बैकुण्ठपुर@पत्रकार रवि सिंह एफआईआर मामले में माननीय उच्च न्यायालय से मिली जमानत

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  • वाट्सएप चैट के आधार पर खबर प्रकाशित किये जाने को लेकर दर्ज की गई थी एफआईआर।
  • जिला एवम सत्र न्यायालय से अग्रिम जमानत हो चुकी थी खारिज।
  • माननीय उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीश ने दी अग्रिम जमानत।
  • द्वेषवश दर्ज की गई थी एफआईआर, पुलिस के ही कुछ कर्मियों का था हाथ।


-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 05 अप्रैल 2022 (घटती-घटना)। बहुचर्चित पत्रकार पर एफआईआर मामले में पत्रकार को माननीय उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत मिल चुकी है। कोरिया जिले के घटती घटना अखबार के जिला ब्यूरो प्रमुख रवि रंजन सिंह पर एक खबर प्रकाशन को लेकर एफआईआर दर्ज की गई थी जो की एक वाट्सएप चैट के आधार पर प्रकाशित खबर थी जिसमें कुछ चैट ऐसे थे जिन्हें पत्रकार ने प्रकाशित करना उचित माना और सभी के सामने खासकर एक समुदाय के विरुद्ध एक वाट्सएप समूह में चल रही वार्तालाप से वह समुदाय अवगत हो सके इसलिए पत्रकार ने समाचार का प्रकाशन किया।
पत्रकार के समाचार प्रकाशन को कुछ पुलिसकर्मियों ने अपने लिए पत्रकार के विरुद्ध कार्यवाही का बेहतर अवसर माना क्योंकि पत्रकार द्वारा लगातार उनकी गलत करतूतों का समाचार प्रकाशित किया जा रहा था और जिससे वह पुलिसकर्मी परेशान थे और पत्रकार पर प्रहार करना चाहते थे इसलिए उन्होंने खबर के आधार पर एक ऐसी एफआईआर दर्ज कर दी जिसमें प्रार्थी भी खुद एक पुलिसकर्मी को ही बना दिया गया और पत्रकार के विरुद्ध सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने सहित एसटी एसी एक्ट के तहत मुकदमा आजाक थाना बैकुंठपुर में दर्ज कर लिया गया और पत्रकार की गिरफ्तारी के लिए एडिचोटी का जोर भी लगा दिया था। वैसे पूरे मामले में पत्रकार पहले जिला एवम सत्र न्यायालय में अपने अधिवक्ता के माध्यम से अग्रिम जमानत की अर्जी प्रस्तुत कर सका जो कि खारिज हो गया लेकिन बाद में अधिवक्ता के माध्यम से ही उसे माननीय उच्च न्यायालय से अग्रिम जमानत मिल गई। माननीय उच्च न्यायालय ने कहा की अपीलार्थी एक पत्रकार हैं और कथित सामग्री उनके द्वारा वाट्सएप में प्राप्त की गई थी चूंकि सामग्री थी आपत्तिजनक और वह भी कथित बातचीत दो पुलिस अधिकारियों के बीच, अपीलकर्ता, एक पत्रकार होने के कारण, इस संबंध में जांच की मांग करते हुए समाचार प्रकाशित किया। वह आगे यह प्रस्तुत करता है कि अपीलकर्ता स्वयं कथित के लेखक नहीं हैं आपत्तिजनक सामग्री लेकिन जब उन्हें सामग्री के बारे में पता चला, उन्होंने खुद जांच की मांग की, इसलिए प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है एससी/एसटी एक्ट के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ अपील अनुमति दी जा सकती है और अपीलकर्ता को अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
यह है मामला

पत्रकार के विरुद्ध जिस मामले में एफआईआर दर्ज की गई थी उसका सार कुछ यूं था कि पत्रकार ने एक वाट्सएप समूह जो कि मिडीया जंक्शन के नाम से संचालित था जिसमें वह स्वयं सहित कई पुलिसकर्मी व कई पत्रकार व जनप्रतिनिधियों सहित आम लोग भी सदस्य थे में दो पुलिसकर्मियों के मोबिलिटी नम्बरों की वाट्सएप चैट वायरल की गई थी जिसमें यह उल्लेख था कि किस तरह जिले के दो पुकिसकर्मियों द्वारा अपने ही विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों खासकर एक समुदाय विशेष के अधिकारियों को लेकर क्या धारणा रखते हैं और क्या क्या अपशब्द लिखते हैं। पत्रकार को लगा कि मामला समुदाय विशेष सहित उन पुलिस अधिकारियों के सज्ञान में आना चाहिए जिनके लिए यह टिपण्णी की गई है इसलिए उसने खबर का प्रकाशन वाट्सएप चैट के आधार पर कर दिया। खबर प्रकाशन के बाद समुदाय विशेष हरकत में आया और उन्होंने पुलिस को कार्यवाही के लिए ज्ञापन भी दिया जो कि उनके ऊपर कार्यवाही की मांग की गई थी, जिनके द्वारा चैट में वार्तालाप किया गया था लेकिन ज्ञापन सौंपने पहुंचे समुदाय विशेष के लोगों को पुलिस ने यह समझाइश दी कि आप पत्रकार पर कार्यवाही की मांग का ज्ञापन दें, लेकिन जब ऐसा समुदाय विशेष के लोगों ने नहीं किया तो खिन्न होकर पुलिस ने खुद एक पुलिसकर्मी को आगे कर दिया और एफआईआर दर्ज कर ली पत्रकार के विरुद्ध जो कि लगातार पुलिस की गलतियों को प्रकाशित करता चला आ रहा था। अपनी खुन्नस निकालने पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर पूरा प्रयास किया कि पत्रकार को गिरफ्तार कर वाट्सएप समूह का एडमिन घोषित कर उसके ऊपर कार्यवाही कर उसे जेल भेज दिया जाय जबकि पुलिस को असल मे वाट्सअप समूह के एडमिन तक जाना था जिसका वह समूह बनाया हुआ था। पुलिस ने वाट्सएप समूह की जांच करने की बजाए पत्रकार को हाशिये पर लेने का प्रयास किया जिसमें वह सफल नहीं हो सकी लेकिन अब वह अन्य हथकंडों के साथ पत्रकार को परेशान कर सकती है यह पत्रकार को अंदेशा है।
पत्रकार ने अपनी
सुरक्षा की मांग की

पत्रकार ने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, डीजीपी, आईजी, पुलिस अधीक्षक कोरिया से अपनी सुरक्षा की मांग कुछ पुलिसकर्मियों से ही कि है और एक आवेदन देकर उल्लेख किया है कि उसकी जान भी ली जा सकती है या उसे अन्य किसी मामले में फंसाया जा सकता है। अब पत्रकार को पुलिस कैसी सुरक्षा प्रदान करती है जबकि वह पुलिस से ही पुलिस के भय से सुरक्षा की मांग कर रहा है यह आने वाला वक्त बताएगा। वैसे सरकार सहित पुलिस विभाग के लिए या चुनौती भी है कि वह पत्रकार को कैसे और किस तरह सुरक्षा का विश्वास दिला पाती है। वैसे पत्रकार के साथ अब किसी भी घटना के घटित होने की जिम्मेदारी उसने कुछ पुकिसकर्मीयों पर ही लगाई है देखते हैं कैसे वह सुरक्षित रह पाता है।


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