बैकुण्ठपुर@आइये फिर से सकारात्मक होकर वैश्विक आपदा कोरोना को हरायें

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बैकुण्ठपुर 09 जनवरी 2022 (घटती-घटना)। कोरोना वैश्विक महामारी का तीसरा दौर सामने है,जैसा कि पहले से आशंका जाहिर की जा रही थी कि यह तीसरा दौर तीसरी लहर बनकर आयेगी और फिर से मानव जीवन पर एकबार खतरा मंडराएगा यदि मानव जाति सजग और सतर्क होकर अपनी दिनचर्या का पालन नहीं करेगी। पहली लहर जब कोरोना की आई भारत मे उसका असर बहोत व्यापक नहीं हुआ और कुछ हद तक लोग परेशान हुए और उसके डर और उसकी अनजान प्रवृति को लेकर भी भयभीत रहे। पहले दौर में जब कोरोना का प्रवेश देश मे हुआ लोगों को भी भयभीत अत्यधिक भयभीत देखा गया और कोरोना की रोकथाम को लेकर सुरक्षात्मक उपायों को भी शासन के बड़ी कडाईयों वाला देखा गया और एक भी मामले मिलने पर शहर ही पूरा बंद होते हम आप सभी ने देखा।
धीरे धीरे डर और असंख्य भयभीत करने वाली कल्पनाओं के साथ कोरोना का पहला दौर या लहर जाता रहा लेकिन उसने जो सीख या जो कुछ स्मरण करने के लिए यदि छोड़ा तो वह यह था कि अब मानव व्यवहार और उसकी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए और उसकी सामाजिक या आर्थिक क्षेत्रों में आपसी मुलाकात कैसी होनी चाहिए। पहले दौर में जिस तरह शहरों से पलायन करते पैदल चलकर घर अपने छोटो छोटे बच्चों को लेकर अपने पैतृक निवासों की ओर लौटते लोगों को हर उस व्यक्ति ने देखा और उसके दुख व तकलीफ को महसूस किया होगा जो कोई भी उस दौर में अपने निजी घरों में था और अर्थार्जन हेतु सपरिवार या अकेले घर से सैकड़ो हजारों किलोमीटर दूर था। वह दौर जो कई माह का था जब बाजार बन्द थे, रोजगार बंद थे,और एक भी संक्रमित मिलते ही पूरा मोहल्ला या शहर ही सील या बंद कर दिया जाता था और भय का एक विकराल डरावना चेहरा सामने होता था। हजारों सैकड़ो किलोमीटर का सफर करते सपरिवार पैदल या सायकल से चलते लोगों की व्यथा रही हो, ट्रेनों बसों के परिचालन बंद करने का निर्णय रहा हो या हजारों लोगों की मृत्यु जो अकाल हुई इस महामारी की वजह से वह दृश्य रहा हो सभी ने यह सभी कुछ महसूस किया और इसमें अपने आपको लेकर भी कल्पना करते हुए डरावने ख्याल अपने मन मे जरूर पाले।
किसी तरह पहला दौर या लहर जाता रहा और फिर दूसरी लहर आई और यह और व्यापक साबित हुई और इसमें कालातीत होने वाले लोगों की संख्या पहले दौर से ज्यादा रही और इस दौर में भी वही हुआ जो पहले दौर में हुआ था,बसें बंद की गईं, ट्रेनों का परिचालन तो बंद नहीं किया गया लेकिन संख्या बढ़ाई नहीं गई और ट्रेनों में सुरक्षा के उपाय भी किये गए और संक्रमितों की पहचान के लिए रेलवे स्टेशनों में ही जांच शिबिर लगाए गए जिससे संक्रमितों के मिलते ही उन्हें तत्काल इलाज मुहैया कराया गया और उन्हें अन्य से अलग रखने की व्यवस्था पहले की ही तरह की गई। दूसरे दौर का कोरोना ज्यादा लोगों के कालातीत होने का कारण बना और लोगों में ज्यादा भय भी उत्तपन्न कर गया क्योंकि मरने वालों की संख्या प्रतिदिन बढती रही और जीवन के लिए जरूरी ऑक्सिजन भी लोगों को मिलना मुश्किल होने लगा और जिसकी किल्लत से भी तड़पते मरीज देखे गए और कई काल के गाल में समा गए।
पहले दौर और दूसरे दौर के बीच और दूसरे दौर में ज्यादा जनहानि का कारण यदि कुछ रहा तो वह था जानकर भी अनजान बनकर लोगों का निश्चिन्त होकर अपनी दिनचर्या में भीड़ जाना और पूरी तरह लापरवाह हो जाना जबकि दूसरे दौर और दूसरी लहर की संभावना और उसको लेकर पहले से सचेत रहने की जानकारी सभी को स्वास्थ्य विभाग लगातार उपलब्ध कराता आ रहा था और शासन प्रशासन लगातार सुरक्षात्मक उपायों और सामाजिक दूरी को लेकर लोगों को जागरूक करता आ रहा था लेकिन लोगों ने खुद को जागरूक करने की बजाए, सुरक्षात्मक उपायों के पालन करने की जगह सामाजिक दूरी नियम का पालन करने की बजाए सभी तरह से बेपरवाह देखा गया जो घातक हुआ मानव समाज और मानव जाति के लिए।


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