड़ा मुद्दा साबित हो सकता था परंतु हाशिये पर चल रहे विपक्ष के नेताओं का भी इस मामले में कहीं अता-पता नहीं है।
बड़ा मुद्दा यह की किसानों के नुकसान की भरपाई होगी कैसे?
जिन किसानों को विगत वर्ष परमिट कटने के बाद भी खाद नहीं मिला यदि किसी प्रकार से इस वर्ष उन्हें बकाया खाद दे भी दिया जाता है तो उनके नुकसान की भरपाई होगी कैसे? क्योंकि विगत वर्ष समय पर यूरिया एवं खाद ना मिलने के कारण किसानों को वह यूरिया जो उन्हें 268 में समिति से मिलना था उसे खुले बाजार में 8 सौ की दर से खरीद कर उपयोग करना पड़ा है। इस भारी अंतर राशि की भरपाई करेगा कौन और कैसे? यदि किसानों को विगत वर्ष का बकाया यूरिया मिल भी जाता है तो भी किसान नुकसान में ही रहेंगे। जांच का विषय यह भी है कि ऑनलाइन प्रक्रिया होने के कारण जब एक बार थंब इंप्रेशन से आवंटित यूरिया की निकासी की जा चुकी है तो पुन: उसी यूरिया की निकासी समिति प्रबंधकों द्वारा किस माध्यम से की जाएगी। सूत्रों के माध्यम से पता चला है कि किसान शिकायत ना कर सकें इस कारण किसानों को बकाया यूरिया जबरन उनके घर जाकर थमाया जा रहा है।
प्रबंधकों की मनमानी से ही हुए हैं किसान परेशान
हर वर्ष किसानों को समिति के माध्यम से मिलने वाले उर्वरकों में यूरिया के ही शार्टेज रहती है। इस वजह से शासन ने यूरिया की प्रति एकड़ तय मात्रा निर्धारित कर दी है। शर्त यह भी है कि किसी भी किसान को केवल यूरिया नहीं अपितु अन्य खाद भी लेने की बाध्यता है। परंतु समिति प्रबंधकों के द्वारा अपने कऱीबी निजी दुकानदारों को निर्धारित रकबा से तयशुदा अति अत्यधिक मात्रा में केवल यूरिया का परमिट काटकर प्रदान करना एवं वास्तविक किसानों को वंचित रखना शासन की मंशा पर पानी फेरने जैसा है। जहां सरकारें अपने आप को किसान हितैषी सिद्ध करने के लिए होड़ में लगी रहती है। वही कुछ लोगों को क्यों चाहिए केवल यूरिया? एक तरफ जहां किसानों को समिति के माध्यम से सभी प्रकार के खाद डीएपी, अमानक वर्मी कंपोस्ट, जिंक, सरकारी धान बीज लेने के लिए बाध्य किया जाता है। वहीं कुछ कथित किसान जो खाद की निजी दुकानदारी करते हैं उन्हें केवल यूरिया ही चाहिए, आखिर क्यों? साथ ही समिति प्रबंधन की मनमानी से निजी दुकानदारों को आसानी से यूरिया उपलब्ध करा दिया जाता है। जिसकी पुष्टि परमिट से भी होती है। जहां हर वर्ष किसान यूरिया के लिए मशक्कत करते दिखाई देते हैं, वहीं निजी दुकानदार साठगांठ के द्वारा समिति से प्राप्त किसानों के हक के यूरिया को उन्ही किसानों को खुले बाजार में दोगुने तीन गुने दाम में बेचते और मुनाफा कमाते हैं। आखिर व्यवस्था सुधरेगी कब? प्रशासन यदि ऐसे मामलों में कड़ी कार्यवाही करे, दोषियों को सजा दे तो शायद व्यवस्था सुधर सकती हैं। परंतु यहां तो दोषियों को नई-नई समितियों का अतिरिक्त प्रभार देकर उपकृत किया जा रहा है।
अंत में कुछ सवाल
क्या इस मामले की निष्पक्ष जांच होगी या पूर्व की तरह ठंडे बसते में जाएगा? जैसा की जीतेन्द्र मिश्रा में होता आया है?
जिम्मेदारों पर क्या कार्यवाही सुनिश्चित होगी?
किसानों को किस प्रकार राहत दिया जाएगा?
राजनीतिक दल के लोग अपनी घोषणाओं को कितना अमल में लाते हैं?