लोकतंत्र का चौथा स्तंभ असुरक्षित क्यों? क्या सुरक्षा की जिम्मेदारी वह लोग लेंगे जो इस अधिकारों का आनंद लेते हैं?
- क्या शासन प्रशासन सहित जनप्रतिनिधियों की कमियों को प्रकाशित करना हो चुका है अपराध?
- क्या शासन प्रशासन सहित जनप्रतिनिधियों में ‘आलोचना’ सहने की क्षमता नहीं?
- अनुच्छेद19 को संविधान में रीढ़ का हड्डी कहा गया है जो अभिव्यक्ति को स्वतंत्रता का अधिकार देता है।
- क्या अभिव्यक्ति की आजादी का भी अधिकार छिना जा रहा है?
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर 25 मार्च 2022 (घटती-घटना)। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा आधार स्तंभ माना गया है लेकिन चौथे स्तंभ की परेशानी भी सबसे अधिक है क्योंकि इसे अंतिम स्तंभ के तौर पर भी देखा जाता है जबकि सही मायने में पत्रकारिता ही एक ऐसा स्तंभ है जो पहले, दूसरे, तीसरे सभी पर नजर रखता है और उनकी कमियों को उनकी अच्छाइयों को सबके सामने रखता है ताकि चारों स्तंभ के नीचे रह रही जनता सभी गतिविधियों से अवगत हो सके, पर चौथा स्तंभ तब तक ही आज के समय मे सुरक्षित है जब तक वह किसी की भी कमियों को उजागर न करे, जैसे ही कमियों को पत्रकार उजागर करना शुरू करता है तो उसकी सुरक्षा पर सेंध लग जाता है और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर यह एक बड़ा सवाल है? पत्रकारिता करते समय यदि पुलिस विभाग की कमियों को दिखाएं तो पुलिस विभाग पत्रकार को परेशान करेगी, प्रशासन की कमियों को दिखाएं तो प्रशासन परेशान करेगा, शासन के कमियों को दिखाएं तो शासन की तरफ से परेशान किया जाएगा, यदि सत्ता की कमियों को दिखाए तो सत्तासीन परेशान करेंगे, लेकिन कोई भी स्तंभ लोकतंत्र का अपनी कमियों को दूर नहीं करेगा पत्रकार को दुश्मन समझेगा, अब ऐसे में सवाल यह है की पत्रकार क्या कमियों को दिखाना छोड़ दे? सिर्फ लोगों को अच्छाई ही परोसे अपने समाचारों में जो केवल बनावटी होगा और एक तरह से प्रायोजित होगा, वर्तमान में जिस तरह का माहौल पत्रकारों के प्रति शासन प्रशासन पुलिस विभाग एवम राजनीतिज्ञों का है उसको देखकर और समझकर तो अब बिल्कुल यही लगता है कि समाचारों में उद्घाटन और लोकार्पण सहित केवल वही खबरें अब पत्रकार केवल प्रकाशित करें जिससे सभी प्रसन्न रहें और किसी भी तरह से आलोचना से जुड़ी खबरें न पढ़ने को मिलें। क्या हमारा संविधान हमें यही हक़ देता है या शक्तिसाली लोग अपने स्वार्थ के लिए अभिव्यक्ति की आजादी छीन सके?
क्या पत्रकार झूठ लिख अपने आप को करे सुरक्षित
यदि पत्रकार केवल सकारात्मक खबरें और झूठी बनावटी खबरें ही प्रकाशित करता रहे तभी तक सुरक्षित है यह अब तय भी दिखने लगा है। अब तो घट रही घटनाओं अपराधों सहित किसी भी भ्रस्टाचार से जुड़ी खबरें प्रकाशित ही न कि जाएं यदि पत्रकार को सुरक्षित जीवन यापन करना है तो। पत्रकार निस्पक्षता के साथ पत्रकारिता करने की बजाए अब उसे एक आय अर्जित करने का जरिया बनाये तभी तक वह सुरक्षित है वह भी छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां मुख्यमंत्री ने स्वयं पत्रकार सुरक्षा की बात कह रखी है। पत्रकार को सच दिखाने और लिखने के अपने मूल कर्तव्य को भूलकर केवल और केवल चाटुकारिता से जुड़ी खबरें ही प्रकाशित करनी चाहिए यह भी तय दिखने लगा है। वर्तमान में रोजाना किसी न किसी समाचार पत्र में यह समाचार जरूर पढ़ने को मिल जाता है कि अमुक जगह अवैध कारोबार हो रहा है या अमुक जगह अपराधियों द्वारा अपराध किया जा रहा है लेकिन ऐसी खबरों पर शासन प्रशासन सहित पुलिस विभाग सज्ञान लेने की बजाए उसे रोकने की बजाए समाचार लिखने वाले पत्रकार को तलब करती है और उससे सूत्र पूछने के लिए की कैसे आपको सूचना मिली प्रताड़ित करती है या प्रलोभन देती है, प्रलोभन लेने पर पत्रकार को भले ही ऐसे ही जाने दिया जाए लेकिन जो पत्रकार सच के साथ जाने की राह पर अडिग रहता है उसको फिर डराया धमकाया जाता है या फिर उसपर मुकदमे ठोक दिए जाते हैं और उसके जीवन को आपराधिक बना दिया जाता है। ऐसी कई घटनाएं हैं जिसमें पत्रकारों को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया या फिर उनपर झूठे मुकदमे ठोक दिए गए।
विडंबना कहें या मजबूरी
विडंबना कहें या मजबूरी पत्रकार की जिस लेखनी को लगातार बुद्धजीवी पाठक पढ़कर उसकी हिम्मत उसके सच लिखने की क्षमता और आत्मिवश्वास को बढ़ावा देता है वही पत्रकार पर किसी आरोप को बेवजह मढ़ दिए जाने के बाद मौन हो जाता है और शांत हो जाता है क्यों? आज प्रदेश में लगातार पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार साथ ही उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाये जाने के मामले सामने आ रहें हैं जबकि पत्रकार कुछ गलत यदि कर रहा है तो वह यही गलती कर रहा है कि वह सच लिख रहा है ऐसे में अब यही लग रहा है कि सच लिखना अपराध है और यह अपराध अक्षम्य है। पत्रकारिता करना है तो सच को झूठ लिखना होगा और प्रलोभनों से खुद को लाभ से जोड़ना होगा यह भी तय नजर आने लगा है।
इंग्लिश का एक शब्द है मैनेज का वही होना पड़ेगा?
कुल मिलाकर इंग्लिश का शब्द मैनेज होना जैसे विचारों को अब पत्रकार को अपनी मानसिकता में बिठाना होगा और उसी अनुरूप कार्य करना होगा वरना बेवजह की कानूनी उलझनों में उसे फंसने से कोई नहीं रोक सकता वहीं उन अपराधों का अपराधी उसे बना दिया जाएगा जिनसे उसका पूरा जीवन व्यर्थ हो जाये। कुल मिलाकर देखा जाए तो भ्रस्टाचार से जुड़ी खबरों से दूरी जबतक पत्रकार बनाये रखना होगा और भ्रष्टाचार से खुद को जोड़ना होगा क्योंकि आज सिस्टम में भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार है और उसी का अनुपालन पत्रकार को करना होगा। जो सबसे अधिक भ्रष्ट है उसे सबसे ईमानदार बताना होगा और जो ईमानदार है उसे भ्रष्ट बताकर ही वह चैन से जी चुका है यही राज्य की कानून व्यवस्था का हाल है।
क्या अभिव्यक्ति की आजादी का भी अधिकार छीन लिया गया है
मानवाधिकारों के सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त ‘अभिव्यक्ति’ शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते हैं। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। विचारों का स्वतन्त्र प्रसारण ही इस स्वतन्त्रता का मुख्य उद्देश्य है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हे संप्रेषित कर सके। वही कार्य प्रेस द्वारा किया जा रहा है और उसपर भी रोक लगा दी जा रही है आवाज को दबा दिया जा रहा है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 देता है स्वतंत्रता का अधिकार
वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार का स्थान मूल अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। किसी विद्वान ने ठीक ही कहा है कि “स्वतन्त्रता ही जीवन है”, क्योंकि इस अधिकार के अभाव में मनुष्य के लिए अपने व्यक्तित्व का विकास करना संभव नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक में भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता सम्बन्धी विभिन्न अधिकार प्रदान किये गये हैं। ये चारों अनुच्छेद दैहिक स्वतन्त्रता के अधिकार पत्र-स्वरूप हैं। उपर्युक्त स्वतंत्रता मूल अधिकारों की आधार-स्तम्भ हैं। इनमें छह मूलभूत स्वतन्त्रताओं का स्थान सर्वप्रमुख है। अनुच्छेद 19 भारत के सभी नागरिकों को निम्नलिखित छह स्वतन्त्रताएँ प्रदान करता है, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता में किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना सम्मिलित है जिससे वह दूसरों तक उन्हें संप्रेषित कर सके। इस प्रकार इनमें संकेतों, अंकों, चिह्नों तथा ऐसी ही अन्य क्रियाओं द्वारा किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति सम्मिलित है। अनुच्छेद 19 में प्रयुक्त ‘अभिव्यक्ति’ शब्द इसके क्षेत्र को बहुत विस्तृत कर देता है। विचारों के व्यक्त करने के जितने भी माध्यम हैं वे अभिव्यक्ति, पदावली के अन्तर्गत आ जाते है। इस प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में प्रेस की स्वतन्त्रता भी सम्मिलित है। विचारों का स्वतन्त्र प्रसारण ही इस स्वतन्त्रता का मुख्य उद्देश्य है। यह भाषण द्वारा या समाचार-पत्रों द्वारा किया जा सकता है।