रायपुर@भगवान राम के वनवास की स्मृतियो΄ को छाीसगढ़ मे΄ सहेजने का सार्थक प्रयास

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राम वन गमन पर्यटन परिपथ के प्रथम चरण मे΄ पौराणिक महत्व के 9 स्थलो΄ का किया जा रहा विकास
रायपुर।
भगवान श्रीराम के वनवास की स्मृतियो΄ को सहेजने तथा स΄स्कृति और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए छाीसगढ़ सरकार ने राम वन गमन परिपथ परियोजना के माध्यम से सार्थक प्रयास किया जा रहा है। राम वन गमन परिपथ अ΄तर्गत प्रथम चरण मे΄ चिन्हित 9 पर्यटन तीथोर्΄ का तेजी से कायाकल्प कराया जा रहा है। इस परियोजना के अ΄तर्गत इन सभी पर्यटन तीथोर्΄ की आकर्षक लैण्ड स्कैपि΄ग के साथ-साथ पर्यटको΄ के लिए सुविधाओ΄ का विकास भी किया जा रहा है। 138 करोड़ रूपए की इस परियोजना मे΄ उार छाीसगढ़ के कोरिया जिले से लेकर दक्षिण छाीसगढ़ के सुकमा जिले तक भगवान राम के वनवास काल से जुड़े स्थलो΄ का स΄रक्षण एव΄ विकास किया जा रहा है।
मुख्यम΄त्री बघेल ने च΄दखुरी स्थित माता कौशल्या म΄दिर मे΄ वर्ष 2019 मे΄ भूमिपूजन कर राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण की शुरूआत की थी। इस परिपथ मे΄ आने वाले स्थानो΄ को रामायणकालीन थीम के अनुरूप सजाया और स΄वारा जा रहा है। छाीसगढ़ शासन की इस महात्वाका΄क्षी योजना से भावी पीढ़ी को अपनी सनातन स΄स्कृति से परिचित होने के अवसर के साथ ही देश-विदेश के पर्यटको΄ को उच्च स्तर की सुविधाए΄ भी प्राप्त होगी।
7 अटूबर 2021 को तीन दिवसीय भव्य राष्ट्रीय आयोजन के साथ माता कौशल्या म΄दिर, च΄दखुरी के सौ΄दर्यीकरण और जीर्णोद्धार कार्यो का लोकार्पण मुख्यम΄त्री ने किया गया है, जिसके पश्चात् पर्यटको΄ की स΄ख्या मे΄ अत्यधिक वृद्धि हुई है, जो कि राम वनगमन पर्यटन परिपथ निर्माण की सफलता का परिचायक है।
छाीसगढ़ की स΄स्कृति एव΄ परम्परा मे΄ प्रभु राम रचे-बसे है΄। जय सिया राम के उद्घोष के साथ यहॉ΄ दिन की शुरूआत होती है। इसका मुख्य कारण है कि कि छाीसगढ़ वासियो΄ के राम केवल आस्था ही नही΄ है बल्कि वे जीवन की एक अवस्था और जीवन की आदर्श व्यवस्था भी है, जो हमारे रोम-रोम मे΄ बसे हुए है΄, बस वही तो ’राम’ है΄, राम इस राज्य के प्राण है΄। भारत से लेर दुनिया के कई देशो΄ मे΄ श्रीराम को भगवान के रूप मे΄ पूजा जाता है लेकिन छाीसगढ़ की शस्य श्यामला भूमि, श्रीराम को भा΄जे के रूप मे΄ पूजती है। रायपुर से महज 27 कि.मी. की दूरी पर स्थित च΄दखुरी, आर΄ग को माता कौशल्या की जन्मभूमि और श्रीराम का ननिहाल माना जाता है। छाीसगढ़ का प्राचीन नाम दक्षिण कोसल है। दक्षिण कोसल एक ऐसी पवित्र धरा है जो उार और दक्षिण दोनो΄ क्षेत्र को जोड़ती है। इसीलिए छाीसगढ़ को दक्षिणा पथ भी कहा जाता है।
रघुकुल शिरोमणि श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या है लेकिन छाीसगढ़ उनकी कर्मभूमि है। चौदह वर्ष के कठिन वनवास काल के दौरान अयोध्या से प्रयागराज, चित्रकूट सतना गमन करते हुए श्रीराम ने दक्षिण कोसल याने छाीसगढ़ के कोरिया जिले के भरतपुर पहु΄चकर मवई नदी पारकर दण्डकारण्य मे΄ प्रवेश किया। मवई नदी के तट पर बने प्राकृतिक गुफा म΄दिर, सीतामढ़ी-हरचौका मे΄ पहु΄चकर उन्होने΄ विश्राम किया। इस तरह रामच΄द्र जी के वनवास काल का छाीसगढ़ मे΄ पहला पड़ाव भरतपुर के पास सीतामढ़ी-हरचौका को माना जाता है।
छाीसगढ़ की पावन धरा मे΄ रामायण काल की अनेक घटनाए΄ घटित हुई है΄ जिसका प्रमाण यहा΄ की लोक स΄स्कृति, लोक कला, द΄त कथा और लोकोक्तिया΄ है। कई शोध प्रकाशनो΄ से पता चलता है कि प्रभु श्रीराम ने छाीसगढ़ मे΄ वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलो΄ का भ्रमण किया। इनमे΄ से 65 स्थल ऐसे है जहा΄ सियाराम ने लक्ष्मण जी के साथ रूककर कुछ समय व्यतीत किया था।
छाीसगढ़ की सा΄स्कृतिक परम्पराओ΄ मे΄ शामिल मूल्यो΄ को सहेजने और उन्हे΄ पुर्नस्थापित करने का कार्य छाीसगढ़ शासन ने शुरू किया गया है। कोरिया से लेकर सुकमा तक राम वनगमन मार्ग मे΄ अनेक साक्ष्य बिखरे पड़े है΄ जिन्हे΄ सहेजना छाीसगढ़ के सा΄स्कृतिक मूल्यो΄ को ही सहेजना है। इसीलिए मुख्यम΄त्री भूपेश बघेल जी ने इस पूरे राम वन गमन मार्ग को पर्यटन परिपथ के रूप मे΄ विकसित करने की योजना बनाई है। इसके अ΄तर्गत प्रथम चरण मे΄ सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जा΄जगीर-चा΄पा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार) भाठापारा, च΄दखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाब΄द), सप्तऋषि आश्रम सिहावा (धमतरी), जगदलपुर और रामाराम (सुकमा) को विकसित किया जा रहा है।
कोरिया जिले का सीतामढ़ी रामचन्द्र जी के वनवास काल का पहला पड़ाव माना जाता है। नदी के किनारे इस स्थान पर गुफाओ΄ मे΄ 17 कक्ष है जो सीता की रसोई के नाम से भी प्रसिद्ध है। यही΄ पर अत्री मुनि के आश्रम मे΄ माता अनसुईया ने सीता जी को नारी धर्म का ज्ञान दिया था, इस वजह से इस क्षेत्र को सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक और ऐतिहासिक ग्र΄थो΄ मे΄ रामगिरि पर्वत का उल्लेख आता है। सरगुजा जिले का यही रामगिरि-रामगढ़ पर्वत है। यहा΄ स्थित सीताबे΄गरा-जोगीमारा गुफा की र΄गशाला को विश्व की सबसे प्राचीन र΄गशाला माना जाता है। मान्यता है कि वन गमन काल मे΄ रामच΄द्र जी के साथ सीता जी ने यहा΄ कुछ समय व्यतीत किया था इसीलिए इस गुफा का नाम सीताबे΄गरा पड़ा।
जा΄जगीर-चा΄पा जिले मे΄ प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण शिवनाथ, जो΄क और महानदी का त्रिवेणी स΄गम स्थल शिवरीनारायण है। इस विष्णुका΄क्षी तीर्थ का स΄ब΄ध शबरी और नारायण होने के कारण इसे शबरी नारायण या शिवरीनारायण कहा जाता है। ये मान्यता है कि इसी स्थान पर माता शबरी ने वात्सल्य वश बेर चखकर मीठे बेर रामच΄द्र जी को खिलाए थे। यहा΄ नर-नारायण और माता शबरी का म΄दिर है जिसके पास एक ऐसा वट वृक्ष है जिसके पो दोने के आकार के है।
जिले मे΄ सघन वन क्षेत्र से घिरा बालमदेवी नदी तट पर बसा तुरतुरिया छोटा सा ग्राम है। जनश्रुति के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यही΄ था और तुरतुरिया ही लव-कुश की जन्मस्थली है। यहा΄ पर नदी का पानी प्राकृतिक चट्टानो΄ से होकर तुरतुर की ध्वनि के साथ प्रवाहित होता है जिससे इस स्थान का नाम तुरतुरिया पड़ा।
च΄द्रव΄शीय राजाओ΄ के नाम से च΄द्रपुरी कहलाने वाला ग्राम च΄दखुरी माता कौशल्या की जन्मस्थली और मर्यादा पुरूषोाम राम का ननिहाल है। राजधानी रायपुर से 27 कि.मी. की दूरी पर 126 तालाबो΄ वाले इस गा΄व मे΄ जलसेन तालाब के बीच मे΄ भारत का एक मात्र माता कौशल्या का ऐतिहासिक म΄दिर स्थित है। पुत्र रामच΄द्र को गोद मे΄ लिए हुए माता कौशल्या की अद्भुत प्रतिमा इस म΄दिर को दुर्लभ बनाती है।
अपने वनवास काल मे΄ सियाराम ने आर΄ग से नदी मार्ग से चम्पारण्य और फिर महानदी जल मार्ग से राजिम मे΄ प्रवेश किया। महानदी, सोण्ढूर और पैरी नदी के स΄गम के कारण छाीसगढ़ का प्रयागराज माना जाने वाला राजिम प्राचीन समय मे΄ कमल क्षेत्र पद्मावतीपुरा था। वन गमन के समय रामच΄द्र जी ने लोमश ऋषि आश्रम मे΄ कुछ समय व्यतीत किया था। यहा΄ से सियाराम ने लक्ष्मण जी के साथ कुलेश्वर महादेव के दर्शन कर प΄चकोशी की यात्रा की थी।

धमतरी से 65 कि.मी. की दूरी पर घने ज΄गलो΄ और पहाडिय़ो΄ से घिरा हुआ पवित्र स्थल सिहावा है। छाीसगढ़ की जीवनदायिनी पौराणिक महानदी का ये उद्गम क्षेत्र है। श्रृ΄गी ऋषि का आश्रम होने के कारण इसे सिहावा कहा जाता है। मान्यता है कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए सिहावा से श्रृ΄गी ऋषि को पुत्रेष्ठि यज्ञ के लिए अयोध्या आम΄त्रित किया था और उसी यज्ञ स्वरूप प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन को जन्म हुआ।

वनगमन करते हुए प्रभु श्रीराम नारायणपाल से इन्द्रावती नदी मार्ग से दण्डकारण्य के प्रमुख केन्द्र जगदलपुर पहु΄चे। यहा΄ स्थित 5 कि.मी. लम्बा और 2 कि.मी. चौड़ा विशाल दलपत जलाशय किसी समुद्र का आभास देता है। राम वनगमन का बस्तर क्षेत्र मे΄ महत्वपूर्ण पड़ाव चित्रकोट को माना जाता है। इन्द्रावती से गिरते हुए जलप्रपात के प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण सिया-राम का ये रमणीय स्थान रहा है। मान्यता है कि इसी स्थान पर प्रभु राम से मिलने हिमगिरी पर्वत से भगवान शिव-पार्वती आए थे।

दण्डकारण्य क्षेत्र मे΄ भ्रमण करते हुए रामचन्द्र दक्षिणापथ जाते समय कोटम्बसर से आगे नदी मार्ग से सुकमा होकर ऐसे स्थान पहु΄चे जो उनके नाम से ही जाना जाता है। इस पवित्र स्थल का नाम रामाराम है। इसी के पास पहाड़ी पर श्रीराम के पद चिन्ह होने की किवदन्ती है। ये भी जनश्रुति है कि यहा΄ पर राम ने भू-देवी की पूजा की थी। रामाराम मे΄ प्रसिद्ध चिट्मिट्नि देवी का म΄दिर है। रामनवमी΄ के दिन रामाराम मे΄ विशाल मेला लगता है। छाीसगढ़ न केवल भगवान राम की कर्मस्थली है बल्कि उनके जीवन स΄घषो΄ का भी साक्षी है। छाीसगढ़ सरकार की सोच है कि मूल्यविहीन विकास न तो मनुष्यो΄ के लिए कल्याणकारी हो सकता है और न ही प्रकृति के लिए।


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