जिस गु्रप में चैट हुआ था वायरल उसमें पत्रकार सहित कई पुलिस वाले भी थे सदस्य
- * पुलिस अपने कर्मचारी को बचाने के लिये पत्रकार के सर मढ़ रही दोष,आखिर क्या है वजह?
* खबर प्रकाशन से पहले एसपी के स्टेनो ने चैट वायरल होने की दी थी सूचना।
* खबरों के लगातार प्रकाशन पर कुछ पुलिसकर्मी और सफेदपोश के आंखो में खटक रहा था पत्रकार,वायरल चैट *मामले में बदले के नियत से पुलिस कर रही काम।
-रवि सिंह-
बैकुण्ठपुर, 12 फ रवरी 2022(घटती-घटना)। पुलिस का पल-पल में बदलते मिजाज से वायरल चैट की सच्चाई से लोग दूर होते दिख रहे है। वहीं लोगो में भी अब वायरल चैट की सच्चाई जानने की उत्सुकता दिखने लगी है, इस मामले में पुलिस से पूछने पर अलग-अलग जवाब अलग-अलग व्यक्तियों को मिल रहा है। जवाब ठोस देने के बजाये पुलिस चैट फर्जी मानकर बैठी है और पत्रकार को दोषी मानते हुये मामला पंजीबद्ध कर ली है। वहीं हद तब पुलिस ने पार कर दी जब उन्हें अपने ही कर्मचारी को प्रार्थी बना कर मामले को पंजीबद्ध करना पड़ गया। आखिर पुलिस के पास ऐसी क्या मजबूरी आन पड़ी? वहीं पुलिस के कुछ लोगों का यह कहना है कि हम पत्रकार से जानना चाहते है कि आखिर वह चैट कैसे आया पर पुलिस यह भूल गयी कि जिस वाट्सअप गु्रप में चैट वायरल हुआ था उस ग्रुप में उनके स्टेनो सहित कई पत्रकार मौजुद थे और लगातार चैट तीन दिनों तक ग्रुप में वायरल होती रही। जिस न बर से वह चैट गु्रप में आया था उस न बर को लेकर खबर प्रकाशन के पहले पुलिस अधीक्षक के स्टेनो विकास नामदेव ने अपने अधिकारी को पत्र के माध्यम से सूचित किया था कि यह चैट फर्जी है और उस चैट की जांच की जाये, पर पुलिस इस चैट की जांच करने के बजाये इस मामले को प्रकाशित करने वाले पत्रकार पर मामला दर्ज कर ली। यह पूरा मामला द्वेशपूर्ण इसलिये दिख रहा है क्योंकि वायरल चैट 02 फरवरी को वाट्सअप के ब्रेकिंग गु्रप में आया था। जबकि जिस दिन यह गु्रप मे आया था उसी दिन एसपी के स्टेनो ने इस मामले की शिकायत किया था। इस मामले का प्रकाशन 03 फरवरी को किया गया था। 02 फरवरी को जिस न बर से वायरल हुआ था उसपर ध्यान न देकर 03 फरवरी के खबर प्रकाशन करने वाले पर एफआईआर दर्ज की गई मतलब कि पुलिस खबर प्रकाशित होने का इंतजार कर रही थी और जैसे ही खबर प्रकाशित हुई वैसे ही एफआईआर दर्ज कर ली गयी। इससे यह बात साफ होती है कि पुलिस द्वेशपूर्वक एफआईआर दर्ज की है।
कोरिया जिले में एक ऐसा ही मामला सामने आया जहां कथित वायरल चैट को आधार मानें तो अपने उच्च अधिकारी को बेवकूफ बनाने जैसे शब्दों का प्रयोग कर आपत्ति जनक शब्दों का प्रयोग पुलिस के द्वारा किया गया और पुलिस के अंदर न जाने कौन ऐसा गब्बर आ गया है जो पुलिस के बातों को वायरल कर रहा है। जबकि इस प्रकार के चैट से यही समझ आता है कि कोरिया के पुलिस विभाग में कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। विभाग के बीच के ही लोग अंदर चल रहे बातों को बाहर लाकर उच्च अधिकारीयों को बताना चाह रहे है कि साहब! देखिये और समझिये कि कैसे कुछ लोग ही पुलिस को बदनाम कर रहे है। पर पुलिस उस दृष्टि से मामले को देखने के बजाऐ इस मामले का पटाक्षेप करने में जुटी हुयी हुई है। पर कार्यवाही और अपराध पत्रकार पर दर्ज कर दी गयी। अब पत्रकार को ढूंढ रही है, और कह रही है कि वह जानना चाहते है कि पत्रकार को वह चैट कहां से मिला। इस पूरे मामले में कई बार खबर के माध्यम से प्रशासन को अवगत कराया जा रहा है कि आप कथित चैट की जानकारी अपने ही विभाग के लोगों से पूछे कि उन्हें यह चैट कहां से मिला? पुलिस को यह जांच करना था कि स्क्रीन शॉट सही है या ग़लत है पर एफआईआर करने में तनिक भी देरी नहीं की पर पुलिस दस दिनों में उस न बर का पता नहीं लगा पायी जिससे वह चैट वायरल हुआ था। ग्रुप में किसने वायरल किया? पर पुलिस जांच को उल्टी दिशा में करते हुये पूरा ठिकरा पत्रकार के सिर मढ़ चुकी है जिसका विरोध भी देखने को मिल रहा है। इस पूरे मामले को कोरिया पुलिस ने अपने सुविधानुसार पत्रकार से अपना खुन्नस निकालने के लिये पत्रकार रवि सिंह पर क़ानून का दुरुपयोग करते हुए अपराधी बनाने पर तुली हुयी है।
दस दिन बीत गये पर चैट वायरल करने वाले का पता अभी तक पुलिस नहीं लगा पायी
ज्ञात हो कि 02 फरवरी 2022 को एक कथित न्यूज वाट्सअप गु्रप ‘ब्रेकिंग न्यूज‘ में एक वाट्सअप न बर 7049646355 से स्क्रीन शॉट का वाट्सअप चैट जो कि पीडिएफ में था पोस्ट किया गया। उक्त वाट्सअप गु्रप में तकरीबन 250 मे बर के आसपास थे जिनमें प्रदेश के साथ देश भर के इलेक्ट्रनिक एवं प्रिंट मिडिया के पत्रकार एवं कुछ पुलिसकर्मी एवं पुलिस अधिकारी शामिल थे। उक्त चौट को संभवत: सभी ने देखा और घटती-घटना जिला प्रतिनिधि संवाददाता रवि रंजन सिंह ने उसी वाट्सअप चैट के आधार पर घटती-घटना समाचार पत्र में समाचार प्रकाशित किया, पर 10 दिन बितने के बावजुद पुलिस उस मास्टर मांइड को नहीं ढूंढ पायी जिसने चैट वायरल किया। और जिस दिन खबर प्रकाशन हुआ उसी दिन मामला पत्रकार पर दर्ज किया जबकि पत्रकार ने उस मुद्दे को सबके संज्ञान में लाने के लिये खबर का प्रकाशन किया ताकि कार्यवाही हो सके पर पत्रकार को क्या मालूम कि पुलिस उसी पर कार्यवाही करने में जुट जायेगी।
वायरल चैट में जो भी नाम शामिल है वह पुलिस से जुड़े हुये है
उक्त चैट में जिला कोरिया पुलिस अधीक्षक कार्यालय के स्टेनो व सौरव द्विवेदी का मोबाईल नंबर देखने को मिला था। चैट को पढऩे पर ऐसा प्रतीत होता है कि यह पूरी बाते इन दोनों के बीच हुयी थी जिसमें अन्य लोग भी नाम शामिल था। चैट का वायरल होना पुलिस विभाग में मानो बम फूटने जैसा था जिससे पुलिस भी सकते में आ गयी। यह वायरल चैट पुलिस के पास भी मौजुद है पर उस चैट की जांच करने के बजाये उस चैट को फजी मान बैठ गयी और पत्रकार को निशाना बनाया। जबकि आश्चर्य की बात है कि इस वायरल चैट में जिन पुलिसकर्मीयों का नाम सामने आया है वहीं इस चैट को फर्जी बता रहे है। चैट में आये नाम को दूर रखकर जहां पुलिस विभाग को निष्पक्ष जांच करनी थी उन्हें ही जांच में सरीख किया गया। ऐसे में वायरल चैट का जांच निष्पक्ष कैसे होगा? क्या पूरे चैट को पुलिस आईटी एक्सपर्ट को जांच के लिये भेजी या फिर अपने ही स्तर पर इसे फर्जी मान बैठेगी।
क्या पत्रकार जांच कर सकता है वायरल चैट की सच्चाई
भाजपा नेता अनिल जायसवाल ने बताया कि जिस प्रकार पुलिस काम रही है वह बिलकूल भी शोभनीय नहीं पत्रकार का काम मामले को सबके सामने रखना है। जो मामला जिस विभाग से जुड़ा है वह विभाग जांच में लेनी चाहिऐ। वायरल चैट के मामले में पुलिस जि प्रकार की बात कह रही है कि चैट को पत्रकार को जांच कर उसे प्रकाशित करना चाहिऐ था तो पुलिस ही बताये कि पत्रकार को कहां जांच करानी थी। जांच का अधिकार पत्रकार का नहीं पुलिस का है पुलिस उस चैट का जांच करे और सत्यता का पता लगाते हुये पत्रकार पर मामला विलोपित करें।
मामले से जुड़े कुछ सवाल
सवाल – व्हाट्सअप ग्रूप में कथित पुलिस के बीच के स्क्रीनशॉट कैसे हुआ वायरल, वायरल करने वाले का क्या है मकसद, क्या पुलिस इस ऐंगल से सोच रही है?
सवाल – वायरल करने वाले तक क्यों नहीं पहुंच पा रही पुलिस?
सवाल – क्या खबर प्रकाशित कर पुलिस के सामने लाना अपराध है?
सवाल – पुलिस जान रही किस न बर से चैट हुआ वायरल फिर भी पत्रकार से क्यों जानना चाह रही कि कहां से मिला चैट?
सवाल – खबर पर यदि किसी को परेशानी हुयी तो पहले विधिक तौर पर बयान के लिये क्यों नहीं दी नोटिस? सीधे दर्ज क्यों किया गया मामला।
सवाल – पत्रकार को अपराधी की भांति क्यों ढूंढ रही कोरिया पुलिस?
सवाल – कथित वायरल चैट की जानकारी खबर प्रकाशन से पहले पुलिस को थी फिर पत्रकार दोषी कैसे?
सवाल – पुलिस इतनी ही पाकसाफ है तो प्रेस कान्फें्रस कर क्यों नहीं बता रही चैट को फर्जी।
सवाल – पुलिस के ही एक प्रधान आरक्षक के अनुसार जिसकी खबर घटती-घटना में प्रकाशित हुयी थी पत्रकार के नाखुन उखाडऩे तक उसकी अभिरक्षा पुलिस के पास होगी जैसा वह चौक-चौराहे में बोलते सुना जा रहा है क्या इसीलिऐ कार्यवाही की जा रही है?
सवाल – प्रधान आरक्षक जिसके खिलाफ कई मामलो पर उनकी शिकायत लंबित है और उन्हीं को जांच में मु य भूमिका प्रदान की गयी है क्या यह सही है?
सवाल – प्रधान आरक्षक नवीनदत्त तिवारी के सन्दर्भ में यदि जांच की जाये तो इनके खिलाफ शिकायतों की ल बी फेहरिस्त है और कथित चैट में इनका भी नाम का उल्लेख किया गया है कि कैसे यह पैसे लेकर मामलों का निपटारा किया करते है। वैसे जांच में इनसे बड़ा दोषी कोई नहीं पाया जायेगा जो तय है?
सवाल – पटना थाना के प्रभारी सौरव द्विवेदी जिनकी कार्यप्रणाली शैली पर पहले भी सवाल उठ़े है और खबर भी प्रकाशित हुये, चैट में इनका भी नाम है और इस मामले की जांच में भी अधिकारी इन्हीं का ले रहे सहारा ऐसे में कैसे निष्पक्ष होगी जांच?