- जितेंद्र की पत्नी व बहनों ने मंच से रखी अपनी बात कहा प्रशासन द्वेष पूर्वक कर रही है कार्यवाही।
- क्या पत्रकारों पर अपराध पंजीबद्ध करा पूरा करेंगे सरकार के नुमाइंदे 2023 का फतेह मिशन?
- मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपने के दौरान पुलिस व पत्रकार संघ के बीच हुआ सवाल-जवाब
- पत्रकारों के धरना प्रदर्शन के दौरान पत्रकार जितेंद्र जयसवाल की पत्नी बच्चे व बहन हुए शामिल।

-रवि सिंह-
अम्बिकापुर/बैकुंठपुर,08 मई 2022 (घटती-घटना)। क्या देश का लोकतंत्र हाईजैक हो गया है सत्ता परिवर्तन के साथ व्यवस्था भी परिवर्तन हो गया, पत्रकार की बहादूर बच्ची के जज्बे और हौंसलें को सलाम उसकी आवाज देश के करोडों आमजनता की आवाज बन रही है हर पत्रकार की आवाज बन रही, हमारे देश में ऐसी व्यवस्था है की छोटे बच्चों को भी आन्दोलन करना पड रहा है न्याय पाने के लिए। देश की बहादुर बेटी का हौसला और जज्बा दोनों ही शानदार है आगे चलकर सबके सपने साकार करने के लिए हौसला बनाए रखना। आदिवासी, दलित, शोषित, पिछड़े वर्ग तथा गरीब एवं असहाय लोगों के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में आप सभी के सहयोग की अपेक्षा है… हम पत्रकार साथियों को उम्मीद है लोकतंत्र की रक्षा हेतु आप साथ अवश्य देंगे जनपक्षीय पत्रकार लोकतंत्र की रक्षा में आपके लिए सब कुछ झेलता है… फर्जी मामले… पुलिस व प्रशासन की दुर्भावना…गुंडे माफियाओं से दुश्मनी…क्या आप हमारी हत्या होने का इंतजार करेंगे?
शासन-प्रशासन वह जनता चाहती है कि पत्रकार निष्पक्ष हो पर जब वह निष्पक्ष होता है तो इन्हीं की तकलीफ बढ़ती है पर सवाल यह है कि पत्रकार को जनता नहीं चुनती है पत्रकार स्वयं बनता है और जनता के लिए शासन प्रशासन से उनके सवालों का जवाब मांगता है जनता की आवाज बनता है पर जब पत्रकार की समस्या की बात आती है तो जनता को चुप हो जाती है और मूकदर्शक बन जाती है जबकि जनता अपने लिए अपनी सरकार चुनती है, पर वही सरकार उनके लिए निष्पक्ष नहीं होती, तब जनता चाहती है की पत्रकार निष्पक्ष बने और जनता की अवजा बने पर पहले सरकार निष्पक्ष हो जाए तब पत्रकार के निष्पक्षता की बात करें, ऐसे में कई सवाल है की क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सच लिखने से रोकने के लिए क्या सिर्फ एफआईआर ही है विकल्प? क्या पत्रकारों पर अपराध पंजीबद्ध करा पूरा करेंगे सरकार के नुमाइंदे 2023 का फतेह मिशन? क्या मौजूदा सरकार व शासन प्रशासन के लिए पत्रकार रोड़ा हैं? क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सच लिखने से रोकने का शासन प्रशासन के पास सिर्फ एफआईआर ही बचा है विकल्प? क्या पत्रकारों की संख्या कम इसलिए सरकार भी नहीं देती तवज्जो? क्या इन के मत के जरूरत नहीं जनप्रतिनिधियों को? लोकतंत्र का चौथे स्तंभ आम लोगों की आवाज है, यदि उसकी आवाज को सरकार कुचलेगी तो यह जनता भी बर्दाश्त नहीं करेगी। जनता का जवाब लेट से आता है पर सरकारों के लिए परिणाम दे जाता है। पत्रकारों पर अपराध पंजीबद्ध कराकर ही केवल 2023 का विधानसभा चुनाव जीतने की मंशा में हैं सरकार के ही कुछ जनप्रतिनिधि।
पत्रकार की बहादुर बेटी को सलाम
बहादुर बेटियों को सलाम कोई जन्म से नहीं महान होता है इस बिटिया की आवाज रुकना नहीं चाहिए मेरे प्यारे देशवासियों। ये है हमारे देश के बेटी की हौसला, ताकत, ज़ज्बा मैं इस बेटी के जज्बे लहजे और बोलने की शैली को सलाम करता हूं! पत्रकार साथी जितेन्द्र जायसवाल की बेटी अम्बिकापुर के आंदोलन में प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल से अपने पापा की रिहाई की मांग करने धरना स्थल पर बैठी रही है आपको बताना चाहता हूं अम्बिकापुर पुलिस ने पत्रकार जितेंद के खिलाफ एक ही दिन 4-6 एफआईआर दर्ज सिर्फ इसलिए कि उसने पुलिस को लेकर बहुत खबरे प्रकाशित की व पुलिस के लिए गलत शब्दों का प्रयोग किया जिसे लेकर पुलिस की द्वेषपूर्ण कार्यवाही करते हुए जितेंद जायसवाल को जेल भेजा 1 माह से वह जेल में है उसकी गलती सिर्फ इतनी है उसने पुलिस की वो खबरे लगाई जिसके चलते अम्बिकापुर पुलिस हमेशा कटघरे में दिखाई दी। वही पत्रकार की मासूम बेटी अपने पापा की रिहाई का पोस्टर लेकर बैठी रही धरने पर जिसका फोटो सोशल मीडिया में जबरदस्त तरीके वायरल हो रहा है अब इसके बावजूद मुख्यमंत्री यदि इस माले को संज्ञान नहीं लेंगे तो आप समझ सकते हैं कि एक छोटी बच्ची के दिमाग पर क्या असर पड़ेगा। इस समय पत्रकार की एक छोटी बच्ची का वीडियो व फोटो सोशल मीडिया पर बहुत ज्यादा वायरल हो रहा है पर क्या उस बच्ची की आवाज उन तक पहुंच पाएगी जो इस मामले को निष्पक्षता से देख सकें।
जीतेंन्द्र जायसवाल की गिरफ्तारी पर पुलिस प्रशासन एवं पत्रकारों के बीच सवाल-जवाब
पुलिस कहना:- जितेन्द्र फर्जी पत्रकार है 2018 में भी फर्जी पत्रकारिता को लेकर उस पर एक एफआईआर हुआ था।
पत्रकार संघ का जवाब:- जिस अखबार का आरएनई नंबर हो लगातार जो क्षेत्र की ज्वलंत समस्याओं को पब्लिक डोमेन में उठाता हो उसे फर्जी कैसे कह सकते हैं? 2018 के एफआईआर में भी पुलिस ने उन्हें फर्जी पत्रकार बताया था तो आजतक पुलिस कोर्ट में चालान पेश क्यों नहीं कर पाई?
पुलिस कहना:- 10 जनवरी 2022 को रायपुर पुलिस ने भी उक्त व्यक्ति पर प्रतिबंधात्मक कार्यवाही की थी।
पत्रकार संघ का कहना:- अनुसूचित जाति जन जाति आयोग रायपुर में बहुचर्चित पंकज बेक कस्टोडियल डेथ मामले में आयोग ने मामले में आरोपी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध पुन: विभागीय जांच कराने एवं अजाक्स थाने में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश 10 जनवरी 2022 को ही दिया था, मामले में मुख्य आरोपी विनीत दुबे रायपुर गुडयारी थाने में प्रभारी था अत: कोई मामला नहीं बना तो 151 में जितेंद्र को गिरफ्तार किया गया, जब-जब इस मामले में सुनवाई होती है पत्रकार जितेन्द्र को उठवा लिया जाता है, उक्त 6 एफआईआर भी तब हुए जब 6 अप्रैल 2022 को आरोपी पुलिसकर्मियों की अजजा आयोग रायपुर में पेशी थी, हमारे संगठन के अन्य पत्रकार साथियों के सामने कस्टोडियल डेथ के आरोपी पुलिसकर्मी विनीत दुबे ने जितेंद्र को धमकाया जैसे ही 7 अप्रैल की मध्य रात्रि को यह समाचार भारत सम्मान में लगा 8 अप्रैल को पुन: पुलिस ने पहले पत्रकार को अगुवा किया फिर 6 एफआईआर कर दिए, पुलिस जनहितैषी पत्रकारों से दुर्भावना रखती है।
पुलिस कहना:-कोई शिकायत आएगा तो पुलिस मामला तो दर्ज करेगी ही इसमें दुर्भावना वाली क्या बात है?
पत्रकार संघ का कहना:- ठीक है फिर कृपया यह बता दें पंकज बेक की पीड़िता रानू बेक ने 2019 से कई आवेदन एवं शिकायत भेजी क्या उसके अनुरूप एफआईआर हुआ? 10 जनवरी 2022 से अजजा आयोग का आदेश कि पुलिसकर्मियों पर अजाक्स थाने में एफआईआर दर्ज करें क्या एफआईआर हुआ? अम्बिकापुर के डिगमा के जमीन फर्जीवाड़े पश्चात रामबिलास मौत मामले में जिसमें एक महिला टीआई भी शामिल थी एवं अन्य के विरुद्ध 28 मार्च 2020 से न्यायालय का आदेश था कि मामले में एफआईआर दर्ज किए, क्या 2 वर्षों तक एफआईआर दर्ज किए? क्या पुलिस के लिए अलग एवं एक पत्रकार के लिए अलग कानून है? अन्य सैकड़ों आवेदन थानों में पड़े रहते हैं क्या आवेदन मात्र से एफआईआर दर्ज हो जाता है? क्या यहां के थानों में एक भी मामला पेंडिंग नहीं है?
पुलिस कहना:- एक-दो नहीं 6 एफआईआर हुए हैं सब गलत कैसे हो सकता है?
पत्रकार संघ का कहना:-तीन दिन में 6 एफआईआर यानी 2 एफआईआर प्रतिदिन दर्ज हुए हैं, सभी में घटना अलग-अलग दिवस में घटित हुई लेकिन एफआईआर इतना देर से एकसाथ क्यों दर्ज हुआ? जब घटना घटित हुई तब तत्काल एफआईआर क्यों नहीं हुआ?
पुलिस कहना:- शिकायतकर्ताओं ने अपने आवेदन में लिखा है कि वे जितेंद्र जायसवाल से डरे हुए थे इसलिए अलग-अलग दिवस की घटना का एक साथ आवेदन मिला तो हमने मामले दर्ज कर लिए।
पत्रकार संघ का कहना:-चलिए मान भी लें कि पत्रकार से डरे हुए थे तो पुलिस के रहते इतना भय व्याप्त कैसे है? पुलिस का काम है भय-मुक्त वातावरण बनाना तो क्या पूरे संभाग के पुलिस बल के आगे मात्र एक पत्रकार का भय इतना कायम था कि सब डरे हुए थे? 6 में से एक एफआईआर तो उपनिरीक्षक केपी सिंह ने किया है तो एक पुलिस अधिकारी इतना कैसे डरा हुआ था जो 25 अक्टूबर 2021 की घटना का 09 अप्रैल 2022 को बसंतपुर थाने में एफआईआर दर्ज कर रहा है?
पुलिस कहना:- जितेन्द्र की भाषा शैली कहीं से पत्रकारों वाली नहीं थी वह पुलिस को हरामखोर कहता था, क्या एक पत्रकार की ऐसी भाषा शैली होनी चाहिए?
पत्रकार संघ का कहना:-नहीं होनी चाहिए, परंतु यदि हरामखोर गाली है तो उसके लिए भारतीय दंड संहिता में जो सजा का प्रवधान है वह दर्ज करेंगें या लूट और फरौती का? थानों में पुलिस की भाषा शैली कैसी होती है इसकी समीक्षा किया कभी विभाग ने?
पुलिस कहना:- जो आवेदन में शिकायत आया उसके अनुरूप धाराएं लगाई गयीं हैं।
पत्रकार संघ का कहना:- शिकायत आने पर एफआईआर पर जांच होती है या नहीं? क्या जांच में यह तथ्य सामने नहीं आया, कुल 6 एफआईआर में से 2 एफआईआर एक चिटफंड कंपनी के मालिक एवं ओहदेदार से सम्बंधित हैं, चिटफंड कंपनी के विरुद्ध मुख्यमंत्री ने जीरो टॉलरेंस की बात कही है कितने चिटफंड कंपनी के विरुद्ध अब तक आप लोगों ने कार्यवाही किया? बाकी बचे 4 एफआईआर में से 2 एफआईआर बरियों क्रशर हत्या कांड एवं पशु तस्करों से संबंधित है जिसमें उक्त पत्रकार 3 वर्षों से समाचार प्रकाशित कर रहा है यदि उसे फिरौती लेना होता तो 3 वर्ष इंतजार क्यों करेगा? शिकायतकर्ताओं के विरुद्ध कई मामले पूर्व में दर्ज हैं क्या यह बात जांच में नहीं आयी? शेष 2 में से एक एफआईआर पुलिस उपनिरीक्षक ने स्वयं किया है एवं एक अन्य में जितेंद्र जायसवाल का नाम किसी दूसरे मामले में जोड़ दिया गया है सबसे बड़ी बात 6 में से किसी भी एफआईआर में कोई सीसी टीवी फुटेज/ऑडियो रिकॉर्ड या अन्य कोई पुख्ता साक्ष्य क्यों नहीं मिला? सभी मामलों में शिकायतकर्ता पूर्व अपराधी ही क्यों हैं?
पुलिस कहना:- हमें अन्य पत्रकारों से भी शिकायत मिली थी कि जितेंद्र को वे पत्रकार नहीं मानते एवं उसका समर्थन भी कोई नहीं कर रहा है।
पत्रकार संघ का कहना:- व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा या आपसी व्यक्तिगत खुन्नस से पत्रकार होने ना होने की परिभाषा कैसे तय होती है? पुलिस कानून का पालन करती है या जनमत संग्रह कराकर एफआईआर करती है?
पुलिस कहना:-मामले दर्ज हो चुके हैं अब न्यायालय में जाएं आंदोलन से कुछ नहीं होगा।
पत्रकार संघ का कहना:- प्रत्येक बार बगैर पुख्ता साक्ष्यों के पत्रकारों को आप गिरफ्तार करके जेल में डाल दें फिर वर्षों चालान ही ना पेश करें ताकि प्रक्रिया की परेशानी से डरकर हम सरकारों की आलोचना ना करें. हमारा चरित्र हनन हो जाये जिससे पब्लिक डोमेन में हमारी छवि धूमिल हो जाए।
पुलिस कहना:- आंदोलन से क्या होगा?
पत्रकार संघ का कहना:-छत्तीसगढ़ शासन का आदेश है कि संभाग के पुलिस महानिरीक्षक हर त्रैमासिक में पत्रकारों पर होने वाले एफआईआर की समीक्षा करेंगे मामले फर्जी या तकनीकी किस्म के हों तो एफआईआर जांच में लेकर खात्मा खारिच की अनुशंसा करेंगे हमारी विभिन्न मांगों में से यह भी एक महत्वपूर्ण मांग है। प्रदेश में सभी पत्रकारों पर दर्ज फर्जी केस वापस लो।