बैकुण्ठपुर@पत्रकार का पुलिस अधीक्षक से निवेदन,जल्द कराएं चैट की जांच,ताकि लगे आरोप से उठ सके पर्दा

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क्या पुलिस ने प्राथमिकी सीडीआर निकालने व खबरों के सूत्र जानने के लिए दर्ज किया ?
पुलिस के लोग पत्रकार के संपर्क को राजनीतिक लोगों से कर रहे साझा-सूत्र

  • पत्रकार के कॉल डिटेल निकलने की जानकारी कैसे कार्यालय से आ रही बाहर?
  • क्या राजनीति लोगों के इशारे पर निकाला गया सीडीआर? तकि पता कर सके कौन पत्रकार को देता है खबर?
  • सीडीआर निकलने के बाद राजनीतिक व कुछ प्रशासनिक अधिकारियों तक कैसे पहुंची बात?
  • क्या सीडीआर निकालकर उसके सूत्र जानना चाहती थी? क्या सूत्र जानने का अधिकार है पुलिस को?
  • नवपदस्थ पुलिस अधीक्षक को क्या कुछ पुलिस विभाग के ही लोगों ने किया गुमराह?


-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 03 अप्रैल 2022 (घटती-घटना)। जैसे-जैसे पत्रकार रवि सिंह मामले में समय बीत रहा है वैसे वैसे नई जानकारियां सामने आ रही हैं अब सूत्रों की माने तो एक नई जानकारी यह भी आ रही है कि पुलिस ने पत्रकार के सीडीआर को निकाला है वह जानकारी पुलिस के पास होनी थी पर यह जानकारी धीरे-धीरे सार्वजानिक होने लगी है, क्या पुलिस ने पत्रकार के सूत्र को जानने के लिए मामला पंजीबद्ध कर सीडीआर निकाला है ताकि राजनीतिक लोगों तक यह पता चल सके कि किस किस के संपर्क में है और कौन-कौन उसे राजनीतिक से लेकर पुलिस विभाग की खबरें देता है? ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस के पास यह अधिकार है कि किसी पत्रकार की जानकारी सार्वजानिक करें आखिर उसके कांटेक्ट की जानकारी कैसे बाहर आ रही है?
ज्ञात हो की दैनिक समाचार के जिला प्रतिनिधि पर एक समाचार को लेकर गंभीर धाराओं के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी मामले में अब यह स्पस्ट होता नजर आ रहा है कि जिले के ही कुछ पुलिसकर्मियों ने नव पदस्थ पुलिस अधीक्षक को गुमराह किया और लगातार अपने विरुद्ध छप रही अपनी ही कारस्तानियों की खबरों से परेशान रहने की वजह से पत्रकार पर समाचार प्रकाशन से क्षुब्ध हो कर ऐसा षड्यंत्र रच की पुलिस स्वयं अधिकारियो के दबाव में प्रार्थी बनकर पत्रकार पर गंभीर धाराओं के तहत मामला पंजीबद्ध कर दिया जो पुलिस के लिए ही गले की फास बन गई हैं, जबकि जिस मामले में अपराध पंजीबद्ध किया गया उस मामले में पत्रकार ने किसी भी समाज या किसी समुदाय विशेष को लेकर स्वयं ऐसी कोई टिप्पणी अपने समाचार पत्र में नहीं कि थी जिससे अपराध जैसा कृत्य समाचार को माना जाए। पत्रकार ने वाट्सएप समूह में वायरल हुए चैट में लिखे बातो व किए गए दाबो को सब के सामने रखा था, जब की उस वाट्सएप समूह में जिले के अन्य पत्रकार सहित जिले के राजनीतिक दलों व कर्मचारी समूह के लोगों की भी उपस्थिति थी में चैट जारी हुआ था, उस जारी चैट में आरोप कभी बड़े थे और जिस नम्बर से चैट जारी हुआ था उसका दावा था की चैट में किया गया बात चित पुलिस कर्मियों के बिच का है, उस वायरल चैट के आधार पर खबर बनाया जो कि पत्रकार को लगा कि पुलिस कर्मि एक समुदाय व अपने अधिकारी के लिए गलत सोच रखता है, टिपण्णी करने वाला अपराधी हो सकता था पर उसकी जगह उक्त मामले को सब के सामने वाला दोषी हो गया, जब की दोषियों के विरुद्ध जाँच की मांग करने वाले पत्रकार को ही अपराधी बना दिया गया, पत्रकार ने जो कुछ वाट्सएप समूह में जारी था उसको समाचार से जाहिर किया जिसका ज्ञान समाज को हुआ और समाज कार्यवाही की मांग करने लगा।
पुलिस का प्रार्थी भी कौन जिसपर खुद वायरल चैट में शामिल होने का किया गया था दावा
पूरे मामले में कोरिया जिले के होनहार पुलिस ने प्रार्थी भी उसे बनाया जिसके ऊपर पुलिस कर्मियों का चैट वायरल करने का दावा उस कथित चैट में किया गया था, उस कथित चैट को वायरल करने वाले ने दावा करते हुए कहा था कि वह चैट थाना के कर्मचारी से मिला है, अब ऐसे में सवाल ये उठता है कि वायरल चैट में जिन पुलिसकर्मियों का नंबर दिख रहा था उसी में से एक पुलिसकर्मियों को प्रार्थी बनाया गया है जिसके आधार पर पत्रकार पर एफआईआर दर्ज की गई है, सवाल यह भी है कि जहां एक पुलिसकर्मी (पुलिस अधीक्षक के स्टेनो) ने एक पुलिसकर्मी पर ही संदेह व्यक्त करते हुए अपने पुलिस अधीक्षक को शिकयात कर कहा था की उक्त पुकिसकर्मी मुझे फंसाना चाहता है तो वहीं एक पुलिसकर्मी ने पत्रकार को उस चैट को बनाने का आरोप लगाकर एफआईआर करा दिया, दो पुलिसकर्मियों का अलग-अलग आरोप समझ के परे है पूरे मामले में एक पुलिसकर्मी के आरोप पर अपराध पंजीबद्ध नहीं हुआ और वहीं दूसरे पुलिसकर्मी के आरोप पर अपराध पंजीबद्ध कर दिया गया। चैट से संबंधित पुलिसकर्मी को ही प्रार्थी बनाया गया तो वही शामिल पुलिसकर्मी को जांच में शामिल किया गया, यह पुलिस की कैसे रणनीति थी किस रणनीति के तहत पुलिस ने काम किया, यह तो पुलिस ही जाने, पुलिस ने सभी को अभी तक यही कहा है कि चैट फर्जी है, पर पुलिस ने यह नहीं बताया कि हमने इसकी जांच करा ली है यह चैट जांच में फर्जी पाया गया तो चैट की फर्जी होने को लेकर पुलिस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अभी तक क्यों नहीं बताया है, कुल मिलाकर पुलिस ने पत्रकार की सच्चाई लिखने की वजह से पत्रकार को फंसाने के षड्यंत्र रचा और खुद एक पुकिसकर्मी को ही प्रार्थी बना डाला। वैसे पूरे मामले में कोरिया पुलिस के होनहार पुलिसकर्मियों ने नियम कायदों को भी ताक पर रख दिया और यह साबित कर दिया कि वह अपने अधिकारों का गलत उपयोग करने से भी परहेज नहीं करने वाले चाहे उसके लिए उन्हें किसी की जान लेनी पड़े या किसी का जीवन बर्बाद करना पड़ें।
समाज ने कार्यवाही की मांग उसके विरुद्ध की जिसने टिपण्णी की थी
समाज ने कार्यवाही उसके विरुद्ध मांगी जिसने समाज के विरुद्ध टिपण्णी की जबकि पुलिस ने समाज को ही उलझा कर रख दिया और पत्रकार के विरुद्ध समाज से नामजद प्राथमिकी दर्ज करने कह दिया, जब समाज पत्रकार को गलत न मानते हुए गलत लिखने वाले के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करने लगा तब पुलिस ने अपने ही विभाग से एक पुकिसकर्मी को प्रार्थी बनाकर एफआईआर दर्ज कर दी और पत्रकार को गंभीर आरोपी घोषित कर दिया। पुलिस की पूरी कार्यवाही में एक जो विशेष चीज देखने को मिली वह यह रही कि पुलिस ने न तो जांच करना उचित समझा और न ही उसने पत्रकार को नोटिश भेजकर जवाब मांगा, सीधे पत्रकार को आदतन अपराधी की तरह पुलिस ढूढने लगी और लगातार छापेमारी करती रही, जबकि नियमानुसार पुलिस पहले नोटिश भेजती और उपस्थित नहीं होने पर पत्रकार को ढूंढती, खैर कोरिया पुलिस है कुछ भी कर सकती है इस कई उदहरण देखा जा चूका है।
क्या सूत्र जानने के लिए पूरा षड्यंत्र रचा गया
पूरे मामले में जैसा कि आभास हो रहा है कि पुलिस ने पत्रकार पर एफआईआर केवल कुछ ऐसे पुलिसकर्मियों के कहने पर दर्ज की जो लगातार पत्रकार की खबरों में बने रहते थे और अपनी कार्यप्रणाली को लेकर जो कि गलत थीं, उन्ही के द्वारा अपने अधिकारी को गुमरहा कर पत्रकार पर केवल एफआईआर दर्ज कराई, क्योंकि वह जानना चाहते थे कि पत्रकार के पास उनकी गलतियों से संबंधित जानकारियां कहाँ से जा रहीं हैं जिससे पत्रकार खबर को प्रकाशित कर रहा है। पुलिसकर्मियों के चहेते अधिकारी उन्हें बचाने के लिए मांमले को पत्रकार पर डाल दिया जैसा की प्रतीत हो रहा है। जैसा कि सूत्रों से जानकारी मिल रही है की पत्रकार का सीडीआर निकालकर पुलिस यह जानना चाह रही थी कि आखिर पुलिस विभाग से संबंधित जानकारियां खास कर दो पुलिसकर्मियों की जानकारियां पत्रकार को कैसे मिल रहीं हैं जो कि उनकी गलतियों से जुडी हुई हैं जिससे पत्रकार खबर बना रहा है। पुलिस ने केवल उन्ही दो पुकिसकर्मियों की गलतियों को छिपाने और उनकी कारस्तानियों को बताने वाले सूत्र जानने के लिए पूरे एक समुदाय को भी उलझा दिया, जिसे बाद में यह आभास हो गया कि पुलिस अपराधी को ढूंढने की बजाए उसे ढूंढ रही है जो खुद एक अपराध को उजागर कर रहा अपने समाचार से उन कर्मचारियों की सोच को रखा जो कथित चैट में लिखा था।
क्या सीडीआर निकालकर सार्वजनिक करना निजता का हनन नहीं?
सूत्रों की मामने तो पूरे मामले में पुलिस पत्रकार से अपना द्वेष निकालने पत्रकार की सीडीआर निकालकर उसे साझा कर रही है और वह भी बीते एक वर्षों का सीडीआर निकाला गया है, विशेष सूत्रों से मिल रही जानकरी में एक बात और सामने आ रही है कि पुलिस पत्रकार की सीडीआर में मिले नंबर कुछ लोगों से संपर्क भी कर चुकी है और उनमे कुछ राजनीतिक व कुछ अन्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारी भी सम्मिलित हैं जिनसे सीडीआर की जानकारी दी गई है और उन्हें यह बता चुकी है कि पत्रकार किन से किन से संपर्क में रहा करता था और किस से उसकी प्रतिदिन बात हुआ करती थी। पर सवाल यह है की पूरे मामले में पत्रकार को केवल इसलिए खबर को माध्यम मान कर अपराधी बनाया गया ताकि सीडीआर की जांच हो सके और उसके खबरों के सूत्रों की जानकारी मिल सके। लेकिन इस पूरे मामले में जो सबसे बड़ा सवाल उठता है कि क्या किसी पत्रकार का सीडीआर निकालकर या किसी भी व्यक्ति का सीडीआर निकालकर सार्वजनिक करना अन्य किसी को बतना सही व न्यायसंगत है। पत्रकार क्या इतना बड़ा अपराधी है जो उसकी सीडीआर की जांच भी हो रही है और उसके संपर्क में रहने वालों को भी अवगत कराया जा रहा है कि आप उसके संपर्क में थे। पूरे मामले में निजता के हनन का विषय जरूर खड़ा होता है जो शायद न्याय के मूल सिद्धांत के विरुद्ध कार्य करने जैसा है पुलिस की तरफ से। साथ की अनुच्छेद 19 व अनुच्छेद 21 में इस का उलघन भी है।
डीके सोनी,अधिवक्ता अम्बिकापुर
अधिवक्ता से सवाल किया की पुलिस कैसे किसी व्यक्ति की कॉल डिटेल निकाल सकती है और क्या पुलिस अपनी मर्जी से कॉल डिटेल निकाल सकती है? जिस पर अधिवक्ता ने का किसी भी व्यक्ति का कॉल विवरण उसकी निजी जानकारी है जिससे किसी दूसरे व्यक्ति के साथ साँझा करना जुर्म है पर कुछ ऐसे भी कानून है जिसमे पुलिस या कोर्ट किसी व्यक्ति की कॉल डिटेल निकाल सकती है। यदि पुलिस किसी व्यक्ति या नंबर का कॉल डीटेल देखना चाहती है तो वो उस नंबर के टेलीकॉम कंपनी को एक लेटर भेजेगा और उस लेटर मे पुलिस अधिकारी ये भी जानकारी देगा की उसे वो कॉल डीटेल क्यू चाहिए, यदि कोई बड़ा केस नहीं है तो पुलिस अधिकारी कॉल डीटेल नहीं निकलवा सकते। संविधान के अनुच्छेद 21 निजता का उल्लेख किया गया है यदि इस का पालन खुद कानून के जानकार नहीं कर रहे हैं तो यह नियम विरुद्ध है साथ ही कानूनी प्रक्रिया के खिलाफ है किसी का भी सीडीआर निकाल कर उसे सार्वजनिक नहीं कर सकते ना ही किसी को बता सकते हैं। यदि ऐसा किया जा रहा है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। पुलिस कब हमारे कॉल डिटेल्स निकाल सकती है? जब कोई संगीन जुर्म हुआ हो, जैसे बहुत बड़ी चोरी डकैती, किसी का मर्डर, साइबर से जुड़े मामले में या फिर आतंगवादी गतिविधियों में जब पुलिस को शक हो की आप उनमें शामिल हो और आपकी कॉल डिटेल से कोई सबूत मिल सकता है उस स्थिति में आपकी कॉल डिटेल निकल सकती है।
कोरिया पुलिस अधीक्षक से निवेदन
मैं कोरिया पुलिस अधीक्षक से निवेदन करना चाहता हूं जिस मामले में मुझे आरोपी बनाया गया है इस मामले की जांच जल्द करें और जांच में यदि मेरी आवश्यकता होती है तो मैं सहयोग करने के लिए तैयार हूँ, पर यदि कथित चैट से मेरा कोई वास्ता होना पाया जाता है तो मुझ पर कार्यवाही करें मैं स्वयं आकर अपनी गिरफ्तारी दूंगा मेरी गिरफ्तारी के लिए आपको अपनी पुलिस को नहीं भेजना पड़ेगा यह मेरा आपसे वादा है, पर कथित चैट से मेरा कोई संबंध होना नहीं पाया जाता है तो उन पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही की जाए जिन्होंने पूरे पुलिस विभाग को गुमराह किया है और मेरे विरुद्ध षडयंत्र पूर्वक कार्यवाही करवाई है।


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