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बैकुण्ठपुर@जल-जंगल-जमीन हमारी अमिट पहचान:विजय सिंह

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  • जंगलों के पेड़ पौधों सहित जीव जंतुओं को लेकर जागरूक बने आदिवासी समाज।
  • वृक्षों की रक्षा करना हमारी पुरातन काल से चली आ रही परंपरा।
  • विवाह में मंडप के लिए भी साल वृक्षों के छोटे पौधों को काटने से गुरेज करें समाज के लोग।
  • विवाह मंडप के लिए बांसों का उपयोग किया जाए समाज के लोगों द्वारा।
  • जल जंगल जमीन की बात करने से नहीं इन्हें बचाना भी हमारा होगा कर्तव्य।


-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 16 अप्रैल 2022 (घटती-घटना)। जल जंगल जमीन की बात करने मात्र से हमारे समाज का प्रेम इसके प्रति दिखाई देगा यह कतई सही नहीं कहा जा सकता इसे हमे बचाना भी है इनकी संरक्षा हमारी जिम्मेदारी है। आदिवासी समाज को अब आगे आकर इस विषय मे सोचना होगा क्योंकि यह जीवन और जीवन के अस्तित्व से जुड़ा विषय है और इसके बिना जीवन की कल्पना नहीं कि जा सकती। हमारे पूर्वजों ने जल जंगल जमीन की रक्षा आजतक की है और अब आगे हमारी जिम्मेदारी है कि कैसे हम इस विषय पर समाज मे जागरूकता ला सकें और किस तरह इनकी संरक्षा का दायित्व निभा सकें।
उक्ताशय के विचारों के साथ आदिम जाति सेवा सहकारी समिति मर्यादित पटना के अध्यक्ष विजय सिंह ने आदिवासी समाज सहित सभी समाज के लोगों से अपील की है कि वर्तमान में विवाह के लग्न का समय चल रहा है और हम लगातार यही देखते आये हैं कि इसके लिए मंडप की लकड़ियां जुटाई जातीं हैं और जो हमारे क्षेत्र में परंपरा अनुसार साल के छोटे छोटे वृक्ष होते हैं जिन्हें हम बड़ी आसानी से जंगलों से काटकर ले आते हैं और एक एक मंडप के लिए हम कई साल के छोटे वृक्षों को काटकर घर ले आतें हैं जो आगे चलकर बड़े वृक्ष बनते और पर्यावरण को सुरक्षित रखने में मदद करते लेकिन हम केवल एक पुरानी चली आ रही परंपरा को निभाने मात्र के कारण ऐसा करते आ रहें और इसके विकल्पों पर विचार नहीं कर रहें हैं जिससे पर्यावरण सहित जंगलों को हम नष्ट करने का काम कर रहें हैं जबकि यदि हम चाहें तो साल वृक्ष की छोटी शाखाएं बांस की लकड़ियों में बांधकर भी परंपरा निभा सकते हैं जिससे परंपरा भी बनी रहेगी और जंगलों की सुरक्षा भी हो सकेगी।
आदिवासी समाज के
लोगों से अपील

आदिम जाति सेवा सहकारी समिति के अध्यक्ष विजय सिंह ने आदिवासी समाज के लोगों से अपील करते हुए कहा कि अब वह समय आ गया है जब हम बांस को विकल्प के तौर पर मंडप के लिए उपयोग करें जिससे हमारे जंगल सुरक्षित रह सकें। आज हम जब वृक्षों को जंगलों में लगा नहीं रहे हैं तो उन्हें काटने का अधिकार हमें कतई नहीं इसलिए सभी को इस हेतु सचेत रहना होगा तभी आगे हमारे और हमारे वंशजो का भविष्य सुरक्षित रह सकेगा। पर्यावरण की संरक्षा आदिवासी समाज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि हम स्वयं जंगलों के करीब और जंगलों के भीतर तक निवास कर रहें हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह परंपरा तत्काल से बंद हो जाएगी ऐसा नहीं है इसके लिए एक जागरूकता अभियान की जरूरत है और यह अभियान समाज के भीतर ही चलाने की जरूरत है यह सभी समाज की भी जिम्मेदारी है कि अब हम जंगलों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं सम्हालें। उनका यह भी कहना है कि समाज मे बैठकर इस विषय पर चिंतन की आवश्यक्ता है कि कैसे इसे एक अभियान बनाकर सफलता का अमली जामा पहनाया जा सके।
संकल्प लेने की आवश्यकता
न हम स्वयं वृक्षों को काटेंगे और न किसी को काटने देंगे ऐसा विचार ही जंगलों को बचाने के अभियान में हमारी सफलता होगी। उन्होंने वर्तमान में जंगलों में लग रही आग को लेकर भी बयान देते हुए कहा कि बड़ी विडंबना है यह कि जंगलों में आग लगा दी जा रही है और उसे बुझाने की जिम्मेदारी केवल वन विभाग मात्र की है यह हम सभी मानकर मौन और बिना प्रयास बैठे हैं। उन्होंने कहा कि जंगलों में आग न लगाई जाए इसका भी हमे ध्यान रखना है और यदि आग लगाई जा रही है तो आसपास के लोगों द्वारा समाज के लोगों द्वारा उसे बुझाने का काम किया जाना चाहिए वन विभाग के लोगों की मदद करनी चाहिए। जल संरक्षण को लेकर भी समाज को सोचना होगा और वर्तमान में भीषण गर्मी के दौरान जल का संरक्षण हमें करना चाहिए, जल को लेकर मितव्ययता अपनाने की जरूरत है और इसे बचाकर भविष्य के लिए सुरक्षित रखना होगा। जल जंगल जमीन हमारी अमिट पहचान है इसकी संरक्षा हमारी जिम्मेदारी है।


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