बेंगलुरु ,24 नवंबर 2021 (ए)।कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक आरोपी के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया है। मामले को रद्द कराने के लिए पीडि़ता ने दलील दी थी कि वे अब शादीशुदा हैं और उनका एक बच्चा है। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि अदालत अपराध की प्रकृति और गंभीरता और सामाजिक प्रभाव को देखते हुए मामले को रद्द नहीं कर रही है।
आरोपी और पीडि़त दोनों ने विजयपुरा जिले के बसवाना बागेवाड़ी में एक विशेष अदालत के समक्ष कार्यवाही को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय की कलबुर्गी पीठ का दरवाजा खटखटाया था।
यह प्रस्तुत किया गया था कि यदि अभियुक्तों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही जारी रखी जाती है, तो कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इसके अलावा, पीडि़ता ने दावा किया कि घटना के समय उसकी उम्र 19 साल थी। हालांकि, न्यायमूर्ति एच.पी. संदेश ने दुष्कर्म के आरोपी के खिलाफ कार्यवाही को रद्द करने की दलीलों को मानने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा कि लड़की नाबालिग है या बालिग, इस पर निचली अदालत में फैसला सुनाया जाना है। पीठ ने आगे कहा कि, जब आरोपी ने नाबालिग के खिलाफ आईपीसी 376 (दुष्कर्म) के तहत अपराध किया था।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी हवाला दिया और कार्यवाही को रद्द करने के लिए सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्ति का प्रयोग करने से पहले कहा कि उच्च न्यायालय को अपराध की प्रकृति और गंभीरता और सामाजिक प्रभाव का उचित सम्मान करना चाहिए।
बेंच ने कहा कि इस मामले में आरोपी नाबालिग लड़की से रेप के आरोप का सामना कर रहा है और उसके खिलाफ आईपीसी और पोक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है। शीर्ष अदालत का स्पष्ट कहना है कि दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराध के मामले में अदालत सीआरपीसी की धारा 482 के प्रावधान का उपयोग नहीं कर सकती है। इसका समाज पर प्रभाव पड़ेगा। यह आदेश 28 अक्टूबर को पारित किया गया था।
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