- माइक एक,माइक दो को पक्ष में लेकर चैट में शामिल पुलिसकर्मीयों ने रवि सिंह को फंसाने हुए सफल,निकाला द्वेष।
- पुलिस-राजनीतिक के के कुछ लोग लगातार खबरों से थे नाराज,फर्जी एफआईआर की मंशा हुआ साकार, झोंकी अपनी ताकत।
- एसपी भी फंसे झांसे में, नहीं समझ सके कर्मचारीयों की चाल।
- पुलिस से वायरल चैट की जांच से क्यों बचना चाह रही ? चैट को आखिर क्यों फर्जी मान बैठी है?
- कहीं चैट की बातें सही तो नहीं इसलिए चैट में शामिल कर्मचारी अपने अधिकारी को ही बरगला रहे?
-रवि सिंह-
बैकुंठपुर,15फ रवरी 2022(घटती-घटना)। छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में पत्रकार रवि सिंह पर जिस प्रकार द्वेष पूर्वक मामला पंजीबद्ध किया गया है इससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है, लोगों को पता था कि रवि सिंह से पुलिस के कुछ कर्मचारी वह सत्तापक्ष के कुछ लोग खबरों से क्षुब्ध थे और वह काफी समय से इंतजार में थे कि रवि सिंह पर कैसे काबू पाया जाए। उनकी यही कोशिश में उन्हें सफलता मिली और पुलिस के कुछ कर्मचारीयों के साथ सत्तापक्ष के लोगों के हस्तक्षेप पर उनकी मंशा पूरी हो गयी। यही वजह थी कि इस बार पुलिस कर्मचारी अपने आप को बचाने के लिए सत्ता पक्ष के लोगों को अपने पक्ष में करके नवपदस्थ पुलिस अधीक्षक को एडिशनल एसपी व डीएसपी के माध्यम से कन्वेंस करा कर पूरी रणनीति तैयार करते हुये मामला पंजीबद्ध कराया गया।
सूत्रों की माने तो एडिशनल एसपी के चहेते है प्रधान आरक्षक नवीन दत्त तिवारी व पटना थाना प्रभारी सौरव द्विवेदी जिसे क्षेत्र जानता है। भले ही पुलिस फर्जी एफआईआर दर्ज कर अपनी पीठ थपथपा रही है पर इस पूरे मामले से कोरिया जिले में प्रशासनिक कसावट के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की किरकिरी भी हो रही है। क्योकि अब सब जान रहे है कि पुलिस अपनी नाकामी और चैट मे पोल खुलने के बाद इसका पूरा ठिकरा पत्रकार के सिर में फोड़ रहे है। इस पूरे मामले में पुलिस खिसयानी बिल्ली खम्भा नोचे जैसे मुहावरे चरितार्थ होते दिख रहे है। मामले में बचाना और अपना द्वेश निकालने के नियत से रवि सिंह की लेखनी को कमजोर करने के लिए यह दाव खेला गया है ऐसा चर्चा है जो पूरी तरह द्वेष व राजनीति से भरा है। जिसे जिला मुख्यालय में हर आदमी जान रहा है पर पुलिस अधीक्षक ही समझ नहीं पाए क्योंकि वह जिले में नए-नए आए थे और वह पूरे मामले से अनभिज्ञ थे, यही वजह थी कि पुलिस अधीक्षक को भी माइक 1 व माइक 2 के माध्यम से पुलिस कर्मचारियों ने मोहरा बना दिया।
व्हाट्सएप चैट कांड प्रदेश के लिये पहेली
से कम नहीं
कोरिया जिले के व्हाट्सएप चैट कांड में पत्रकार के ऊपर मामला पंजीबद्ध कर जांच को दूसरे दिशा में पुलिस ले जाना चाह ली है। जिसमें चैट में शामिल भ्रष्ट पुलिसकर्मियों को बचाने की मंशा बना बैठी है क्योंकि 2 फरवरी से अब तक पुलिस यह चैट वायरल करने वाले तक पहुंचने में असफल रही है। जिन पुलिसकर्मीयों की बात चैट के माध्यम से बाहर आई है और उन्हीं पुलिसकर्मी के बीच का एक कर्मचारी इस पूरे चैट को फर्जी बता रहा है और उसे इस पूरे मामले से दूर रखकर खबर प्रकाशित करने वाले पर जांच की कार्यवाही सुनिश्चित की जा रही है। जबकि वायरल चैट में जो भी बातें की गयी थी वह पुलिसकर्मी उनसे पीड़ित की चर्चा थी। ना तो उस चैट में पत्रकार का कोई जिक्र था और न ही दूर-दूर तक इस चैट में ऐसा देखने को मिला था फिर भी पुलिस ने अपने लोकसेवक होने का धैर्य खोते हुये मामला पंजीबद्ध करके पूरे शहर को बता दिया की पुलिस अपने बुद्धी से नहीं द्वेश में काम करती है। आखिरकार वायरल चैट की जांच कराने से क्यों बच रही पुलिस यह बहुत बड़ा सवाल है।
पुलिस के अनुसार अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार ही है वैध बाकि सब अवैध
अधिमान्यता प्राप्त न मानकर पुलिस ने रवि सिंह को फर्जी पत्रकार मान एफआईआर दर्ज की है जिसे लेकर पूरे प्रदेश में बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार ही पत्रकारिता कर सकते है तो फिर जनसम्पर्क में सैकड़ो नाम क्यों शामिल है जिनका अधिमान्यता नहीं है। पुलिस के मंशा अनुरूप अधिमान्यता अप्राप्त अवैध है तो फिर अवैध पत्रकारों पर कार्यवाही क्यों नहीं की जा रही? जबकि जानकारों की माने तो किसी भी चैनल व अखबार का संपादक अपने लिये प्रतिनिधि रखता है जिसकी जानकारी नियुक्ति पत्र के तौर पर जनसम्पर्क में दी जाती है। सूत्रों के अनुसार मामला पंजीबद्ध करने में पुलिस अधिमान्यता प्राप्त पत्रकारों से चर्चा कर मामला पंजीबद्ध किया था। आखिर पूरे मामले में सवाल उठऩा लाजमी है कि अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार ही सही होते हैं बाकी सब अवैध है तो जब सारे पत्रकार अवैध हैं तो फिर खबरें क्यों प्रकाशित होती है? फिर पुलिस अपना पीआरओ ग्रुप में 200 से अधिक लोगों को क्यों शामिल कर कर रखा है? पुलिस खुद व्हाट्सएप ग्रुप में पुलिस अपने मामले को पत्रकारों के लिए खबर डालती हैं तो फिर वह कैसे वैध? हांलाकि जवाब यही है आप शासन व पुलिस को अच्छी न लगने वाली खबर प्रकाशित न करें ये पुलिस कभी भी कोई फर्जी एफआईआर करने से परहेज नहीं करेगी, अवैध बोलकर कभी भी आपको बलि का बकरा बना सकती है।
पूरे मामले में पत्रकार रवि सिंह ने पुलिस महानिरीक्षक को पत्र देकर लगायी न्याय की गुहार
फर्जी एफआईआर मामले में पत्रकार ने पुलिस महानिरीक्षक कर्यालय में उपस्थित होकर आवेदन दिया जिसमें उन्होंने अपने साथ हुयी पूरी घटनाक्रम से पुलिस महानिरीक्षक को अवगत कराया और इस पूरे मामले में निष्पक्ष जांच करते हुये फर्जी एफआईआर को विलोपित करने की गुहार लगायी है। आवेदन में पुलिस महानिदेशक से लेकर मुख्यमंत्री, राज्यपाल अन्य उच्च अधिकारीयों को प्रतिलिपि भेजी गयी है।