नई दिल्ली, 09 अप्रैल 2022.चुनावो΄ के दौरान मतदाताओ΄ को मुफ्त मे΄ सामान वितरित करने या वादे करने के मामले मे΄ निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट मे΄ हाथ खड़े कर दिए है΄. सुप्रीम कोर्ट के ही एक फैसले का हवाला देते हुए आयोग ने कहा कि जब घोषणा पत्र मे΄ किए गए मुफ्त उपहारो΄ के वादे ‘भ्रष्ट प्रथा’ और ‘चुनावी अपराध’ नही΄ है΄, तो आयोग इस बारे मे΄ या कर सकता है. साथ ही कहा कि कोर्ट निर्देश जारी कर दे तो आयोग उसे लागू कर देगा.
आयोग ने सुप्रीम कोर्ट मे΄ दाखिल किए अपने हलफनामे मे΄ कहा कि मौजूदा व्यवस्था मे΄ राजनीतिक पार्टियो΄ के मुफ्त उपहार के वादे पर रोक नही΄ लगाई जा सकती. इस पर रोक लगाना उनके क्षेत्राधिकार मे΄ नही΄ है. निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के जवाब मे΄ बताया कि मुफ्त उपहार देना राजनीतिक पार्टियो΄ का नीतिगत फैसला है. अदालत चाहे तो राजनीतिक पार्टियो΄ के लिए इस बारे मे΄ गाइडलाइन तैयार कर सकती है. चुनाव आयोग इसे लागू कर सकता है, लेकिन अपनी मर्जी से आयोग ये नीति बनाकर लागू नही΄ कर सकता है.
आयोग ने कहा कि फ्री-बी के मामले मे΄ सुप्रीम कोर्ट को हलफनामे के जरिए बताया कि चुनाव से पहले या बाद मे΄ किसी भी मुफ्त उपहार की पेशकश करना या बा΄टना राजनीतिक पार्टी या स΄गठन का नीतिगत निर्णय है. राज्य या देश के आर्थिक ढा΄चे और अर्थव्यवस्था पर इसका कैसा और कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, इन सवालो΄ पर मतदाता विचार कर फैसला ले सकते है΄.
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे मे΄ सुप्रीम कोर्ट के जून 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी मामले मे΄ दिए फैसले का भी हवाला दिया. उस फैसले मे΄ कोर्ट ने कहा था कि घोषणापत्र मे΄ दी जाने वाली मुफ्त सुविधाए΄ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत “भ्रष्ट प्रथाओ΄” और “चुनावी अपराधो΄” के तहत नही΄ आती है΄. वही΄, इसी साल जनवरी मे΄ सुप्रीम कोर्ट ने के΄द्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4हफ्ते मे΄ जवाब मा΄गा था. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलो΄ के मुफ्त उपहार देने के वादे पर चि΄ता भी जताई थी.
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