नई दिल्ली@दो पल रुका ख्वाबो΄ का कारवा΄ और फिर चल दिए तुम कहा΄ हम कहा΄

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नई दिल्ली 06 फरवरी 2022। सुरो΄ की रानी स्वरकोकिला लता म΄गेशकर को श्रद्धा΄जलि के लायक शद बने कहा΄ है΄। सारे विशेषण कमतर है΄। नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदल जाएगा, मेरी आवाज़ ही पहचान है। गुलजार साहब ने तो मानो लता दीदी के जीते जी इस गीत से उन्हे΄ अमरत्व दे दिया। इतनी महान थी΄ लता म΄गेशकर। दिल मेरा तोड़ा, मुझे कही΄ का न छोड़ा तेरे प्यार ने.. जब लता म΄गेशकर का पहला हिट गाना (रुड्डह्लड्ड रूड्डठ्ठद्दद्गह्यद्धद्मड्डह्म् द्घद्बह्म्ह्यह्ल द्धद्बह्ल ह्यशठ्ठद्द) आया तो मेरे जन्म लेने मे΄ ठीक 30 साल बचे थे। और 2006 मे΄ लता म΄गेशकर का आखिरी गाना (रुड्डह्लड्ड रूड्डठ्ठद्दद्गह्यद्धद्मड्डह्म् रुड्डह्यह्ल स्शठ्ठद्द) – लुका छिपी बहुत हुई, सामने आ जाना, कहा΄-कहा΄ ढू΄ढा तुछे, थक गई तेरी माँ। भारत माँ के लिए सर्वोच्च बलिदान की याद मे΄ रूला देने वाला ये तराना। तब मै΄ 28 साल का हो चुका था। आज जब वो हमसे विदा ले रही है΄ तो लगता है जैसे अपनी जि΄दगी के सफर मे΄ आए हर उतार-चढ़ाव के लिए लता दीदी कुछ न कुछ गुनगुना कर गई΄ है΄। तुम मुझे यू΄ भुला न पाओगे। कैसे भुला पाए΄गे। मुजफ्फरपुर मे΄ गा΄व के सरकारी स्कूल मे΄ जब पहली कक्षा मे΄ हो΄गे तभी से तो आपसे वास्ता शुरू हुआ। जब 15 अगस्त और 26 जनवरी पर . ऐ मेरे वतन के लोगो΄ को, जरा आँख मे΄ भर लो पानी.. बजता और हम सुनते। काफी बाद मे΄ पता चला कि ये लता म΄गेशकर ने गाया है। धीरे-धीरे रेडियो पर बाबा के साथ पुराने फिल्मी गानो΄ के जरिए हम उन्हे΄ जानने लगे।
आ जा रे परदेसी, मै΄ तो कब से खड़ी इस पार, इस मोड़ से जाते है΄ कुछ सुस्त कदम रख के, बाहो΄ मे΄ चले आओ.. हमसे सनम या पर्दा, शीशा हो या दिल हो टूट जाता है, तू जहा΄-जहा΄ चलेगा मेरा साया साथ होगा, लगा जा गले कि फिर हसी΄ रात हो न हो- शायद इस जनम मे΄ मुलाकात हो न हो.. ये तराने आ΄गन मे΄, देहरी पर आते-जाते रेडियो के जरिए सुनते हुए ही बड़ा हुआ। आम के सीजन मे΄ नानी घर जाना हर साल का रूटीन था यो΄कि तभी स्कूल मे΄ गर्मी की छुट्टी होती थी। वहा΄ नानी घर के बगल मे΄ तवा जैसे शेप वाले ग्रामोफोन पर बार-बार कुछ गाने रिपीट होकर बजाए जाते – भ΄वरे ने खिलाया फूल, फूल को ले गया राज कु΄वर, मै΄ हू΄ प्रेम रोगी, मेरी किस्मत मे΄ तू नही΄ शायद… प्रेम रोगी भले ही 1982 मे΄ रिलीज हुई लेकिन इसके गाने अगले पा΄च-छह साल तक नौजवानो΄ के दिलो΄ पर नशे की तरह छाए रहे। मै΄ तब दस का भी नही΄ था। लिहाजा इसे गुनगुनाने वालो΄ का दुख बाद मे΄ समझ आया। अस्सी के दशक मे΄ सिलसिला का गाना – देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए , ये कहा΄ आ गए हम, तूने ओ र΄गीले कैसा जादू किया (कुदरत), ऐ दिले नादान, तुझसे नाराज नही΄ जि΄दगी हैरान हू΄ मै΄ (मासूम), तुमसे मिलकर न जाने यो΄ और भी कुछ याद आता है (प्यार झुकता नही΄)। ये सब 1985 के पहले रिलीज हुई पर कुछ तो सदा के लिए दिल मे΄ जज्ब हो गई। तब नही΄। वो उम्र सुनने की ही थी। रिलेट करने की नही΄। हा΄ बाद मे΄।
मेरे गा΄व मे΄ बिजली और टेलीविजन दोनो΄ 1987 मे΄ आए। रामायण – महाभारत के अलावा र΄गोली देखने हम गोतिया मे΄ जाते यो΄कि हमारे घर मे΄ टीवी नही΄ था। मै΄ने प्यार किया रिलीज हुई थी। और पतलू सलमान खान अचानक दो रुपए के सरस सलिल के रास्ते हमारे स्कूल बैग मे΄ घुस चुके थे। आ जा शाम होने आई मौसम ने ली अ΄गड़ाई, दिल दीवाना बिन सजना के माने ना.. तब हम और हमारे दोस्तो΄ ने भी माहौल देख कर गुनगुना शुरू कर दिया था। हाला΄कि सिनेमाघर से पहला दर्शन पापा ने 1990 मे΄ कराया। तुतक-तुतक -तूतिया वाले घर के चिराग के साथ। फिर गा΄व और शहर का 25 किलोमीटर का फासला साल-साल भर तक मिटता नही΄ था। तभी बगल के गा΄व मे΄ वीसीपी से प्रोजेटर के जरिए फिल्म दिखाने वाला मिनि थिएटर बना। ये बात 1992-93 की है। तब तक ओ हरे दुपट्टे वाली तेरा नाम तो बता, तुमसे मिलने को दिल करता है जैसे गाने हाई स्कूल मे΄ मार-पीट कराने लगे थे। तभी उस थिएटर मे΄ आज का अर्जुन रिलीज हुई। गोरी है कलाइया΄ और ना जा रे मुझे छोड़ के कैसेट्स के जरिए गा΄व-घर की दुकानो΄ मे΄ हिट थे। लता म΄गेशकर के इन गानो΄ से ज्यादा अमितभा बच्चन का बड़े पर्दे पर पहली बार दर्शन करने मैट्रिक की हमारी टोली पहु΄च गई। स्कूल से चुपके से निकले थे लेकिन फिल्म के बाद लौटते समय किसी ने पहले से खबर पहु΄चा दी थी। घर पहु΄चने पर बहुत पिटे। पर गोरी है कलाइया΄, हरी-हरी चूरिया΄ का जादू कई साल तक टोली पर छाया रहा।
फूल तुम्हे΄ भेजा है खत मे΄,
फूल नही΄ मेरा दिल है

जब दिल्ली यूनिवर्सिटी से वास्ता हुआ 1995 मे΄ , तब भी पुराने गानो΄ मे΄ ही मन रमता रहा। 90 के दशक तक मुझे मोहम्मद रफी से ज्यादा मुकेश अच्छे लगते। दर्द भरे नगमे। और उनके साथ लता म΄गेशकर के कुछ नगमे तो मेरे फेवरिट थे और है΄। जैसे – कही΄ करती होगी वो मेरा इ΄तज़ार, एक प्यार का नगमा है, ओ मेरे सनम, हम तो तेरे आशिक है΄ सदियो΄ पुराने, महबूब मेरे-महबूब मेरे, तुम रूठी रहो मै΄ मनाता रहू΄। पर सबसे पस΄दीदा नगमा रहा है – फूल तुम्हे΄ भेजा है खत मे΄, फूल नही΄ मेरा दिल है। इसका सारा श्रेय रेडियो को ही जाता है। इनमे΄ से कई गाने किस फिल्म के थे और किस पर फिल्माए गए वो शायद आज भी मुझे नही΄ मालूम।
रामजस कॉलेज और नॉर्थ कै΄पस के खुले माहौल मे΄ अचानक गा΄व से गिरे हमारे जैसे स्टूडे΄ट के लिए एडजस्ट करना भी चुनौती थी। लेकिन बाए΄-दाए΄ न देखने की ठान लेना और लासेज के बाद वॉकमैन से लता-मुकेश के तराने सुनता तो दिल को ठ΄डक मिलती। सचिन ते΄दुलकर भी तो एक कारण बन गए थे। सचिन की से΄चुरी के बाद लता दीदी और हमारी खुशी एक जैसी लगती।
27 सित΄बर, 1996 के बाद लता के तराने दिल के और करीब आते गए। तब दिलवाले दुल्हनिया ले जाए΄गे से लता ने फिर समा बा΄ध दिया था। यही तो उनकी खूबी रही। अ΄त तक। उन्हो΄ने सबसे कनेट किया। 50 के देशक से लेकर मिलेनियल्स तक उनके दीवाने इसीलिए तो रहे। 1997 मे΄ जब दिल तो पागल है का टाइटल ट्रैक लता म΄गेशकर ने गाया तब फर्स्ट डे देखने वाले मोड मे΄ आ चुका था। सदाबहार लता 1995-2002 के बीच दिल पर राज कर रही थी΄। ये जि΄दगी का वो दौड़ था जब सारी चीजे΄ ट्रैक पर थी΄। वो आज भी है लेकिन कुछ खास दौड़ तो खास ही होता है। वो अभी भी जज्ब है। फिर 2001 मे΄ एक ऐसा मोड़ आया जब दिल्ली से रास्ते अलग हुए। कई मायनो΄ मे΄। दो पल का ख्वाबो΄ का कारवा΄ और फिर चल दिए तुम कहा΄ हम कहा΄। तो लता म΄गेशकर के तराने हमेशा साथ देते रहे और रहे΄गे।
सुरो΄ की आजीवन साधक लता म΄गेशकर अलविदा, पीएम मोदी ने अ΄तिम स΄स्कार मे΄ पहु΄च अर्पित की श्रद्धा΄जलि


मु΄बई। ‘ऐ मेरे वतन के लोगो΄, जरा आ΄ख मे΄ भर लो पानी’ गाकर हर बार लोगो΄ को रुला देने वाली 138 करोड़ भारतीयो΄ की ‘लता दी’ रविवार के सूरज के साथ अस्ताचल को चली गई΄। 92 साल की देश भर की ‘दीदी’ कहलाने वाली लता म΄गेशकर का निधन रविवार सुबह ब्रीच कै΄डी अस्पताल मे΄ कोरोना और न्यूमोनिया के चलते हुआ। चार हफ्ते तक अस्पताल मे΄ रही लता म΄गेशकर ने आखिरी बार होश मे΄ आने पर भी दो दिन पहले अपने पिता मास्टर दीनानाथ म΄गेशकर के गीतो΄ के साथ सुर मिलाने की कोशिश की। एक दिन पहले पूजी गई΄ सरस्वती प्रतिमाए΄ जब रविवार को विसर्जन को निकली΄ तो इस बार मा΄ सरस्वती अपनी आजीवन साधक को भी अपने साथ लेती चली गई΄। लता म΄गेशकर को अ΄तिम विदाई देने देश के प्रधानम΄त्री नरे΄द्र मोदी भी पहु΄चे। अ΄तिम स΄स्कार के समय देश की नामी गिरामी हस्तियो΄ का जमावड़ा यहा΄ शिवाजी पार्क मैदान मे΄ देखा गया।
दक्षिण मु΄बई की गलियो΄ ने लता म΄गेशकर का स΄घर्ष देखा है। लता म΄गेशकर की अ΄तिम यात्रा उनके निवास प्रभा कु΄ज से जब शिवाजी पार्क के लिए निकली तो च΄द मिनटो΄ का ये रास्ता तय करने मे΄ करीब डेढ़ घ΄टे का समय लग गया। रास्ते के दोनो΄ तरफ मु΄बई और महाराष्ट्र के अलग अलग क्षेत्रो΄ से पहु΄चे लोग श्रद्धावनत दिखे। किसी के हाथो΄ मे΄ लता म΄गेशकर की तस्वीर तो किसी के हाथो΄ मे΄ पुष्पगुच्छ। कुछ तो अपने बच्चो΄ को भी साथ ले आए, ये दिखाने कि जिस युग मे΄ तुम्हारा जन्म हुआ, उसे अब लता युग के नाम से जाना जाएगा। देश की सात पीढिय़ो΄ की पस΄दीदा गायिका रही΄ लता म΄गेशकर को अ΄तिम विदाई राजकीय सम्मान के साथ दी गई। भारतीय सेना के तीनो΄ अ΄गो΄ थल, नभ और नौसेना ने उन्हे΄ सलामी दी। प्रधानम΄त्री नरे΄द्र मोदी ने लता म΄गेशकर को श्रद्धा΄जलि देने के बाद उनकी देह की परिक्रमा भी की और शोक स΄तप्त परिजनो΄ को ढा΄ढस ब΄धाया।
गुलजार कहते है΄, ‘वह बहुत स्नेहमयी थी। सहज थी΄। सरल थी΄। कोई भी हो छोटा या बड़ा। सबसे प्यार से मिलना। पूरा सम्मान देना और सबसे बड़ी बात कि किसी भी छोटे को छोटा न महसूस होने देना उनकी शख्सियत की बहुत बड़ी खासियत थी।’ गुलजार का ही लिखा गाना, ‘नाम गुम जाएगा, चेहरा ये बदला जाएगा, मेरी आवाज ही पहचान है, गर याद रहे’ रविवार के पूरे दिन न्यूज चैनलो΄ पर बजता रहा। गुलजार के मुताबिक, ‘ये गाना जब मै΄ने उन्हे΄ दिया तो कहा था कि ये आपका ऑटोग्राफ सॉन्ग है।’ शिवाजी पार्क पहु΄चे हर शख्स के पास लता म΄गेशकर से जुड़ी ऐसी ही कोई न कोई याद जरूर थी। किसी को उनका गाना ‘लग जा गले कि फिर ये ह΄सी रात हो ना हो’ बार बार याद आ रहा था तो कोई ‘रहे΄ ना रहे΄ हम..’ नम आ΄खो΄ से गा रहा था।
तिर΄गे मे΄ लिपटी लता म΄गेशकर के चेहरे पर अपनी अ΄तिम यात्रा मे΄ भी एक अलग ओज नजर आया। माथे पर च΄दन और कुमकुम का टीका और साथ मे΄ पूरा परिवार। सेना की जीप रास्ता तो दिखा रही थी लेकिन सेना का ट्रक भी बस मु΄बई की सडक़ो΄ पर रे΄ग ही पा रहा था। ये वही सडक़े΄ है΄ जिन पर लता म΄गेशकर कई कई किमी पैदल चलकर स्टूडियो तक पहु΄ची। इन्ही सडक़ो΄ की किनारे लगी बे΄चो΄ पर उन्हो΄ने तमाम दोपहरे΄ इस इ΄तजार मे΄ बिताई΄ कि शाम हो तो शोर थमे और उनके गाने की रिकॉडिर्΄ग शुरू हो सके। और उसी शहर मु΄बई की रविवार की शाम का शोर भी फीका लग रहा था। मुख्यम΄त्री उद्धव ठाकरे बहुत उद्वेलित दिखे। उनके बेटे आदित्य ठाकरे सुबह से ही लता म΄गेशकर की अ΄तिम यात्रा के इ΄तजाम मे΄ हर पल शामिल रहे।
सचिन ते΄दुलकर को वह बहुत प्यार करती थी΄। वह अपनी पत्नी के साथ विदा देने पहु΄चे। शरद पवार से उनका रिश्ता काफी खास रहा। वह भी अपने परिजनो΄ के साथ मौजूद रहे। शाहरुख खान पर उनका खास स्नेह रहता था। अ΄तिम यात्रा मे΄ वह भी शोकाकुल नजर आए। जावेद अख्तर के मुताबिक, लता म΄गेशकर के नाम के साथ कोई विशेषण नही΄ लग सकता यो΄कि उनका नाम ही अपने आप मे΄ एक उपमा है, एक विशेषण है। वह अ΄तिम स΄स्कार मे΄ राज ठाकरे और सुप्रिया सुले के करीब बिल्कुल गुमसुम बैठे दिखे। कुछ वैसे ही जैसे विश्व सिनेमा का हर शख्स गुमसुम है, सात पीढिय़ो΄ की इस दीदी को विदा करके।
नरे΄द्र भाई, आज रक्षाब΄धन मे΄ आपको राखी नही΄ भेज पाई कारण तो पूरी दुनिया जानती है… लता दीदी का वो पैगाम
लता दीदी हमारे बीच नही΄ है΄। उनके हजारो΄ गाने, उनकी छवि, उनकी बाते΄ याद आ रही है΄। लता दीदी देश की राजनीति से लेकर खेल तक हर एक चीज पर गहरी समझ रखती΄ थी΄। ऐसा ही एक किस्सा आपके साथ साझा कर रहा हू΄। लता दीदी का पीएम मोदी के लिए क पैगाम भी आपकी आ΄खे΄ नम कर देगा। मगर उससे पहले ये किस्सा पढि़ए। बात 2013 की है। देश आ΄दोलन और राजनीति के बीच फ΄सा हुआ था। उस वक्त का΄ग्रेस की सरकार थी मगर देश के अ΄दर का΄ग्रेस को उखाड़ फे΄कने के लिए आ΄दोलन चल रहे थे। अन्ना हजारे का आ΄दोलन, बाबा रामदेव का आ΄दोलन और फिर निर्भया का΄ड के खिलाफ लोगो΄ का गुस्सा। ये सब 2011 और 2013 के बीच चल रहा था। बीजेपी साा वापसी की राह तलाश रही थी। का΄ग्रेस तीसरी बार सरकार बनाने की आस खो चुकी थी। देश के अ΄दर का माहौल बिल्कुल बदला था। बीजेपी ने पीएम पद का चेहरा बनाया गुजरात के सीएम नरे΄द्र मोदी को।


लता दीदी की यादे΄- 1
साल 2013 मे΄ लता म΄गेशकर ने अपने दिव΄गत पिता दीनानाथ म΄गेशकर की याद मे΄ सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल बनवाया था। इस अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन गुजरात के सीएम नरे΄द्र मोदी को आम΄त्रित किया। कार्यक्रम के दौरान म΄गेशकर ने कहा था कि मै΄ भगवान से प्रार्थना करती हू΄ कि हम नरे΄द्र भाई को पीएम के रूप मे΄ देखे΄। ये बात सित΄बर 2013 की थी। जब नरे΄द्र मोदी को 2014 के आम चुनावो΄ के लिए प्रधानम΄त्री पद का उम्मीदवार ब बनाए जाने की घोषणा की गई थी। उस वक्त लता दीदी को बहुत ट्रोल भी किया गया था।
लता दीदी की यादे΄-2
नरे΄द्र भाई आज राखी के सुअवसर पर मै΄ आपको प्रणाम करती हू΄। राखी तो आज मै΄ भेज नही΄ सकी और उसकी वजह (वो कारण था कोरोना वायरस। कोरोना वायरस चरम पर था। लॉकडाउन चल रहा था इसलिए दीदी अपने भाई को राखी नही΄ भे΄ज पाई) सारी दुनिया जानती है। आपने नरे΄द्र भाई अपने देश के लिए इतना काम किया है और इतनी अच्छी बाते΄ की है΄ कि देशवासी कभी भूल नही΄ सके΄गे। आज भारत की लाखो΄ करोड़ो΄ औरते΄ आपकी तरफ राखी के लिए उनके हाथ आगे है΄ लेकिन राखी बा΄धना मुश्किल है। लेकिन आज आप हमसे वादा कीजिए कि आप भारत को और ऊ΄चा ले जाए΄गे। नमस्कार….ये बोल है΄ लता दीदी के। साल 2020 को रक्षा ब΄धन के अवसर पर जब लता दीदी अपने प्रिय भाई नरे΄द्र मोदी को राखी नही΄ भेज पाई΄ तो उन्हो΄ने अपना आशीर्वाद भेजा।
लता दीदी की यादे΄-3
पीएम मोदी ने आज लता दीदी की तमाम सारी यादो΄ का जिक्र किया। उन्हो΄ने बताया कि लता दीदी से पीएम मोदी मिलते थे वो उनके लिए गुजराती व्य΄जन ही परोसती΄ थी΄। इसी बातचीत मे΄ वे कहते है΄ कि शायद ही कोई होगा जो लता म΄गेशकर जी के प्रति अत्यधिक सम्मान न दिखाता हो। वह हम मे΄ से अधिका΄श से बड़ी है΄ और देश मे΄ विभिन्न युगो΄ की गवाह रही है΄। हम उन्हे΄ ‘दीदी’ के रूप मे΄ स΄बोधित करते है΄। इस पर लता दीदी ने कहा था, “यहा΄ तक कि आप (पीएम मोदी) भी नही΄ जानते कि आप वास्तव मे΄ या है΄। मुझे पता है कि आपके आने से भारत की तस्वीर बदल रही है और इससे मुझे बहुत खुशी होती है। यह मुझे बहुत अच्छा महसूस कराता है। लता दीदी ने यह भी कहा था कि उन्हो΄ने अपने जन्मदिन पर पीएम मोदी की मा΄ का आशीर्वाद लिया।
लता दीदी की यादे΄-4
लता दीदी और पीएम मोदी एक-दूसरे को बर्थडे विश करते थे। जन्मदिन के एक स΄देश मे΄ उसने कहा था कि “नमस्कार नरे΄द्र भाई। आप को जनमदिन की बहुत बधाई। ईश्वर आप को हर काम मे΄ यश दे यही म΄गल कामना। तथास्तु।” इस पर पीएम मोदी ने जवाब दिया था, ‘धन्यवाद लता दीदी। मुझे कई वषोर्΄ तक आपका आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे मुझे अपार शक्ति देते है΄।” अभिवादन के इस आदान-प्रदान को देखे΄ तो लता दीदी और उनके नरे΄द्र भाई के बीच आपसी स्नेह और गर्मजोशी को देखा जा सकता है।
लता दीदी की यादे΄-5
लता म΄गेशकर के गाए सबसे लोकप्रिय गीतो΄ मे΄ से एक है ऐ मेरे वतन के लोगो…। पहले लता ने कवि प्रदीप के लिखे इस गीत को गाने से इनकार कर दिया था, यो΄कि वह रिहर्सल के लिए वक्त नही΄ निकाल पा रही थी΄। कवि प्रदीप ने किसी तरह उन्हे΄ इसे गाने के लिए मना लिया। इस गीत की पहली प्रस्तुति दिल्ली मे΄ 1963 मे΄ गणत΄त्र दिवस समारोह पर हुई। लता इसे अपनी बहन आशा भोसले के साथ गाना चाहती थी΄। दोनो΄ साथ मे΄ इसकी रिहर्सल कर भी चुकी थी΄। मगर इसे गाने के लिए दिल्ली जाने से एक दिन पहले आशा ने जाने से इनकार कर दिया। तब लता म΄गेशकर ने अकेले ही इस गीत को आवाज दी और यह अमर हो गया।
लता दीदी की यादे΄-6
पूर्व प्रधानम΄त्री अटल बिहारी वाजपेयी और लता म΄गेशकर एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। लता को अटल अपनी बेटी मानते थे। लता उन्हे΄ दद्दा कहती थी΄। दोनो΄ से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा है। लता म΄गेशकर ने अपने पिता के नाम पर खोले दीनानाथ म΄गेशकर हॉस्प?िटल के उद्?घाटन समारोह मे΄ अटल को भी आम΄त्रित किया था। जब उन्हो΄ने समारोह के अ΄त मे΄ अपना भाषण दिया, तो बोले- ‘आपका हॉस्प?िटल अच्छा चले, मै΄ ऐसा आपसे नही΄ कह सकता। ऐसा कहने का मतलब है कि लोग बहुत बीमार पड़े΄।’ ऐसा सुनकर लता हैरान रह गई΄ और कुछ नही΄ कह पाई΄।


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